Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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८२ ][ पंचस्तोत्र
अंत देखातो नथी केम के ते अनंत छे. जो तेमनो क्यांय अंत होय तो
आपमां ज छे. अर्थात् आप सर्वगुणसंपन्न छो, आपनामां कोई गुणनी
कमी नथी. ३१.
स्तुत्या परं नाभिमतं हि भक्त्या
स्मृत्या प्रणत्या च ततो भजामि
स्मरामि देवं प्रणमामि नित्यं
केनाप्युपायेन फलं हि साध्यम् ।।३२।।
अर्थ :हे देवाधिदेव! केवळ स्तुतिद्वारा ज इच्छित फळनी प्राप्ति
थती नथी परंतु भक्ति, स्मरण, नमस्कारथी पण थाय छे. तेथी हुं सदैव
आपनी भक्ति करुं छुं, ध्यान करुं छुं अने आपने प्रणाम करुं छुं केम
के कोई पण उपाय द्वारा पोताना विभाव भावो मटाडीने इच्छित फळ सिद्ध
करी लेवुं जोईए. ३२.
ततस्त्रिलोकीनगराधिदेवं
नित्यं परंज्योतिरनंतशक्तिम्
अपुण्यपापं परपुण्यहेतुं
नमाम्यहं वन्द्यमवन्दितारम् ।।३३।।
अर्थ :हे गुणनिधि! आप अविनाशी छो, केवळज्ञान स्वरूप
ज्योतिथी प्रकाशमान छो, अनंत वीर्यना धारक छो, स्वयं पुण्यपाप रहित
छो छतां पण भव्यजीवोना पुण्यना कारण छो. आप इन्द्र, चक्रवर्ती बधा
द्वारा वंद्य छो परंतु आप कोईने वंदन करता नथी. त्रणे लोकना स्वामी
एवा आपने हुं (धनंजय कवि) सदैव नमस्कार करुं छुं. ३३.
अशब्दमस्पर्शमरूपगंधं
त्वां नीरसं तद्विषयावबोधम्
सर्वस्य मातारममेयमन्यै
र्जिनेन्द्रमस्मार्यमनुस्मरामि ।।३४।।