Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भक्तामरस्तोत्र ][ १७
सिंहासने मणिमयूखशिखाविचित्रे,
विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम्
बिंम्बं वियद्विलसदंशुलतावितानं,
तुंगोदयाद्रिशिरसीव सहस्त्ररश्मेः
।।२९।।
सिंहासने मणि तणा किरणे विचित्र,
शोभे सुवर्ण सम आप शरीर गौर;
ते सूर्यबिंब उदयाचळ शिर टोचे,
आकाशमां किरण जेम प्रसरी शोभे. २९.
भावार्थ :हे भगवन्! जेवी रीते उदयाचळ पर्वतनी उपर
आकाशने विषे प्रकाशमान किरणो रूपी लताओना समूह वडे सूर्यनुं बिंब
शोभे छे तेवी ज रीते हे जिनेन्द्र! मणीओना किरणोनी पंक्तिओ वडे
करीने विचित्र देखाता सिंहासन पर सुवर्ण जेवुं मनोहर आपनुं शरीर
अत्यंत शोभे छे. २९.
कुंदावदातचलचामरचारुशोभं,
विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम्
उद्यघ्छशांकशुचिनिर्झरवारिधार
मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौंभम् ।।३०।।
धोळां ढळे अमरकुंद समान एवुं,
शोभे सुवर्णमय रम्य शरीर तारुं;
ते उगता शशिसमा जळ झर्ण धारे,
मेरु तणा कनकना शिर पेठ शोभे. ३०.
भावार्थ :जेम उदय पामेला चंद्रमाना जेवी निर्मळ पाणीना
झरणनी धाराओ वडे, मेरू पर्वतनुं सुवर्णमय ऊंचुं शिखर शोभी रहे छे,
तेम मोगराना पुष्प जेवा धोळा (फरता) वींजाता चामरो वडे, सोनाना जेवुं
मनोहर, आपनुं शरीर शोभी रहेल छे. ३०.