Page -38 of 256
PDF/HTML Page 2 of 296
single page version
Page -37 of 256
PDF/HTML Page 3 of 296
single page version
प्रथम आवृत्तिःप्रत २५००वीर सं. २४८४वि. सं. २०१४ द्वितीय आवृत्तिःप्रत १०००वीर सं. २५०२वि. सं. २०३२ तृतीय आवृत्तिःप्रत १५००वीर सं. २५०४वि. सं. २०३४ चतुर्थ आवृत्तिःप्रत २०००वीर सं. २५२९वि. सं. २०५९
आ शास्त्रनी पडतर किंमत रुा. ६६=०० थाय छे. अनेक मुमुक्षुओनी
Page -35 of 256
PDF/HTML Page 5 of 296
single page version
अनुवाद थयो छे, जेओ श्री कुंदकुंदभगवानना
असाधारण भक्त छे, पांच अस्तिकायोमां सारभूत
एवा शुद्धजीवास्तिकायने अनुभवी जेओ स्व-पर
कल्याण साधी रह्या छे, अने जेमनी अनुभवझरती
कल्याणकारिणी जोरदार वाणीना परम प्रतापे पांच
अस्तिकायोनी स्वतंत्रतानो सिद्धांत तथा शुद्ध-
जीवास्तिकायनी अनुभूतिनो महिमा भारतभरमां
गाजतो थयो छे, ते परमपूज्य परमोपकारी
कल्याणमूर्ति सद्गुरुदेव(श्री कानजीस्वामी)ने आ
अनुवाद-पुष्प अत्यंत भक्तिभावे अर्पण करुं छुं.
Page -34 of 256
PDF/HTML Page 6 of 296
single page version
एनी कुंदकुंद गूंथे माळ रे,
जेमां सार-समय शिरताज रे,
गूंथ्युं प्रवचनसार रे,
गूंथ्यो समयनो सार रे,
जिनजीनो ॐकारनाद रे,
वंदुं ए ॐकारनाद रे,
मारा ध्याने हजो जिनवाण रे,
वाजो मने दिनरात रे,
Page -33 of 256
PDF/HTML Page 7 of 296
single page version
भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत ‘रत्नचतुष्टय’मांथी श्री समयसार, प्रवचनसार अने नियमसारना प्रकाशन पछी हवे आ चोथुं रत्न श्री पंचास्तिकायसंग्रह गुजराती भाषामां प्रसिद्ध करीने आ संस्था हर्षपूर्वक मुमुक्षुओना हाथमां मूके छे. गुजराती भाषाना आध्यात्मिक साहित्यमां आ ‘रत्नचतुष्टय’नुं स्थान सर्वोत्कृष्ट छे.
श्री अमृतचंद्राचार्यदेवनी संस्कृत टीकाना अक्षरशः गुजराती अनुवाद साथे आ शास्त्र गुजराती भाषामां पहेली ज वार प्रसिद्ध थाय छे. मूळ सूत्रकार तथा टीकाकार आचार्यभगवंतोनो परिचय, तेम ज शास्त्रना विषयोनो परिचय उपोद्घातमां कराववामां आव्यो छे, तेथी अहीं ते संबंधी उल्लेख नथी करता.
पूज्य गुरुदेवे आ परमागमशास्त्र उपर अनेक वार प्रवचनो करीने तेनां ऊंडां रहस्यो खोल्यां छे. आ रीते अनेक परमागमोनो आध्यात्मिक मर्म समजावीने तेओश्री भारतना अनेक मुमुक्षु जीवो उपर जे परम उपकार करी रह्या छे, ते उपकार वाणीथी व्यक्त थई शके तेम नथी. ज्ञानप्रभावक गुरुदेवना प्रतापे ज जैनसाहित्यनां आवां आवां रत्नो आजे मुमुक्षुओने प्राप्त थयां छे.
श्री समयसार वगेरे परमागमोनी जेम आ पंचास्तिकायसंग्रह परमागमनो गुजराती अनुवाद पण पूज्य गुरुदेवनी प्रेरणा झीलीने विद्वान भाई श्री हिंमतलाल जे. शाहे कर्यो छे. आ पवित्र शास्त्रोना गुजराती अनुवादनुं महाकार्य करनार भाई श्री हिंमतलाल जेठालाल शाह अध्यात्मरसिक विद्वान होवा उपरांत गंभीर, वैराग्यशाळी, शांत अने विवेकी सज्ज्न छे, तथा तेमनामां अध्यात्मरसझरतुं मधुर कवित्व पण छे. पवित्रात्मा पूज्य बहेनश्री चंपाबेन ना तेओ बंधु छे. तेओ घणां वर्षोथी पूज्य गुरुदेवना परिचयमां आव्या छे, ने पूज्य गुरुदेवनां अध्यात्मप्रवचनोना ऊंडा मनन वडे तेमणे पोतानी आत्मार्थिताने घणुं पोषण आप्युं छे. तत्त्वार्थनां मूळ रहस्यो उपरनुं तेमनुं मनन घणुं गहन छे. शास्त्रकार अने टीकाकार मुनिभगवंतोना हृदयना ऊंडा भावोनी गंभीरताने बराबर जाळवीने तेमणे आ अक्षरशः अनुवाद कर्यो छे; ते उपरांत मूळ सूत्रोनो भावभर्यो मधुर पद्यानुवाद पण (हरिगीत छंदमां) तेमणे कर्यो छे, जे आ अनुवादनी मधुरतामां खूब ज वधारो करे छे अने स्वाध्यायप्रेमीओने खूब ज उपयोगी थाय छे. आ उपरांत ज्यां जरूर लागी त्यां भावार्थ द्वारा के फूटनोट द्वारा पण तेमणे स्पष्टता करी
