Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 30 of 105
PDF/HTML Page 38 of 113

 

background image
३० ][ पंचस्तोत्र
हे जिनेंदा! अनुभव करे मोहविनाश द्वारा,
तोये मर्त्यो समरथ नथी गुणवा गुण त्हारा;
कल्पांते ज्यां नीरनिधितणुं नीर निश्चे वमाय,
कोनाथी त्यां प्रकट पण रे! रत्नराशि मपाय? ४.
अर्थ :हे नाथ! मनुष्य, मोहनो क्षय थवाथी अनुभव करवा
छतां पण आपना गुणो गणवाने समर्थ थई शकतो नथी जेम प्रलय समये
समुद्र पोतानुं बधुं जळ बहार फेंकीने बिल्कुल खाली थई जाय छे अने
ते वखते तेमां रहेल रत्नो स्पष्टपणे प्रगट थवा छतां तेने कोई गणी शकतुं
नथी. ४.
अभ्युद्यतोऽस्मि तव नाथ जड़ाशयोऽपि,
कर्तुं स्तवं लसदसंख्यगुणाकरस्य
बालोऽपि किं न निज बाहुयुगं वितत्य,
विस्तीर्णतां कथयति स्वधियाम्बुराशेः
।।।।
संख्यातीता महद् गुणनी खाण एवा तमारुं,
स्तोत्र स्वामी! जडमति छतां गुंथवा बुद्धि धारूं!
भाखे ना शुं शिशुय जलधि केरी विस्तिर्णताने,
ह्यां विस्तारी स्वभुजयुगने निज बुद्धि प्रमाणे! ५.
अर्थ :हे भगवान्! जो के हुं जडबुद्धि छुं तो पण असंख्य
गुणोथी सुशोभित एवा आपनो महिमा गावाने तैयार थयो छुं जेम
बाळक पण पोतानी बुद्धि प्रमाणे पोताना बन्ने हाथ फेलावीने समुद्रनी
विशाळता बतावे छे के समुद्र आवडो मोटो छे. ५.
ये योगिनामपि न यान्ति गुणास्तवेश !
वक्तुं कथं भवति तेषु ममावकाशः
जाता तदेवमसमीक्षितकारितेयं,
जल्पन्ति वा निजगिरा ननु पक्षिणोऽपि
।।।।