Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३२ ][ पंचस्तोत्र
हृद्वर्तिनि त्वयि विभो ! शिथिलीभवन्ति,
जन्तोः क्षणेन निबिडा अपि कर्मबन्धाः
सद्यो भुजङ्गममया इव मध्यभाग
मभ्यागते वनशिखण्डिनि चन्दनस्य ।।।।
प्राणीओना निबिड पण ते कर्मबंधो अहा! ह्यां,
विभु थाये शिथिल क्षणमां वर्तता तुं हृदामां;
रे! शिखंडी सुखडवननी मध्यमां आवी जातां,
जेवी रीते भुजगमय ते शीघ्र शिथिल थातां. ८.
अर्थ :जेम मोरना आगमनमात्रथी ज चंदनना वृक्षोने
विंटळायेला सर्पोनी पकड तत्काल ढीली थई जाय छे तेवी ज रीते हे
प्रभो! आप ज्यारे भव्य जीवोना मनमंदिरमां निवास करो छो त्यारे
तेमना द्रढ कर्मोना बंधन पण तत्क्षण ढीलां पडी जाय छे. ८.
मुच्यन्त एव मनुजाः सहसां जिनेन्द्र, !
रौद्रेरूपद्रवशतैस्त्वयि वीक्षितेऽपि
गोस्वामिनि स्फु रिततेजसि दृष्टमात्रेः
चोरैरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः
।।।।
मूकाये छे मनुज सहसा रौद्र उपद्रवोथी,
अत्रे स्वामी! जिनपति! तने मात्र निरीक्षवाथी;
गोस्वामीने स्फुरित प्रभने मात्र अत्रे दीठाथी,
जेवी रीते झट पशुगणो भागता चोरटाथी. ९.
अर्थ :जेम गोस्वामीने (तेजस्वी सूर्य, प्रतापी राजा अथवा
बळवान गोवाळियाओने) देखतां ज भयभीत थईने शीघ्र भागी जता
चोरोना पंजामांथी गाय, भेंस आदि पशुओ मुक्त थई जाय छे तेवी ज
रीते हे जिनेन्द्र! आपना सम्यक् प्रकारे दर्शन करतां ज मनुष्यो महा
भयानक सेंकडो उपद्रवोथी तत्काल मुक्ति पामे छे. ९.