Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भक्तामरस्तोत्र ][ ९
भावार्थ :हे नाथ! देवांगना आपना मनमां रंचमात्र विकार
पेदा करी शकी नहीं ए कंई आश्चर्यनी वात नथी जेमके प्रलय काळना
पवनथी अन्य पर्वतो हली शके छे, परंतु सुमेरू पर्वतने चलायमन करी
शकातो नथी. १५.
निर्धूमवर्तिरपवर्जिततैलपूरः
कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि
गम्यो न जातु मरूतां चलिताचलानां
दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः
।।१६।।
धूम्रे रहित, नहि वाट, न तेलवाळो,
ने आ समग्र त्रण लोक प्रकाशनारो;
डोलावनार गिरि वायु न जाय पासे,
तुं नाथ छो अपर दीप जगत्प्रकाशे. १६.
भावार्थ :हे नाथ! आप समग्र संसारने प्रकाशित करवावाळा
अपूर्व दीपक छो, ते ए प्रमाणे के बीजा दीवाओनी बत्तीमांथी धूमाडा
नीकळे छे अने आपनो प्रकाश निर्धूम छे, धूमाडा वगरनो छे, पापरहित
छे. बीजा दीवाओमां तेलनी जरूर रहे छे परंतु आपमां तेनी तेनी जरूर
रहेती नथी. बीजा दीवाओ बहु ज थोडी जग्या प्रकाशित करे छे; ज्यारे
आप समग्र त्रण लोकने प्रकाशित करो छो; ए सिवाय बीजा दीवाओ
एक साधारण हवानी झपटथी बुझाई जाय छे, परंतु आपना प्रकाशने
तो मोटा मोटा पर्वतो हलावी नांखे एवी हवा पण कंई बगाड करी शकती
नथी. १६.
नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः
स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति
नांभोधरोदरनिरूद्धमहाप्रभावः
सूर्यातिशायिमहिमासि मुनींद्र ! लोके
।।१७।।