Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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८ ][ पंचस्तोत्र
जाय छे, शोभा रहित थई जाय छे. (घणा लोको आपना मुखने चंद्रमानी
उपमा आपे छे, पण ए बराबर नथी, कारण के आपनी शोभा स्थायी
छे अने चंद्रमानी शोभा अस्थायी छे. ए सिवाय ए कलंकी छे ने आप
निष्कलंकी छो.) १३.
संपूर्णमंडलशशाङ्गकलाकलाप
शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लङ्घयन्ति
ये संश्रितास्त्रिजगदीश्वरनाथमेकं
कस्तान्निवारयति संचरतो यथेष्टम्
।।१४।।
संपूर्ण चंद्रतणी कान्ति समान तारा,
रूडा गुणो भुवन त्रैण उलंघनारा;
त्रैलोकनाथ तुज आश्रित एक तेने,
स्वेच्छा थकी विचरतां कदि कोण रोके? १४.
भावार्थ :हे प्रभो! पूर्ण चंद्रमानी कळानी माफक निर्मळ एवा
आपना गुणो फेलाई गया छे; केमके त्रणे जगत्ना आप एकला ज स्वामी
छो तेथी आपना आश्रये रहेला ते गुणोने इच्छा प्रमाणे वर्ततां कोण
अटकावी शके एम छे? १४.
चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनाभि
र्नीतं मनागपि मनो न विकारमार्गम्
कल्पान्तकालमरुता चलिताचलेन
किं मंदराद्रिशिखरं चलितं कदाचित्
।।१५।।
आश्चर्य शुं प्रभुतणा मनमां विकार
देवांगना न कदि लवी शकी लगार;
संहारकाळ पवने गिरि सर्व डोले,
मेरु गिरि शिखर शुं कदि तोय डोले? १५.