Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कल्याणमंदिरस्तोत्र ][ ३१
योगीओने पण तुज गुणो गम्य जे होय नांहि,
ते कहेवामां क्यम प्रसर रे! माहरो थाय आंही!
तेथी आ तो थई वगर विचारी प्रवृत्ति आहा!
वा जल्पे जे खगगण खरे! निज केरी गिरामां. ६.
अर्थ :हे स्वामी! ज्यां योगीओ पण आपना गुणोनुं व्याख्यान
करी शकता नथी त्यां हुं तेमनुं वर्णन केवी रीते करी शकुं? तेथी आ
प्रकारनी स्तुति विचार कर्या विना थई छे केम के ज्यां कथन करवानी शक्ति
ज नथी त्यां करवामां आवेली कोई पण स्तुति विचार रहित ज गणाय.
छतां पण जेम पक्षीओ मनुष्यनी भाषामां बोलवा असमर्थ होवा छतां
पोतानी भाषामां बोल्या करता होय छे तेम हुं पण स्तुति करवाने प्रवृत्त
थयो छुं. ६.
आस्तामचिन्त्यमहिमा जिन - संस्तवस्ते,
नामापि पाति भवतो भवतो जगन्ति
तीव्रातपोपहतपान्थजनान्निदाधे,
प्रीणाति पद्मसरसः सरसोऽनिलोऽपि
।।।।
दूरे तारूं स्तव जिन! अचिंत्य प्रभावी रहोने!
रक्षे नामे पण तमपणुं जन्मथी भुवनोने;
वायु रूडो कमलसरनो सुरसीलो वहे जे,
तीव्रोत्तापे हत पथिकने ग्रीष्ममां रीझवे ते. ७.
अर्थ :हे जिनेन्द्र! अचिन्त्य महिमा धारण करनार आपनी
स्तुति तो दूर ज रहो, आपनुं नाम मात्र पण संसारना प्राणीओने
दुःखोथी बचावी ले छे. जेम गरमीनी ॠतुमां असह्य तापथी व्याकुळ
बनेला मुसाफरोने केवळ कमळवाळा सरोवर ज सुख आपतां नथी परंतु
तेमना सूक्ष्म जळकणोथी मळेलो पवन पण सुख आपे छे. ७.