Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration). Prakashakiy Nivedan (Pratham Avrutti Prasange).

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‘पद्मनंदिपंचविंशति’ना प्रकाशन प्रसंगे
प्रकाशकीय निवेदन
आ ‘पद्मनंदिपंचविंशति’ (गुजराती भाषांतर सहित) प्रकाशित करतां अति हर्ष थाय
छे. आ ग्रंथनी रचना विक्रमनी ११मी सदीमां थई होय तेम संभवे छे. अनेक जूनी प्रतोना
आधारे प्रो० ए. एन. उपाध्ये अने प्रो० हीरालाल जैने आ ग्रन्थनुं संपादन करेल अने तेनो
हिंदी भाषामां अनुवाद पं. बालचंद्र सिद्धान्तशास्त्रीए करेल, जे ‘जीवराज ग्रंथमाला’मां प्रकाशित
थयेल तेना उपरथी आ गुजराती भाषांतर ब्र० व्रजलाल गिरधरलाल शाहे (वढवाण शहेर)
करी आपेल छे. ब्रह्मचारी भाई श्री वजुभाईए आ उपरांत बीजां अनेक शास्त्रोनां भाषांतर
निस्पृहपणे करेल छे. ते बदल तेओ धन्यवादने पात्र छे.
आ शास्त्रना श्लोकनां, उद्धरण अनेक दिगंबर शास्त्रोमां जोवामां आवे छे, तेथी एम
फलित थाय छे के तेमना पछी थयेल दिगंबर संतोए आ शास्त्रने आधारभूत गण्युं छे.
वर्तमानमां पण आ शास्त्रना अनेक श्लोको विद्वद्वर्गमां अतिशय प्रचलित छे.
प्रस्तुत शास्त्र पद्मनंदिस्वामी विरचित छव्वीस लघु ग्रंथोनो संग्रह छे. प्रत्येक ग्रंथमां
विषयने अनुसरीने नैतिक अने धार्मिक रीते विषयनुं मार्मिक प्रतिपादन करवामां आव्युं छे. जेनो
रसास्वाद स्वाध्यायपूर्वक करवा वाचकवर्गने भलामण छे. प्रतिपादननी शैली घणी ज सरळ अने
रुचिकर छे. बे स्तुति (१३-१४) प्राकृत भाषामां रचेली छे. बाकीनी तमाम रचना संस्कृत
श्लोकोमां छे. कुल ९३९ पदोनो संग्रह आ ग्रंथमां छे.
आ ग्रन्थ, श्री जीवराज ग्रंथमाला प्रकाशित हिंदी अनुवाद परथी, गुजराती मुमुक्षु
समाजने मातृभाषामां समजी शकाय ते हेतुथी, प्रकाशित करवामां आवेल छे, तेथी उक्त
ग्रंथमालाना अधिकारीवर्गनो तथा हिंदी अनुवादकनो आभार मानवामां आवे छे. गुजराती
भाषांतर सहित आ शास्त्र प्रथमवार आ पहेलां श्री वीतराग सत्साहित्य प्रसारक ट्रस्ट,
भावनगरथी प्रकाशित थयेल छे.
परमपूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना तथा तद्भक्त प्रशममूर्ति पूज्य बहेनश्री चंपाबेनना
धर्मोपकारप्रतापे मुमुक्षु समाजमां अध्यात्मतत्त्वनी रुचिनो प्रसार घणो थयेल छे. मुमुक्षुओनी
रुचिना पोषण अर्थे आ ट्रस्ट द्वारा अध्यात्मप्रधान शास्त्रोनां प्रकाशननुं कार्य अविरतपणे प्रवर्ती
रह्युं छे. ते अंतर्गत श्री ‘पद्मनंदि
पंचविंशति’ गुजराती भाषांतरनी आ आवृत्ति प्रसिद्ध थई रही
छे. वर्तमानमां जे कांई पभावना, अने अनेक जीवोनी आध्यात्मिक विषयमां रुचि थई छे ते
पूज्य गुरुदेव अने पूज्य भगवती माता (बहेनश्री चंपाबेन)ना धर्मोपकारने ज आभारी छे.
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