पवनथी अन्य पर्वतो हली शके छे, परंतु सुमेरू पर्वतने चलायमन करी
शकातो नथी. १५.
कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि
दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः
नीकळे छे अने आपनो प्रकाश निर्धूम छे, धूमाडा वगरनो छे, पापरहित
छे. बीजा दीवाओमां तेलनी जरूर रहे छे परंतु आपमां तेनी तेनी जरूर
रहेती नथी. बीजा दीवाओ बहु ज थोडी जग्या प्रकाशित करे छे; ज्यारे
आप समग्र त्रण लोकने प्रकाशित करो छो; ए सिवाय बीजा दीवाओ
एक साधारण हवानी झपटथी बुझाई जाय छे, परंतु आपना प्रकाशने
तो मोटा मोटा पर्वतो हलावी नांखे एवी हवा पण कंई बगाड करी शकती
नथी. १६.
सूर्यातिशायिमहिमासि मुनींद्र ! लोके