Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१६ ][ पंचस्तोत्र
को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषै
स्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश
दोषैरुपात्तविविधाश्रयजातगर्वैः,
स्वप्नांतरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि
।।२७।।
आश्चर्य शुं गुण ज सर्व कदि मुनीश,
तारो ज आश्रय करी वसता हंमेश;
दोषो धरी विविध आश्रय उपजेला,
गर्वादिके न तमने स्वपने दीठेला. २७.
भावार्थ :हे मुनींद्र! तमाम गुणो ज तमारामां परिपूर्ण रीते
आश्रय करीने रहेला छे एमां शुं आश्चर्य छे? केमके अनेक स्थळे आश्रय
मळवाथी जेमने गर्व उत्पन्न थयेलो छे, एवा गर्वादिदोषो तो आपने विषे
स्वप्नांतरे पण जोयेला ज नथी. २७.
उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूख
माभातिरुपममलं भवतो नितांतम्
स्पष्टोल्लसत्किरणमस्ततमोवितानं
बिंबं रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्ति
।।२८।।
ऊंचा अशोकतरु आश्रित कीर्ण ऊंच,
अत्यंत निर्मळ दीसे प्रभु आप रूप;
ते जेम मेघ समीपे रही सूर्यबिंब;
शोभे प्रसारी किरणो हणीने तिमिर. २८.
भावार्थ :हे जिनेश्वर! जेनां किरणो उपरनी तरफ फेलाई रह्यां
छे, एवुं आपनुं उज्ज्वल शरीर, ऊंचा अशोक वृक्षनी नीचे बहु सुंदर
देखाय छे मानो, जेनां किरणो सर्वे दिशाओने प्रकाशित करी रह्या छे अने
अंधकारनो सर्वथा नाश करे छे एवो सूर्य पण मेघोनी आसपास शोभे
तेम आप शोभी रह्या छो. २८.