Page -32 of 256
PDF/HTML Page 8 of 296
single page version
छे. आ रीते भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवनां समयसार, प्रवचनसार, नियमसार अने पंचास्तिकायसंग्रह जेवां उत्तमोत्तम — ‘रत्नचतुष्टय’ — शास्त्रोना अनुवादनुं परम सौभाग्य तेमने मळ्युं छे ते माटे तेओ खरेखर अभिनंदनीय छे. पूज्य गुरुदेवश्रीनी प्रेरणा झीलीने अत्यंत परिश्रमपूर्वक आवो सुंदर अनुवाद तैयार करी आपवा बदल भाईश्री हिंमतलालभाईनो आ संस्था जेटलो आभार माने तेटलो ओछो छे. आ अनुवाद अमूल्य छे...केम के मात्र पूज्य गुरुदेव अने जिनवाणीमाता प्रत्येनी परम भक्तिथी प्रेराईने पोतानी अध्यात्मरसिकता वडे तैयार करायेला आ अनुवादनां मूल्य केम आंकी शकाय? आ अनुवादना महान कार्य बदल तेओश्रीने अभिनंदनरूपे कंईक कीमती भेट आपवानी आ संस्थानी घणी ज उत्कंठा हती, अने ते स्वीकारवा माटे तेमने वारंवार आग्रहभरी विनंती करवामां आवी हती, परंतु तेमणे ते स्वीकारवानी स्पष्ट ना ज पाडी. तेमनी आ निस्पृहता पण अत्यंत प्रशंसनीय छे. लगभग नव वर्ष पहेलां प्रवचनसारना अनुवाद वखते ज्यारे तेमने भेटना स्वीकार माटे कहेवामां आव्युं त्यारे तेमणे वैराग्यपूर्वक एवो जवाब आप्यो हतो के ‘‘मारो आत्मा आ संसार परिभ्रमणथी छूटे एटले बस, बीजो कांई बदलो मारे जोईतो नथी.’’ उपोद्घातमां पण पोतानी आ भावना व्यक्त करतां तेओ लखे छे केः ‘ आ अनुवाद में श्री पंचास्तिकायसंग्रह प्रत्येनी भक्तिथी अने गुरुदेवनी प्रेरणाथी प्रेराईने, निज कल्याण अर्थे, भवभयथी डरतां डरतां कर्यो छे.’
भाईश्री हिंमतलालभाईने आ अनुवादकार्यमां प्रतसंशोधन, प्रूफरीडिंग वगेरे नानांमोटां
अनेक कामोमां घणी कीमती मदद ब्र० भाईश्री चंदुलाल खीमचंद झोबाळियाए आपी छे, ते माटे
तेमनो आभार मानवामां आवे छे. आ शास्त्रनी मूळ गाथाओ तथा तेनी संस्कृत टीकाना संशोधन
माटे ‘श्री दिगंबर जैन शास्त्रभंडार’ इडर, तथा ‘भांडारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टिट्युट’ पूना
तरफथी अमने हस्तलिखित प्रतो मळी छे, तेथी ते बंने संस्थाओनो पण अत्रे आभार मानीए
छीए. भाईश्री अमृतलाल देवकरण वोराए पोताना ‘अमृत प्रिन्टिंग प्रेस’मां घणी काळजी अने
होंशपूर्वक आ ग्रंथनुं सुंदर मुद्रण करी आप्युं छे ते बदल तेमनो पण आभार मानवामां आवे छे.
प्रकाशनमां केटलांक भाईबहेनोए आर्थिक सहाय आपी छे तेथी आनी किंमत घटाडीने मात्र त्रण रूपिया राखवामां आवी छे. आर्थिक सहाय आपनारां भाईबहेनोनो आ ट्रस्ट आभार माने छे.
मुमुक्षु जीवो अति बहुमानपूर्वक सद्गुरुगमे आ परमागमनो अभ्यास करीने तेना ऊंडा भावोने समजो...अने शास्त्रना तात्पर्यभूत वीतरागभावने प्राप्त करो...ए ज भावना.
वीर संवत २४८४ वि. सं. २०१४ मागशर वद आठम, कुंदकुंद-आचार्यपदारोहण दिन
Page -31 of 256
PDF/HTML Page 9 of 296
single page version
आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ शास्त्र घणा समयथी अप्राप्य होवाथी अनेक मुमुक्षुओनी तेना पुनर्मुद्रण माटे मागणी चालु हती, पण कारणवशात् तेनुं पुनः प्रकाशन शीघ्र थई शक्युं नहि. आजे तेनी आ चोथी आवृत्तिनुं प्रकाशन करतां आनंद अनुभवाय छे.
आ शास्त्रना गुजराती गद्यपद्यानुवादना रचयिता ऊंडा आदर्श आत्मार्थी पंडितरत्न श्री हिंमतलाल जेठालाल शाह (बी. एस सी.)नो उपोद्घात शब्दशः आ आवृत्तिमां लीधेल छे. अनुवादक श्री हिंमतभाई शाहना शुद्धात्माभिमुख आध्यात्मिक व्यक्तित्वनो परिचय पहेली आवृत्तिना ‘प्रकाशकीय निवेदन’, ‘उपकृतभावभीनो अहोभाव’ अने ‘अभिनंदन-पत्र’मां विशदताथी करवामां आव्यो छे, तेथी अहीं ते विषे विशेष उल्लेख कर्यो नथी.
