Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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५० ][ पंचस्तोत्र
निःसंख्यसारशरणं शरणं शरण्य
मासाद्य सादितरिपुप्रथितावदातम्
त्वत्पादपङ्कजमपि प्रणिधानवन्ध्यो,
वन्घ्योऽस्मि तद्भुवनपावन हा हतोऽस्मि
।।४०।।
निःसंख्य सत्त्वगृह ख्यात प्रभाववाळा,
ने शत्रुनाशक शरण्य अहो! तमारा;
पादाब्ज शर्ण लई जो छउं ध्यान वंध्य,
तो नष्ट हुं भुवनपावन! हुं ज वंध्य. ४०.
अर्थ :अरे! दुःखनी वात छे के हुं मोहभावना कारणे निर्बळ
थई रह्यो छुं. हे त्रणलोकने पावन करनार, अशरण शरण,
शरणागतप्रतिपालक, कर्मविजेता, प्रभावधारक! आपना चरणकमळ प्राप्त
करवा छतां पण जो में तेमनुं ध्यान न कर्युं तो हे प्रभो! मारा जेवो
अभागी कोई नथी. ४०.
देवेन्द्रवन्द्य विदिताखिल वस्तुसार,
संसारतारक विभो भुवनाधिनाथ
त्रायस्व देव करुणाहृद मां पुनीहि,
सीदन्तमद्य भयदव्यसनाम्बुराशेः
।।४१।।
देवेन्द्रवंद्य! विभु! वस्तुरहस्य जाण!
संसारतारक! जगत्पति! जिनभाण?
रक्षो मने भयद दुःख समुद्रमांथी!
आजे करूणहृद! पुण्य करो दयाथी! ४१.
अर्थ :हे देवेन्द्रो वडे वंदनीय, हे सर्वज्ञदेव, हे जगत
तारणहार, हे विभो, हे त्रिलोकीनाथ, हे दया समुद्र, हे जिनेन्द्रदेव! आजे
मम दुःखियारानी रक्षा करो अने अति भयानक दुःख समुद्रथी मने
बचावो. ४१.