Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 9-10 (1. Dharmopadeshamrut).

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(शार्दूलविक्रीडित)
संसारे भ्रमतश्चिरं तनुभृतः के के न पित्रादयो
जातास्तद्वधमाश्रितेन खलु ते सर्वें भवन्त्याहताः
पुंसात्मापि हतो यदत्र निहतो जन्मान्तरेषु ध्रुवम्
हन्तारं प्रतिहन्ति हन्त बहुशः संस्कारतो नु क्रुधः
।।।।
अनुवाद : संसारमां चिरकाळथी परिभ्रमण करनार प्राणीने क्या क्या जीव
पिता, माता, भाई आदि नथी थया? तेथी ते जीवोना घातमां प्रवर्ततो प्राणी
निश्चयथी ते बधाने मारे छे. आश्चर्य तो ए छे के ते पोते पोतानो पण घात करे
छे. आ भवमां जे बीजा द्वारा मरायो छे ते निश्चयथी अन्य भवमां क्रोधनी वासनाथी
पोताना ते घातकनो अनेकवार घात करे छे, ए खेदनी वात छे.
विशेषार्थ : जन्म-मरणनुं नाम संसार छे. आ संसारमां परिभ्रमण करतां प्राणीने
भिन्न-भिन्न भवोमां घणाखरा जीवो माता-पिता आदि संबंधो पाम्या छे. तेथी जे प्राणी निर्दय
थईने ते जीवोनो घात करे छे ते पोताना माता-पिता आदिनो ज घात करे छे. बीजुं तो शुं कहीए,
क्रोधी जीव आत्मघात पण करी बेसे छे. आ क्रोधनी वासनाथी आ जन्ममां कोई अन्य प्राणी द्वारा
मरायेलो जीव पोताना ते घातकनो जन्मान्तरोमां अनेकवार घात करे छे. तेथी अहीं एम उपदेश
आपवामां आव्यो छे के जे क्रोध अनेक पापोनो जनक छे तेनो परित्याग करीने जीवदयामां प्रवृत्त
थवुं जोईए. ९.
(शार्दूलविक्रीडित)
त्रैलोक्यप्रभुभावतो ऽपि सरुजो ऽप्येकं निजं जीवितं
प्रेयस्तेन बिना स कस्य भवितेत्याकांक्षतः प्राणिनः
निःशेषव्रतशीलनिर्मलगुणाधारात्ततो निश्चितं
जन्तोर्जीवितदानतस्त्रिभुवने सर्वप्रदानं लघु
।।१०।।
अनुवाद : रोगी प्राणीने पण त्रणे लोकनी प्रभुतानी अपेक्षाए एक मात्र
पोतानुं जीवन ज प्रिय होय छे. कारण ए छे के ते विचारे छे के जीवन नष्ट
थई गया पछी ते त्रणे लोकोनी प्रभुता भला कोने प्राप्त थवानी? निश्चयथी ते
जीवनदान समस्त व्रत, शील अने अन्य अन्य निर्मळ गुणोना आधारभूत छे तेथी
[ पद्मनन्दि-पंचविंशतिः