आ आवृत्तिनुं मुद्रणसंशोधन श्री हसमुखलाल पोपटलाल वोरा (प्रमुख), ब्र० श्री चंदुभाई झोबाळिया, श्री प्रवीणभाई साराभाई शाह तथा श्री मनुभाई कामदारे करी आपेल छे, तथा मुद्रणकार्य ‘कहान मुद्रणालय’ना मालिक श्री ज्ञानचंदजी जैने सुंदर रीते करी आपेल छे. ते बदल ते सौनो आभार मानीए छीए.
आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ परमागम वीतराग सर्वज्ञ महाश्रमण (प्रवर्तमान महाधर्मतीर्थना मूळ कर्ता एवा भगवान, परम भट्टारक, महादेवाधिदेव श्री महावीरस्वामी)ना वदनारविंदमांथी नीकळेल अर्थमय छे, तेथी ते सफळ छे. चतुर्गतिभ्रमणरूप परतंत्रतानी निवृत्ति अने शुद्धात्मतत्त्वनी उपलब्धिरूप स्वतंत्रतानी प्राप्ति तेनुं फळ छे. भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे प्रवचननी (भाव तेम ज द्रव्य श्रुतनी) भक्तिथी प्रेरित थईने मार्गनी प्रभावना अर्थे प्रवचनना (दिव्यध्वनिना) सारभूत आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ परमागम प्रणीत करेल छे. आमां ज्ञानसमयनी प्रसिद्धि अर्थे शब्दसमयना संबंधथी (शुद्ध-जीवास्तिकायप्रमुख) अर्थसमय कहेवानो तेमनो इरादो छे. माटे मुमुक्षुओए निज कल्याण माटे आ परमागमनो ऊंडाणथी अभ्यास कर्तव्य छे.
पूज्य गुरुदेवश्रीना श्रीमुखे आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ परमागम उपर अनेक वार प्रवचनो थयेल, अने मुमुक्षुओने ते सांभळवा मळेल. हालमां टेप-अवतीर्ण प्रवचनो सांभळवा मळे छे, तेथी आपणे सौ तेमना अत्यंत ॠणी छीए अने तेथी तेमने उपकृतभावभीनुं हार्दिक वंदन करीए छीए.
आ परमागम शास्त्रमां दर्शावेला भावोने यथार्थ समजी, अंतरमां तदनुरूप परिणमन करी, अतीन्द्रिय ज्ञाननी प्राप्ति द्वारा अतीन्द्रिय आनंदने सर्वे जीवो अनुभवो एवी अंतरथी भावना भावीए छीए. श्रावण वद २, पूज्य बहेनश्री चंपाबेन-९०मो जन्मोत्सव वि. सं. २०५९; इ. स. २००३
Page -30 of 256
PDF/HTML Page 10 of 296
single page version
ज्ञानी सुकानी मळ्या विना ए नाव पण तारे नहीं;
आ काळमां शुद्धात्मज्ञानी सुकानी बहु बहु दोह्यलो,
मुज पुण्यराशि फळ्यो अहो! गुरु क्हान तुं नाविक मळ्यो.
अने ज्ञप्तिमांही दरव-गुण-पर्याय विलसे;
निजालंबीभावे परिणति स्वरूपे जई भळे,
निमित्तो वहेवारो चिदघन विषे कांई न मळे.
जे वज्रे सुमुमुक्षु सत्त्व झळके; परद्रव्य नातो तूटे;
वाणी चिन्मूर्ति! तारी उर-अनुभवना सूक्ष्म भावे भरेली;
खोयेलुं रत्न पामुं, — मनरथ मननो; पूरजो शक्तिशाळी!
Page -29 of 256
PDF/HTML Page 11 of 296
single page version
भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ नामनुं शास्त्र ‘द्वितीय श्रुतस्कंध’नां सर्वोत्कृष्ट आगमोमांनुं एक छे.
‘द्वितीय श्रुतस्कंध’नी उत्पत्ति कई रीते थई ते आपणे पट्टावलिओना आधारे संक्षेपमां प्रथम जोईएः
आजथी २४८३ वर्ष पहेलां आ भरतक्षेत्रनी पुण्यभूमिमां जगत्पूज्य परमभट्टारक भगवान श्री महावीरस्वामी मोक्षमार्गनो प्रकाश करवा माटे समस्त पदार्थोनुं स्वरूप पोताना सातिशय दिव्यध्वनि द्वारा प्रगट करता हता. तेमना निर्वाण पछी पांच श्रुतकेवळी थया, जेमां छेल्ला श्रुतकेवळी श्री भद्रबाहुस्वामी थया. त्यां सुधी तो द्वादशांगशास्त्रना प्ररूपणथी निश्चयव्यवहारात्मक मोक्षमार्ग यथार्थ प्रवर्ततो रह्यो. त्यारपछी काळदोषथी क्रमे क्रमे अंगोना ज्ञाननी व्युच्छित्ति थती गई. एम करतां अपार ज्ञानसिंधुनो घणो भाग विच्छेद पाम्या पछी बीजा भद्रबाहुस्वामी आचार्यनी परिपाटीमां बे समर्थ मुनिओ थया — एकनुं नाम श्री धरसेन आचार्य अने बीजानुं नाम श्री गुणधर आचार्य. तेमनी पासेथी मळेला ज्ञान द्वारा तेमनी परंपरामां थयेला आचार्योए शास्त्रो गूंथ्यां अने वीर भगवानना उपदेशनो प्रवाह वहेतो राख्यो.
