मोहना निमित्ते थनारी मोक्षनी पण अभिलाषा सिद्धिमां बाधक थाय छे . १८ ...................३६२
चिद्रूपना चिन्तनमां बीजी तो शुं, शरीर साथे पण प्रीति रहेली नथी...... १९ ...................३६२
शुद्धनयथी तत्त्व अनिर्वचनीय छे ........................................................ २० ...................३६३
समीचीन परमात्मारूप तीर्थोमां स्नान करवुं ते ज श्रेष्ठ छे .................... ४ .................... ३७२
जेमणे ज्ञानरूप समुद्र जोयो नथी तेओ ज गंगा आदि
कपूरादिनो लेप करवा छतां पण शरीर स्वभावथी दुर्गन्ध ज छोडे छे ....... ७ .................... ३७३
भव्य जीव आ स्नानाष्टक सांभळीने सुखी थाव ................................... ८ .................... ३७३
मैथुनकर्ममां पशुओ रत रहेवाथी तेने पशुकर्म कहेवामां आवे छे ............. २ .................... ३७५
जो मैथुन पोतानी स्त्री साथे पण सारुं होय तो तेनो
अपवित्र मैथुन अनुरागनुं कारण मोह छे ........................................... ५ .....................३७६
मैथुन संयमनो घातक छे.................................................................. ६..................... ३७७
मैथुनमां प्रवृत्ति पापना कारणे थाय छे............................................... ७ .................... ३७७
विषयसुख विष सद्रश छे ................................................................. ८ .................... ३७७
आ ब्रह्मचर्याष्टकनुं निरूपण मुमुक्षु जीवो माटे करवामां आव्युं छे ............. ९ .................... ३७८