Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४८ ][ पंचस्तोत्र
आ जन्ममां हृदयमंथि पराभवोनो,
निवास हुं थई पड्यो इश मुनिओना! ३६.
अर्थ :हे मुनीश! मने विश्वास छे के पूर्वभवोमां में मनोवांछित
फळ देवाने समर्थ एवा आपना बन्ने चरणोनी पूजा करी नहि ते ज कारणे
हे मुनिनाथ! आ जन्ममां हुं हृदयने व्यथित करनार तिरस्कारोनुं पात्र
बन्यो छुं. ३६.
नूनं न मोहतिमिरावृतलोचनेन,
पूर्वं विभो सकृदपि प्रविलोकितोऽसि
मर्माविधो विधुरयन्ति हि मामनर्थाः,
प्रोद्यत्प्रबन्धगतयः कथमन्यथैते
।।३७।।
में मोहतिमिरथी आवृत नेत्रवाळे,
पूर्वे तने न निरख्यो नकी एक वारे;
ना तो मने दुःखी करे क्यम मर्मभेदी,
एही अनर्थ उदयागत विश्ववेदी! ३७.
अर्थ :हे प्रभो! मोहरूपी अंधकारथी नेत्रो अति आच्छादित
होवाना कारणे में पूर्वे एकवार पण आपना दर्शन कर्या नहि एवो मने
पूर्ण विश्वास छे. जो में आपना दर्शन कर्या होत तो उत्कटरूपे उत्पन्न
थता, संताननी परंपरा वधारनारा अने मर्मस्थानने भेदनारा आ अनर्थ
(दुःखदायक मोहभाव) मने शा माटे सतावेत? ३७.
भावार्थ :जडइन्द्रियरूप नेत्रोथी तो में आपना अनेक वार
दर्शन कर्या पण मोहान्धकार रहित ज्ञानरूपी नेत्रोथी एकवार पण दर्शन
कर्या नहि अर्थात् कदी पण आपना ज जेवा मारा शुद्धात्माने जोयो नहि
अने ए ज कारणे मने दुःखदायक मोहभावो सतावी रह्या छे. ३७.
आकर्णितोऽपि महितोऽपि निरीक्षितोऽपि,
नूनं न चेतसि मया विधृतोऽसि भक्त्या