श्री धरसेन आचार्यने बीजा आग्रायणीपूर्वना पांचमा वस्तु अधिकारना महाकर्मप्रकृति नामना चोथा प्राभृतनुं ज्ञान हतुं. ते ज्ञानामृतमांथी अनुक्रमे त्यारपछीना आचार्यो द्वारा षट्खंडागम, धवल, महाधवल, जयधवल, गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार आदि शास्त्रो रचायां. आ रीते प्रथम श्रुतस्कंधनी उत्पत्ति छे. तेमां मुख्यत्वे जीव अने कर्मना संयोगथी थयेला आत्माना संसारपर्यायनुं — गुणस्थान, मार्गणास्थान
Page -28 of 256
PDF/HTML Page 12 of 296
single page version
आदिनुं — वर्णन छे, पर्यायार्थिक नयने प्रधान करीने कथन छे. आ नयने अशुद्ध- द्रव्यार्थिक पण कहे छे अने अध्यात्मभाषाथी अशुद्धनिश्चयनय अथवा व्यवहार कहे छे.
श्री गुणधर आचार्यने पांचमा ज्ञानप्रवादपूर्वना दशमा वस्तुना त्रीजा प्राभृतनुं ज्ञान हतुं. ते ज्ञानमांथी त्यारपछीना आचार्योए अनुक्रमे सिद्धांतो रच्या. एम सर्वज्ञ भगवान महावीरथी चाल्युं आवतुं ज्ञान आचार्योनी परंपराथी भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवने प्राप्त थयुं. तेमणे पंचास्तिकायसंग्रह, प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, अष्टपाहुड आदि शास्त्रो रच्यां. आ रीते द्वितीय श्रुतस्कंधनी उत्पत्ति थई. तेमां एकंदरे ज्ञानने प्रधान करीने शुद्धद्रव्यार्थिक नयथी कथन छे, आत्माना शुद्ध स्वरूपनुं वर्णन छे.
भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव विक्रम संवतनी शरूआतमां थई गया छे. दिगंबर जैन परंपरामां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनुं स्थान सर्वोत्कृष्ट छे. ‘मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कु न्दकु न्दार्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ।।’ – ए श्लोक दरेक दिगंबर जैन शास्त्राध्ययन शरू करतां मंगलाचरणरूपे बोले छे. आ परथी सिद्ध थाय छे के सर्वज्ञ भगवान श्री महावीरस्वामी अने गणधर भगवान श्री गौतमस्वामी पछी तुरत ज भगवान कुंदकुंदाचार्यनुं स्थान आवे छे. दिगंबर जैन साधुओ पोताने कुंदकुंदाचार्यनी परंपराना कहेवराववामां गौरव माने छे. भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनां शास्त्रो साक्षात् गणधरदेवनां वचनो जेटलां ज प्रमाणभूत मनाय छे. तेमना पछी थयेला ग्रंथकार आचार्यो पोताना कोई कथनने सिद्ध करवा माटे कुंदकुंदाचार्यदेवनां शास्त्रोनुं प्रमाण आपे छे एटले ए कथन निर्विवाद ठरे छे. तेमना पछी लखायेला ग्रंथोमां तेमनां शास्त्रोमांथी थोकबंध अवतरणो लीधेलां छे. खरेखर भगवान कुंदकुंदाचार्ये पोतानां परमागमोमां तीर्थंकरदेवोए प्ररूपेला उत्तमोत्तम सिद्धांतोने जाळवी राख्या छे अने मोक्षमार्गने टकावी राख्यो छे. वि. सं. ९९०मां थई गयेला श्री देवसेनाचार्यवर तेमना दर्शनसार नामना ग्रंथमां ❀कहे छे के ‘‘विदेहक्षेत्रना वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधरस्वामीना समवसरणमां जईने श्री पद्मनंदिनाथे (कुंदकुंदाचार्यदेवे) पोते प्राप्त करेला ज्ञान वडे बोध न आप्यो होत तो मुनिजनो साचा मार्गने केम जाणत?’’ बीजो एक उल्लेख आपणे जोईए, जेमां कुंदकुंदाचार्यदेवने कळिकाळसर्वज्ञ कहेवामां आव्या छेः ‘‘पद्मनंदी, कुंदकुंदाचार्य, वक्रग्रीवाचार्य, एलाचार्य, गृध्रपिच्छाचार्य — ए पांच नामोथी विराजित, चार आंगळ ऊंचे आकाशमां चालवानी जेमने ॠद्धि हती, जेमणे पूर्व विदेहमां जईने ❀ मूळ श्लोक माटे २० मुं पानुं जुओ.
Page -27 of 256
PDF/HTML Page 13 of 296
single page version
सीमंधरभगवानने वंदन कर्युं हतुं अने तेमनी पासेथी मळेला श्रुतज्ञान वडे जेमणे भारतवर्षना भव्य जीवोने प्रतिबोध कर्यो छे एवा जे श्री जिनचंद्रसूरिभट्टारकना पट्टना आभरणरूप कळिकाळसर्वज्ञ (भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव) तेमणे रचेला आ षट्प्राभृत ग्रंथमां........सूरीश्वर श्री श्रुतसागरे रचेली मोक्षप्राभृतनी टीका समाप्त थई.’’ आम षट्प्राभृतनी श्री श्रुतसागरसूरिकृत टीकाना अंतमां लखेलुं छे.
कुंदकुंदाचार्यदेवनी महत्ता बतावनारा आवा अनेकानेक उल्लेखो जैन साहित्यमां मळी आवे छे; २शिलालेखो पण अनेक छे. आ रीते आपणे जोयुं के सनातन जैन संप्रदायमां कळिकाळसर्वज्ञ भगवान कुंदकुंदाचार्यनुं स्थान अजोड छे.
