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थाय छे. तेमांथी ५०
आवता आ शास्त्रनी किंमत रूा १०=०० राखवामां आवी छे.
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‘हुं सिद्ध समान शुद्ध छुं’ एवुं द्रढ श्रद्धान थाय छे; ते साथे, पोतानी
वर्तमान दशा तो अपूर्ण
‘सम्यग्दर्शन’ अने समकितीना सहज परिणमन विषे आ युगमां जे कांई
स्पष्टता थयेल देखाय छे, ते सर्व पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामीना पुनित
प्रतापे ज छे. वळी आजे पूज्य गुरुदेव द्वारा प्रदर्शित जे स्वानुभवप्रधान
अध्यात्ममार्ग वृद्धिंगत स्थितिमां छे ते तेमना परमभक्त स्वानुभवपरिणत
पूज्य बहेनश्री चंपाबेनना मंगलप्रतापे छे.
आचार्य मुनिभगवंत पण आत्मिक रत्नत्रयरूप प्रगाढ शुद्धतामां महालता
हता; ते साथे भक्तिनो उमळको पण तेमने एवो ज हतो, जाणे
भगवाननी स्तुति करवानुं तेमने व्यसन न होय! तेमांथी जुदा जुदा
आचार्य, मुनि अने कविओनां पांच स्तोत्रो
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मारोठथी छपायेल ‘स्तोत्रत्रयी’साथनो अने एकीभावस्तोत्र माटे भारतीय
ज्ञानपीठ प्रकाशनथी प्रकाशित कल्याणकल्पद्रुमनो आधार लेवामां आवेल छे
अने ते माटे संस्था उक्त त्रणेय प्रकाशकोनी आभारी छे. वळी आ
पुस्तकमां चार स्तोत्रना संस्कृतनो पद्यानुवाद पण छापवामां आवेल छे,
ते आ ट्रस्टथी छपायेल जिनेन्द्रस्तवनमंजरी अने जिनेन्द्रस्तवनमाळामां
छपायेल स्तवनोना आधारे छे. तेमां कल्याणमंदिरस्तोत्रमांनी २८मी कडीनो
गुजराती पद्यानुवाद उपलब्ध नहीं होवाथी पंडितरत्न श्री हिंमतलाल
जेठालाल शाहे ते कडीनो पद्यानुवाद आचार्यश्रीना हृदयना भावोने स्पर्शीने
करी आप्यो छे, ते बदल ट्रस्ट तेमनुं घणुं ज आभारी छे.
एवी भावना.
बहेनश्री चंपाबेननी
७६मी जन्मजयंती
श्रा. व. २, वि.सं. २०४५
ता. १८-८-८९
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ते ज परमार्थ स्तुति छे. नीचली भूमिकामां देव-शास्त्र-गुरुनी
भक्तिनो भाव आवे ते व्यवहार छे, शुभ राग छे. कोई कहेशे
के आ वात अघरी पडे छे. पण भाई! अनंता धर्मात्मा क्षणमां
भिन्न तत्त्वोनुं भान करी
पदार्थो के अशुभ भावोनी तो वात ज शी? तेमनाथी तारे शुं
प्रयोजन छे?
पादपंकजनी भक्ति हो
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दिवाकर विरचित ---------------------------------------------- २९
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स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्
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पापरूपी अंधकारना समूहोनो नाश करनार अने युगादिथी संसाररूपी
समुद्रमां पडेला माणसोना आश्रयरूप एवा श्री आदिनाथ जिनेन्द्रस्वामीना
बन्ने चरणने रूडे प्रकारे नमस्कार करी हुं प्रथम जिनेन्द्र श्री आदिनाथ
भगवाननी स्तुति करुं छुं. इन्द्रदेवे पण तमाम शास्त्रोनुं तत्त्वज्ञान
जाणवाथी उत्पन्न थयेली निपुण बुद्धि वडे त्रणलोकनुं चित्त हरण करे एवा
उदार स्तोत्रथी पण तेमनी स्तुति करी छे, एवा जिनेन्द्र आदिनाथस्वामीनी
हुं पण स्तुति करीश. १-२.
बाळक सिवाय बीजुं कोण पाणीमां पडेला चंद्रमांना पडछायाने हाथोथी
पकडवानी इच्छा करी शके छे? अर्थात् मारो आ प्रयत्न बाळकना जेवो
छे. ३.
कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्धया
को वा तरीतुमलमंबुनिधिं भुजाभ्याम्
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नथी तो मारा जेवा अल्पज्ञानीनी तो वात ज शी करवी? हे नाथ! जे
समुद्रमां प्रलयकाळना वायुना कारणथी मगरमच्छ आदि भयंकर जीवो
प्रचंडता धारण करी रह्या छे, तेवा समुद्रने पोताना बेउ हाथो द्वारा कोण
तरी शके? ४.
कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः
नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम्
वश थईने करुं छुं. पोतानी शक्तिनो विचार कर्या वगर हरणी शुं
पोताना बच्चाने सिंहथी बचाववा तेनी सामे थती नथी? अर्थात् सामे
थाय छे. ५.
त्त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरूते बलान्माम्
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तच्चाम्रचारूकलिकानिकरैकहेतुः
करवा बळात्कारथी प्रवर्तावे छे. जेम चैत्र मासने विषे आंबाना महोरना
प्रभावथी कोयल मधुर शब्दो उच्चारे छे ते प्रमाणे आपनी भक्ति ज मने
आपनी स्तुति करवाने प्रेरे छे. ६.
पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम्
सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम्
करवाथी जन्मोजन्ममां एकठां थयेलां जीवोना पापो क्षणभरमां नष्ट थई
जाय छे. ७.
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चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु
मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूदबिन्दुः
सज्जनोना चित्त तो हरण करशे ज; जेमके कमळना पांदडां पर पडेलुं
पाणीनुं टीपुं मोती जेवुं सुंदर देखाईने लोकोना चित्तने हरण करे छे. ८.
त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हन्ति
पद्माकरेषु जलजानि विकाश भाञ्जि
साची वात छे के सूर्य घणो दूर होवा छतां तेनां किरणो सरोवरमांनां
कमळोने प्रफुल्लित करे छे. ९.
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भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः
भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति
संसारमां आपना समान थाय; अथवा ते स्वामीथी शुं प्रयोजन छे? के
जे आ लोकमां पोताना आश्रितोने सम्पत्ति वडे पोताना बराबर करता
नथी. १०.
नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः
क्षारं जलं जलनिधेरसितुं क इच्छेत्
पामता नथी केमके चंद्रना किरण जेवुं उज्ज्वळ क्षीरसागरनुं दूध जेवुं जळ
पीधा पछी समुद्रना खारा पाणीने पीवाने कोण इच्छे? कोई ज नहीं. ११.
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निर्मापितस्त्रिभुवनैकललामभूत !
तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां
यत्ते समानमपरं नहि रुपमस्ति
ज छे. तेथी ज संसारमां आपना समान सुंदर बीजुं कोईनुं रूप होतुं ज
नथी. १२.
निःशेषनिर्जितजगत्त्रितयोपमानम्
यद्वासरे भवति पाण्डुपलाशकल्पम्
वळी जेने देव, मनुष्य, धरणेंद्र वगेरेनी आंखोने पोतानी तरफ आकर्षित
करवावाळा पण घणी उत्कंठाथी जुए छे एवुं आपनुं त्रण भुवनमां अति
सुंदर मुख क्यां अने कलंकित चंद्रमा क्यां? के जे दिवसमां फिक्को पडी
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उपमा आपे छे, पण ए बराबर नथी, कारण के आपनी शोभा स्थायी
छे अने चंद्रमानी शोभा अस्थायी छे. ए सिवाय ए कलंकी छे ने आप
निष्कलंकी छो.) १३.
शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लङ्घयन्ति
कस्तान्निवारयति संचरतो यथेष्टम्
छो तेथी आपना आश्रये रहेला ते गुणोने इच्छा प्रमाणे वर्ततां कोण
अटकावी शके एम छे? १४.
किं मंदराद्रिशिखरं चलितं कदाचित्
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पवनथी अन्य पर्वतो हली शके छे, परंतु सुमेरू पर्वतने चलायमन करी
शकातो नथी. १५.
कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि
दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः
नीकळे छे अने आपनो प्रकाश निर्धूम छे, धूमाडा वगरनो छे, पापरहित
छे. बीजा दीवाओमां तेलनी जरूर रहे छे परंतु आपमां तेनी तेनी जरूर
रहेती नथी. बीजा दीवाओ बहु ज थोडी जग्या प्रकाशित करे छे; ज्यारे
आप समग्र त्रण लोकने प्रकाशित करो छो; ए सिवाय बीजा दीवाओ
एक साधारण हवानी झपटथी बुझाई जाय छे, परंतु आपना प्रकाशने
तो मोटा मोटा पर्वतो हलावी नांखे एवी हवा पण कंई बगाड करी शकती
नथी. १६.
सूर्यातिशायिमहिमासि मुनींद्र ! लोके
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करी शकतो नथी. सूर्य तो दिवसमां क्रमक्रमथी तथा मध्य लोकमां ज प्रकाश
करे छे. परंतु आप तो सदा, एकसाथे त्रण जगतने प्रकाशित करो छो.
सूर्यनां तेजने वादळ ढांकी दे छे, परंतु आपना प्रभावने तो कोई ढांकी
शकतुं नथी. १७.
गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम्
विद्योतयज्जगदपूर्वशशांकबिम्बम्
अधिकतर छे कारण के चंद्रमानो उदय निरंतर रहेतो नथी परंतु आपनुं
मुखचंद्र सदा उदीत
मुख
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युष्मन्मुखेंदुदलितेषु तमःसु नाथ
कार्यं कियज्जलधरैर्जलभारनम्रैः
धान्य पाकी गया पछी
नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु
तेजः स्फु रन्मणिषु याति यथा महत्वं
नैवं तु काचशकले किरणाकुलेऽपि
विषे प्राप्त थयुं नथी केम के प्रकाशमान महामणिना समूहने विषे जेवुं
तेजनुं प्राबल्य छे तेवुं तेज काचना ककडाने विषे जणातुं ज नथी. २०.
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दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति
कश्चिन्मनो हरति नाथ भवांतरेऽपि
पाम्युं छे एनुं कारण ए छे के ए देवो राग
मने लाभ थयो छे ते एटलो ज के भवान्तरने विषे पण अन्य कोई देव
मारुं मन हरण करी शकनार नथी.
प्राच्येव दिग्जनयति स्कुरदंशुजालम्