Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कल्याणमंदिरस्तोत्र ][ ४९
जातोऽस्मि तेन जनबान्धव दुःखपात्रं,
यस्मात्क्रियाः प्रतिफलन्ति न भावशून्याः
।।३८।।
पूज्यो छतां श्रुत छतां निरख्यो छतांय,
धार्यो न भक्तिथी तने मुज चित्तमांय;
तेथी थयो हुं दुःखभाजन जिनराय!
ना भावविहीन क्रिया फलवंत थाय. ३८.
अर्थ :हे जगबंधु! जन्मजन्मान्तरोमां जो में आपनुं नाम
सांभळ्युं पण होय, आपनी पूजा करी पण होय तथा आपना दर्शन पण
कर्या होय परंतु ए तो निश्चय छे के में आपने भक्तिपूर्वक कदी पण मारा
हृदयमां धारण कर्या नथी. एनुं परिणाम ए आव्युं के हजी सुधी हुं आ
संसारमां दुःखनुं भाजन ज बनी रह्यो छुं कारण के भावरहित क्रिया
फळदायक थती नथी. ३८.
त्वं नाथ दुःखिजनवत्सल हे शरण्य,
कारुण्यपुण्यवसते वशिनां वरेण्य
भक्त्या नते मयि महेश दयां विधाय,
दुःखांकुरोद्दलनतत्परतां विधेहि
।।३९।।
हे नाथ! दुःखीजनवत्सल! हे शरण्य!
कारूण्यपुण्यगृह! संयमीमां अनन्य!
भक्तिथी हुं नत प्रति धरी तुं दयाने,
था देव! तत्पर दुःखांकुर छेदवाने! ३९.
अर्थ :हे नाथ, हे दीनदयाळ, हे शरणागतपाळ, हे करुणा-
निधान, हे इन्द्रियविजेता योगीन्द्र, हे महेश्वर, साची भक्तिपूर्वक नमेला
एवा मारा उपर दया लावीने, मारा दुःखांकुरोनो (मोहभावोनो) समूळ
नाश करवामां तत्पर थाव. ३९.