भगवान कुंदकुंदाचार्यनां रचेलां अनेक शास्त्रो छे, जेमांथी थोडांक हालमां विद्यमान छे. त्रिलोकनाथ सर्वज्ञदेवना मुखमांथी वहेली श्रुतामृतनी सरितामांथी भरी लीधेलां ते अमृतभाजनो हालमां पण अनेक आत्मार्थीओने आत्मजीवन अर्पे छे. तेमनां समयसार, प्रवचनसार, नियमसार अने पंचास्तिकायसंग्रह नामनां उत्तमोत्तम परमागमोमां हजारो शास्त्रोनो सार आवी जाय छे. भगवान कुंदकुंदाचार्य पछी लखायेला घणा ग्रंथोनां बीजडां आ परमागमोमां रहेलां छे एम सूक्ष्म द्रष्टिथी अभ्यास करतां जणाय छे. श्री समयसार आ भरतक्षेत्रनुं सर्वोत्कृष्ट परमागम छे. तेमां नव तत्त्वोनुं शुद्धनयनी द्रष्टिथी निरूपण करी जीवनुं शुद्ध स्वरूप सर्व तरफथी — आगम, युक्ति, अनुभव अने परंपराथी — अति विस्तारपूर्वक समजाव्युं छे. श्री प्रवचनसारमां तेना नाम अनुसार जिनप्रवचननो सार संघर्यो छे अने तेने ज्ञानतत्त्व, ज्ञेयतत्त्व अने चरणानुयोगना त्रण अधिकारोमां विभाजित कर्युं छे. श्री नियमसारमां मोक्षमार्गनुं स्पष्ट सत्यार्थ निरूपण छे. जेम समयसारमां शुद्धनयथी नव तत्त्वोनुं निरूपण कर्युं छे तेम नियमसारमां मुख्यत्वे शुद्धनयथी जीव, अजीव, शुद्धभाव, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, आलोचना, प्रायश्चित्त, समाधि, भक्ति, आवश्यक, शुद्धोपयोग वगेरेनुं वर्णन छे. श्री पंचास्तिकायसंग्रहमां काळ सहित पांच अस्तिकायोनुं (अर्थात् छ द्रव्योनुं) अने नव पदार्थपूर्वक मोक्षमार्गनुं निरूपण छे. १. भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवना विदेहगमन संबंधी एक उल्लेख (लगभग विक्रम संवतना १३मा
२. शिलालेखोना नमूना माटे १९मुं पानुं जुओ.
Page -26 of 256
PDF/HTML Page 14 of 296
single page version
आ पंचास्तिकायसंग्रह परमागम शरू करतां शास्त्रकर्ताए तेने ‘सर्वज्ञ महामुनिना मुखथी कहेवायेला पदार्थोनुं प्रतिपादक, चतुर्गतिनाशक अने निर्वाणनुं कारण’ कह्युं छे. तेमां कहेला वस्तुतत्त्वनो सार आ प्रमाणे छेः —
विश्व एटले अनादि-अनंत स्वयंसिद्ध सत् एवी अनंतानंत वस्तुओनो समुदाय. तेमांनी प्रत्येक वस्तु अनुत्पन्न अने अविनाशी छे. प्रत्येक वस्तुमां अनंत शक्तिओ अथवा गुणो छे, जे त्रिकाळिक नित्य छे. प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षण पोतामां पोतानुं कार्य करती होवा छतां अर्थात् नवीन दशाओ — अवस्थाओ — पर्यायो धरती होवा छतां ते पर्यायो एवी मर्यादामां रहीने थाय छे के वस्तु पोतानी जातने छोडती नथी अर्थात् तेनी शक्तिओमांथी एक पण घटती – वधती नथी. वस्तुओनी ( – द्रव्योनी) भिन्नभिन्न शक्तिओनी अपेक्षाए तेमनी ( – द्रव्योनी) छ जातिओ छेः जीवद्रव्य, पुद्गलद्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य अने काळद्रव्य. जेनामां सदा ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख वगेरे अनंत गुणो ( – शक्तिओ) होय छे ते जीवद्रव्य छे; जेनामां सदा वर्ण, गंध, रस, स्पर्श वगेरे अनंत गुणो होय छे ते पुद्गलद्रव्य छे; बाकीनां चार द्रव्योना विशिष्ट गुणो अनुक्रमे गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहहेतुत्व अने वर्तनाहेतुत्व छे. आ छ द्रव्योमांथी पहेलां पांच द्रव्यो सत् होवाथी तेम ज शक्ति अथवा व्यक्ति-अपेक्षाए मोटा क्षेत्रवाळां होवाथी ‘अस्तिकाय’ छे; काळद्रव्य ‘अस्ति’ छे पण ‘काय’ नथी.
जिनेंद्रना ज्ञानदर्पणमां झळकतां आ सर्व द्रव्यो — अनंत जीवद्रव्यो, अनंतानंत पुद्गलद्रव्यो, एक धर्मद्रव्य, एक अधर्मद्रव्य, एक आकाशद्रव्य अने असंख्य काळद्रव्यो — स्वयं परिपूर्ण छे अने अन्य द्रव्योथी तद्दन स्वतंत्र छे; तेओ एकबीजा साथे परमार्थे कदी मळतां नथी, भिन्न ज रहे छे. देव, मनुष्य, तिर्यंच, नारक, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय वगेरे जीवोमां जीव-पुद्गल जाणे के मळी गयां होय एम लागे छे पण खरेखर एम नथी; तेओ तद्दन पृथक् छे. सर्व जीवो अनंत ज्ञानसुखना निधि होवा छतां, पर द्वारा तेमने कांई सुखदुःख नहि थतुं होवा छतां, संसारी अज्ञानी जीव अनादि काळथी स्वतः अज्ञानपर्याये परिणमी पोताना ज्ञानानंदस्वभावने, परिपूर्णताने, स्वातंत्र्यने अने अस्तित्वने पण भूली रह्यो छे तथा पर पदार्थोने सुखदुःखना कारण मानी तेमना प्रत्ये रागद्वेष कर्या करे छे; जीवना आवा भावोना निमित्ते पुद्गलो स्वतः ज्ञानावरणादिकर्मपर्याये परिणमी जीवनी साथे संयोगमां आवे छे अने तेथी अनादि काळथी जीवने पौद्गलिक देहनो संयोग थया करे
Page -25 of 256
PDF/HTML Page 15 of 296
single page version
छे. परंतु जीव अने देहना संयोगमां पण जीव अने पुद्गल तद्दन पृथक् छे अने तेमनां कार्यो पण एकबीजाथी तद्दन भिन्न ने निरपेक्ष छे एम जिनेंद्रोए जोयुं छे, सम्यग्ज्ञानीओए जाण्युं छे अने अनुमानगम्य पण छे. जीव केवळ भ्रांतिने लीधे ज देहनी दशाथी अने इष्टानिष्ट पर पदार्थोथी पोताने सुखीदुःखी माने छे. वास्तवमां पोताना सुखगुणनी विकारी पर्याये परिणमी ते अनादि काळथी दुःखी थई रह्यो छे.
