Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कल्याणमंदिरस्तोत्र ][ ४३
*तारा प्रादे नमन करता इन्द्रना शेखरोने,
छोडी, रत्ने विरचित छतां, इन्द्रनी पुष्पमाळा;
सेवे तारा पदयुगलने, तो पछी भव्य सुमना,
तारा संगे, जरूर जिनजी! अन्य स्थाने रमे ना. २८.
अर्थ :हे देवाधिदेव! दिव्यपुष्पोनी माळाओ आपना चरणोमां
प्रणाम करता देवेन्द्रोना रत्नोथी जडेला मुकुटोनां बंधनो पण छोडीने
आपना चरणोनो आश्रय ले छे अथवा योग्य ज छे के आपनो समागम
थतां सुमनसू अर्थात् पुष्पमाळाओ अथवा स्वच्छ मनवाळा भव्य प्राणी
बीजी जग्याए संतोष पामता नथी. २८.
त्वं नाथ जन्मजलधेर्विपराङ्मुखोऽपि,
यत्तारयस्यसुमतो निजपृष्ठलग्नान्
युक्तं हि पार्थिवनिपस्य सतस्तवैव,
चित्रं विभो यदसि कर्मविपाकशून्यः
।।२९।।
जन्माब्धिथी विमुख वरते तोय तुं जिनराज?
तारे छे जे स्वपीठ पर लागेल प्राणी समाज;
ते तुं पार्थिव नीरूपने युक्त निश्चे ज अत्रे,
तुं आश्चर्य! प्रभु! करमविपाक विहीन वर्ते! २९.
अर्थ :हे नाथ! जेम जळमां उलटो मूकेलो पाको घडो पोतानी
पीठ उपर बेसनाराओने किनारे लई जाय छे तेवी ज रीते हे स्वामी!
संसारसमुद्रथी विमुख थई जवा छतां आप आपना अनुयायी भव्यजीवोने
(संसार समुद्रना) किनारे लई जाव छो. पृथ्वीना स्वामी अने संरक्षक एवा
आपने माटे ए योग्य ज छे जेम परिपक्व घटने (माटे जळमांथी तारवानुं
उचित छे तेम.) परंतु हे प्रभु! मोटुं आश्चर्य तो ए छे के आप कर्मोना
विपाकथी शून्य छो. २९.
* उपलब्ध गुजराती पद्यानुवादमां आ श्लोकनो अनुवाद नहीं मळवाथी नवुं
बनावेल छे.