Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration).

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जे आत्मतत्त्वने जाणे छे ते बीजाओना स्वयं आराध्य बनी जाय छे ...... २ .................... ३५१
एकत्वना ज्ञाता अनेक कर्मोथी पण डरता नथी ..................................... ३ .................... ३५१
चैतन्यनी एकतानुं ज्ञान दुर्लभ छे, पण मुक्तिदाता ते ज छे .................. ४ .................... ३५२
जे यथार्थ सुख मोक्षमां छे ते संसारमां असंभव छे ............................. ५ .................... ३५२
गुरुना उपदेशथी अमने मोक्षपद ज प्रिय छे ....................................... ६..................... ३५२
अस्थिर स्वर्गसुख मोहोदयरूप विषथी व्याप्य छे................................... ७ .................... ३५२
आ लोकमां जे आत्मोन्मुख रहे छे ते परलोकमां पण तेवा रहे छे ......... ८ .................... ३५२
वीतराग मार्गे प्रवृत्त योगीने मोक्षसुखनी प्राप्तिमां कोई पण

बाधक थई शकतुं नथी ............................................................. ९ .................... ३५३
आ भावना पदना चिन्तनथी मोक्ष प्राप्त थाय छे................................ १० .................. ३५३
धर्म रहेतां मृत्युनो भय रहेतो नथी .................................................. ११ .................. ३५३
२३. परमार्थविंशति
२०
३५४३६४
आत्मानुं अद्वैत जयवंत हो ............................................................... १ .................... ३५४
अनन्तचतुष्टयरूप स्वस्थतानी वंदना ..................................................... २ .................... ३५४
एकत्वनी स्थिति माटे थनारी बुद्धि पण आनंदजनक होय छे.................. ३ .................... ३५५
अद्वैत तरफ झुकाव थतां इष्टानिष्ट बुद्धि नष्ट थई जाय छे ..................... ४ .................... ३५५
हुं चैतन्यस्वरूप छुं, कर्मजनित क्रोधादि भिन्न छे................................... ५ .................. ३५६
जो एकत्वमां मन संलग्न होय तो तीव्र तप न होवा छतां

पण अभीष्टसिद्ध थाय छे ......................................................... ६......................३५६
कर्मो साथे एकमेक होवा छतां पण हुं ते परमज्योतिस्वरूप ज छुं .......... ७ .....................३५६
लक्ष्मीना मदथी उन्मत्त राजाओनो संग मृत्युथी पण भयानक होय छे .... ८ .................... ३५७
हृदयमां गुरुवचने जागृत रहेतां आपत्तिमां खेद थतो नथी..................... ९ .................... ३५८
गुरु द्वारा प्रकाशित पथ पर चालवाथी निर्वाणपुर प्राप्त थाय छे ............ १० .................. ३५८
कर्मने आत्माथी भिन्न समजनाराओने सुखदुःखनो विकल्प ज थतो नथी.. ११ .................. ३५८
देव अने जिनप्रतिमा आदिनुं आराधन व्यवहारमार्गमां ज थाय छे ......... १२ .................. ३५९
जो मुक्ति तरफ बुद्धि लागी गई तो पछी कोई गमे एटलुं कष्ट

दे, तेनो तेने भय रहेतो नथी................................................... १३ ...................३६०
सर्वशक्तिमान आत्माप्रभु संसारने नष्ट करीने समान देखे छे ............... १४ ...................३६०
आत्मानी एकताने जाणनार पापथी लिप्त थतो नथी ............................ १५ ...................३६१
गुरुना पादप्रसादथी निर्ग्रन्थता प्राप्त करी लीधा पछी इन्द्रियसुख
दुःखरूप ज प्रतीत थाय छे....................................................... १६ ...................३६१
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ २३ ]