जीव द्रव्य-गुणे सदा शुद्ध होवा छतां, ते पर्याय-अपेक्षाए शुभाशुभभावरूपे, देशशुद्धिरूपे, शुद्धिनी वृद्धिरूपे अने पूर्णशुद्धिरूपे परिणमे छे तथा ते भावोना निमित्ते शुभाशुभ पुद्गलकर्मोनुं आस्रवण अने बंधन तथा तेमनुं अटकवुं, खरवुं अने सर्वथा छूटवुं थाय छे. आ भावो समजाववा माटे जिनेन्द्रभगवंतोए नव पदार्थो उपदेश्या छे. आ नव पदार्थो सम्यक्पणे समजवाथी, जीवने शुं हितरूप छे, शुं अहितरूप छे, शाश्वत परम हित प्रगट करवा जीवे शुं करवुं जोईए, पर पदार्थो साथे पोताने शो संबंध छे — इत्यादि वातो यथार्थपणे समजाय छे अने पोतानुं सुख पोतामां ज जाणी, पोताना सर्व पर्यायोमां पण ज्ञानानंदस्वभावी निज जीवद्रव्यसामान्य सदा एकरूप जाणी, ते अनादि-अप्राप्त एवा कल्याणबीज सम्यग्दर्शनने तथा सम्यग्ज्ञानने प्राप्त करे छे. ते प्राप्त थतां जीव पोताने द्रव्य-अपेक्षाए कृतकृत्य जाणे छे अने ते कृतकृत्य द्रव्यनो परिपूर्ण आश्रय करवाथी ज शाश्वत सुखनी प्राप्ति - मोक्ष - थाय छे एम समजे छे.
सम्यग्दर्शन प्राप्त थतां जीवने शुद्धात्मद्रव्यनुं जे अल्प आलंबन थयुं होय छे ते वधतां अनुक्रमे देशविरत श्रावकपणुं अने मुनिपणुं प्राप्त थाय छे. श्रावकने तथा मुनिने शुद्धात्मद्रव्यना मध्यम आलंबनरूप आंशिक शुद्धि होय छे ते कर्मना अटकवानुं ने खरवानुं निमित्त थाय छे अने जे अशुद्धिरूप अंश होय छे ते श्रावकने देशव्रतादिरूपे तथा मुनिने महाव्रतादिरूपे देखाव दे छे, जे कर्मबंधनुं निमित्त थाय छे. क्रमे क्रमे ते जीव ज्ञानानंद-स्वभावी शुद्धात्मद्रव्यने अति उग्रपणे अवलंबी, सर्व विकल्पोथी छूटी, सर्व रागद्वेष रहित थई, केवळज्ञानने प्राप्त करी, आयुष्य पूर्ण थतां देहादिसंयोगथी विमुक्त थई, सदाकाळ परिपूर्ण ज्ञानदर्शनरूपे अने अतीन्द्रिय अनंत अव्याबाध आनंदरूपे रहे छे.
शास्त्रमां परम करुणाबुद्धिथीप्रसिद्ध करेला वस्तुतत्त्वनो संक्षिप्त सार छे. तेमां जे रीत
वर्णवी ते सिवाय बीजी
Page -24 of 256
PDF/HTML Page 16 of 296
single page version
कोई रीते जीव अनादि काळना भयंकर दुःखथी छूटी शकतो नथी. ज्यां सुधी वस्तुस्वरूप जीवना ख्यालमां आवतुं नथी त्यां सुधी बीजा लाख प्रयत्ने पण तेने मोक्षनो उपाय हाथ लागतो नथी. तेथी ज आ शास्त्रने विषे प्रथम पंचास्तिकाय अने नव पदार्थनुं स्वरूप समजाववामां आव्युं छे के जेथी जीव वस्तुस्वरूपने समजी मोक्षमार्गना मूळभूत सम्यग्दर्शनने प्राप्त थाय.
