Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कल्याणमंदिरस्तोत्र ][ २९
अर्थ :कल्याणोना मंदिर, उदार, पापोनो नाश करनार,
संसारना दुःखोथी डरनाराओने निर्भय पद आपनार, अनिंद्य (अतिशय
सुंदर) अने संसार
- समुद्रमां डूबता सर्व जीवोनो उद्धार करवामां जहाज
समान जिनेन्द्र भगवानना चरणकमळोने नमस्कार करीने, जे साक्षात्
महिमाना समुद्र छे, जेमनी स्तुति करवाने स्वयं विशाळबुद्धि (बार
अंगना ज्ञाता) बृहस्पति पण समर्थ नथी, जेमणे कर्मठनो गर्व
भस्मीभूत कर्यो हतो ते पार्श्वनाथ तीर्थंकरनी आश्चर्यनी वात छे के हुं
स्तुति करुं छुं. १
२.
सामान्यतोऽपि तव वर्णयितु स्वरूप -
मस्मादृशाः कथमधीश ! भवन्त्यधीशाः
धृष्ठोऽपि कौशिकशिशुर्यदि वा दिवान्धो,
रूपं प्ररूपयति किं किल घर्मरश्मेः
।।।।
(मंदाक्रांता)
सामान्येथी पण स्वरूप तो वर्णवा तारुं अत्र,
केवी रीते अम सरिखडा नाथ हे! थाय शकत?
धीठो तोये घुवड शिशु रे! दिवसे आंधळो जे,
शुं भानुनुं स्वरूप प्ररूपे निश्चये एहवो ते? ३.
अर्थ :हे स्वामी! मारा जेवो अल्पबुद्धि सामान्यपणे पण
आपना गुणोनुं वर्णन करवा केवी रीते समर्थ थई शके? अर्थात् थई शके
नहि, जेम दिवसे जे देखी शकतुं नथी एवुं घुवडनुं बच्चुं धीठ थईने पण
शुं सूर्यना बिंबनुं वर्णन करी शके छे? ३.
मोहक्षयादनुभवन्नपि नाथ ! मर्त्यो,
नूनं गुणान्गणयितुं न तव क्षमेत
कल्पान्तवान्तपयसः प्रकटोऽपि यस्मा -
न्मीयेत केन जवधेर्ननु रत्नराशिः ।।।।