Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration).

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निर्ग्रन्थताजन्य आनंद सामे इन्द्रियसुखनुं स्मरण पण थतुं नथी .............. १७ ...................३६१
मोहना निमित्ते थनारी मोक्षनी पण अभिलाषा सिद्धिमां बाधक थाय छे . १८ ...................३६२
चिद्रूपना चिन्तनमां बीजी तो शुं, शरीर साथे पण प्रीति रहेली नथी...... १९ ...................३६२
शुद्धनयथी तत्त्व अनिर्वचनीय छे ........................................................ २० ...................३६३
२४. शरीराष्टक
३६५-३६९
( शरीरना स्वभावनुं निरूपण)
२५. स्नानाष्टक
३७०३७४
मळ-मूत्रादिथी परिपूर्ण शरीर सदा अशुचि अने आत्मा स्वभावथी
पवित्र छे, माटे बन्ने प्रकारे स्नान व्यर्थ छे................................. १-२ ................. ३७०
सत्पुरुषोनुं स्नान विवेक छे जे मिथ्यात्वादिरूप अभ्यंतर मळने नष्ट करे छे ३ .................. ३७१
समीचीन परमात्मारूप तीर्थोमां स्नान करवुं ते ज श्रेष्ठ छे .................... ४ .................... ३७२
जेमणे ज्ञानरूप समुद्र जोयो नथी तेओ ज गंगा आदि
तीर्थाभासोमां स्नान करे छे....................................................... ५ .................... ३७२
मनुष्य शरीरने शुद्ध करी शकनार कोईपण तीर्थ संभव नथी ................... ६..................... ३७२
कपूरादिनो लेप करवा छतां पण शरीर स्वभावथी दुर्गन्ध ज छोडे छे ....... ७ .................... ३७३
भव्य जीव आ स्नानाष्टक सांभळीने सुखी थाव ................................... ८ .................... ३७३
२६. ब्रÙचर्याष्टक
३७५३७८
मैथुन संसारवृद्धिनुं कारण छे ............................................................. १ .................... ३७५
मैथुनकर्ममां पशुओ रत रहेवाथी तेने पशुकर्म कहेवामां आवे छे ............. २ .................... ३७५
जो मैथुन पोतानी स्त्री साथे पण सारुं होय तो तेनो
पर्वोमां त्याग शा माटे करवामां आवत? .................................... ३ .....................३७६
अपवित्र मैथुनसुखमां विवेकी जीवने अनुराग थतो नथी ........................ ४ .....................३७६
अपवित्र मैथुन अनुरागनुं कारण मोह छे ........................................... ५ .....................३७६
मैथुन संयमनो घातक छे.................................................................. ६..................... ३७७
मैथुनमां प्रवृत्ति पापना कारणे थाय छे............................................... ७ .................... ३७७
विषयसुख विष सद्रश छे ................................................................. ८ .................... ३७७
आ ब्रह्मचर्याष्टकनुं निरूपण मुमुक्षु जीवो माटे करवामां आव्युं छे ............. ९ .................... ३७८
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ २४ ]