अस्तिकायो अने पदार्थोना निरूपण पछी आ शास्त्रमां मोक्षमार्गसूचक चूलिका छे. आ अंतिम अधिकार, शास्त्ररूपी मंदिर उपर रत्नकळश समान शोभे छे. अध्यात्मरसिक आत्मार्थी जीवोनो, आ अति प्रिय अधिकार छे. तेमने आ अधिकारनो रसास्वाद लेतां जाणे के तृप्ति ज थती नथी. तेमां मुख्यत्वे वीतराग चारित्रनुं — स्वसमयनुं — शुद्ध मुनिदशानुं — पारमार्थिक मोक्षमार्गनुं भाववाही मधुर प्रतिपादन छे, तेम ज मुनिने सराग चारित्रनी दशामां आंशिक शुद्धिनी साथे साथे केवा शुभ भावोनो सुमेळ अवश्य होय ज छे तेनो पण स्पष्ट निर्देश छे. जेमना हृदयमां वीतरागतानी भावना घोळाया करे छे एवा शास्त्रकार अने टीकाकार मुनींद्रोए आ अधिकारमां जाणे के शांत वीतराग रसनी सरिता वहावी छे. धीरगंभीर गतिए वहेती आ शांत रसनी अध्यात्मगंगामां नहातां तत्त्वजिज्ञासु भावुक जीवो शीतळीभूत थाय छे अने तेमनुं हृदय शांत-शांत थई मुनिओनी आत्मानुभव- मूलक सहजशुद्ध उदासीन दशा प्रत्ये बहुमानपूर्वक नमी पडे छे. आ अधिकार पर मनन करतां सुपात्र मुमुक्षु जीवोने समजाय छे के ‘शुद्धात्मद्रव्यना आश्रये सहज दशानो अंश प्रगट कर्या विना मोक्षना उपायनो अंश पण प्राप्त थतो नथी.’
आ पवित्र शास्त्रना कर्ता श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेव प्रत्ये पूज्य गुरुदेव (श्री कानजीस्वामी)ने पारावार भक्ति छे. तेओश्री अनेक वार कहे छे के — ‘श्री समयसार, नियमसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकायसंग्रह आदि शास्त्रोनी गाथाए गाथाए दिव्यध्वनिनो संदेश छे. ए गाथाओमां एटली अपार ऊंडप छे के ते ऊंडप मापवा जतां पोतानी ज शक्ति मपाई जाय छे. ए सागरगंभीर शास्त्रोना रचनार परम कृपाळु आचार्यभगवाननुं कोई परम अलौकिक सामर्थ्य छे. परम अद्भुत सातिशय अंतर्बाह्य योगो विना ए शास्त्रो रचावां शक्य नथी. ए शास्त्रोनी वाणी तरता पुरुषनी वाणी छे एम स्पष्ट जाणीए छीए. एनी दरेक गाथा छठ्ठा-सातमा गुणस्थाने झूलता महामुनिना आत्म-अनुभवमांथी नीकळेली छे. ए शास्त्रोना कर्ता भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव महाविदेहक्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधरभगवानना समवसरणमां
Page -23 of 256
PDF/HTML Page 17 of 296
single page version
गया हता अने त्यां तेओ आठ दिवस रह्या हता ए वात यथातथ्य छे, अक्षरशः सत्य छे, प्रमाणसिद्ध छे. ते परम उपकारी आचार्यभगवाने रचेलां समयसारादि शास्त्रोमां तीर्थंकरदेवना ॐकारध्वनिमांथी ज नीकळेलो उपदेश छे.’
आ शास्त्रमां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनी प्राकृत गाथाओ पर समयव्याख्या नामनी संस्कृत टीका लखनार ( लगभग विक्रम संवतना १० मा सैकामां थई गयेला ) श्री अमृतचंद्राचार्यदेव छे. जेम आ शास्त्रना मूळ कर्ता अलौकिक पुरुष छे तेम तेना टीकाकार पण महासमर्थ आचार्य छे. तेमणे समयसारनी तथा प्रवचनसारनी टीका पण लखी छे अने तत्त्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय आदि स्वतंत्र ग्रंथो पण रच्या छे. तेमनी टीकाओ जेवी टीका हजु सुधी बीजा कोई जैन ग्रंथनी लखायेली नथी. तेमनी टीकाओ वांचनारने तेमनी अध्यात्मरसिकता, आत्मानुभव, प्रखर विद्वत्ता, वस्तुस्वरूपने न्यायथी सिद्ध करवानी असाधारण शक्ति, जिनशासननुं अत्यंत ऊंडुं ज्ञान, निश्चय-व्यवहारनुं संधिबद्ध निरूपण करवानी विरल शक्ति अने उत्तम काव्यशक्तिनो पूरो ख्याल आवी जाय छे. अति संक्षेपमां गंभीर रहस्यो गोठवी देवानी तेमनी शक्ति विद्वानोने आश्चर्यचकित करे छे. तेमनी दैवी टीकाओ श्रुतकेवळीनां वचनो जेवी छे. जेम मूळ शास्त्रकारनां शास्त्रो अनुभव – युक्ति आदि समस्त समृद्धिथी समृद्ध छे तेम टीकाकारनी टीकाओ पण ते ते सर्व समृद्धिथी विभूषित छे. शासनमान्य भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे आ कळिकाळमां जगद्गुरु तीर्थंकरदेव जेवुं काम कर्युं छे अने श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे जाणे के तेओ कुंदकुंदभगवानना हृदयमां पेसी गया होय ते रीते तेमना गंभीर आशयोने यथार्थपणे व्यक्त करीने तेमना गणधर जेवुं काम कर्युं छे. श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे रचेलां काव्यो पण अध्यात्मरसथी अने आत्म-अनुभवनी मस्तीथी भरपूर छे. श्री समयसारनी टीकामां आवतां काव्योए ( – कळशोए) श्री पद्मप्रभदेव जेवा समर्थ मुनिवरो पर ऊंडी छाप पाडी छे अने आजे पण ते तत्त्वज्ञानथी अने अध्यात्मरसथी भरेला मधुर कळशो अध्यात्मरसिकोना हृदयना तारने झणझणावी मूके छे. अध्यात्मकवि तरीके श्री अमृतचंद्राचार्यदेवनुं स्थान अद्वितीय छे.
पंचास्तिकायसंग्रहमां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे १७३ गाथाओ प्राकृतमां रची छे. तेना पर श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे समयव्याख्या नामनी अने श्री जयसेनाचार्यदेवे तात्पर्यवृत्ति नामनी संस्कृत टीका लखी छे. श्री पांडे हेमराजजीए समयव्याख्यानो भावार्थ ( प्राचीन ) हिंदीमां लख्यो छे अने ते भावार्थनुं नाम बालावबोधभाषाटीका राख्युं छे. वि. सं. १९७२मां श्री परमश्रुतप्रभावकमंडळ द्वारा प्रकाशित हिंदी
Page -22 of 256
PDF/HTML Page 18 of 296
single page version
पंचास्तिकायमां मूळ गाथाओ, बंने संस्कृत टीकाओ अने श्री हेमराजजीकृत बालावबोधभाषाटीका ( श्री पन्नालालजी बाकलीवाल द्वारा प्रचलित हिंदी भाषामां परिवर्तित करायेला स्वरूपे ) प्रगट थयेल छे. हवे प्रकाशन पामता आ गुजराती पंचास्तिकायसंग्रहमां मूळ गाथाओ, तेनो गुजराती पद्यानुवाद, संस्कृत समयव्याख्या टीका अने ते गाथा-टीकानो अक्षरशः गुजराती अनुवाद प्रगट करवामां आवेल छे. ज्यां विशेष स्पष्टता करवानी जरूर जणाई त्यां कौंसमां अथवा ‘ भावार्थ ’ मां अथव फूटनोटमां स्पष्टता करी छे. ते स्पष्टता करवामां घणां घणां स्थळोए श्री जयसेनाचार्यदेवकृत तात्पर्यवृत्ति अतिशय उपयोगी थई छे; केटलीक जग्याए तो तात्पर्यवृत्तिना कोई कोई भागनो अक्षरशः अनुवाद ज ‘भावार्थ ’ अथवा फूटनोटरूपे लेवामां आव्यो छे. श्री हेमराजजीकृत बालावबोधभाषाटीकानो आधार पण कोईक स्थळे लीधो छे. श्री परमश्रुतप्रभावक मंडळ द्वारा प्रकाशित पंचास्तिकायमां छपायेली संस्कृत टीकाने हस्तलिखित प्रतो साथे मेळवतां तेमां क्यांक अल्प अशुद्धिओ रही गयेली जणाई ते आमां सुधारी लेवामां आवी छे.
मने प्राप्त थयुं ते मने अति हर्षनुं कारणछे. परमपूज्य सद्गुरुदेवना आश्रय तळे
आ गहन शास्त्रनो अनुवाद थयो छे.
अनुवाद करवानी समस्त शक्ति मने पूज्यपाद सद्गुरुदेव पासेथी ज मळी छे.
परमोपकारी सद्गुरुदेवना पवित्र जीवनना प्रत्यक्ष परिचय विना अने तेमना
आध्यात्मिक उपदेश विना आ पामरने जिनवाणी प्रत्ये लेश पण भक्ति के श्रद्धा
क्यांथी प्रगटत, भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव अने तेमनां शास्त्रोनो लेश पण महिमा क्यांथी
आवत अने ते शास्त्रोना अर्थ-उकेलनी लेश पण शक्ति क्यांथी होत? आ रीते
अनुवादनी समस्त शक्तिनुं मूळ श्री सद्गुरुदेव ज होवाथी खरेखर तो सद्गुरुदेवनी
अमृतवाणीनो धोध ज - तेमना द्वारा मळेलो अणमूल उपदेश ज - यथाकाळे आ
अनुवादरूपे परिणम्यो छे. जेमणे सिंचेली शक्तिथी अने जेमनी हूंफथी आ गहन
शास्त्रनो अनुवाद करवानुं में साहस खेड्युं हतुं अने जेमनी कृपाथी ते निर्विघ्ने पार
पड्यो छे ते परमपूज्य परमोपकारी सद्गुरुदेव (श्री कानजीस्वामी)ना चरणारविंदमां
अति भक्तिभावे वंदन करुं छुं.
अनुवादनी पूर्णाहुति करतां,उपकारवशतानी उग्र लागणी अनुभवाय छे.
जेमनां पवित्र जीवन अने बोध आ
पामरने श्री पंचास्तिकायसंग्रह प्रत्ये, पंचास्तिकायसंग्रहना महान कर्ता प्रत्ये अने
Page -21 of 256
PDF/HTML Page 19 of 296
single page version
पंचास्तिकायसंग्रहमां उपदेशेला वीतरागविज्ञान प्रत्ये बहुमानवृद्धिनां विशिष्ट निमित्त थयां छे, एवां ते परमपूज्य बहेनश्रीनां चरणकमळमां आ हृदय नमे छे.
आ अनुवादमां, माननीय मुरब्बी वकील श्री रामजीभाई माणेकचंद दोशी तथा बाळब्रह्मचारी भाईश्री चंदुलाल खीमचंद झोबाळियानी हार्दिक मदद छे. माननीय मुरब्बी श्री रामजीभाईए पोताना भरचक धार्मिक व्यवसायोमांथी समय काढीने आखो अनुवाद बारीकाईथी तपास्यो छे, यथोचित सलाह आपी छे अने अनुवादमां पडती नानीमोटी मुश्केलीओनो पोताना विशाळ शास्त्रज्ञानथी निवेडो करी आप्यो छे. तेमनी सलाह मने बहु उपयोगी थई छे. ब्र० भाईश्री चंदुलालभाईए आखो अनुवाद बहु ज झीणवटथी तपासी घणी उपयोगी सूचनाओ करी छे, बहु महेनत लईने हस्तलिखित प्रतोना आधारे संस्कृत टीका सुधारी आपी छे, अनुक्रमणिका, गाथासूची, शुद्धिपत्रक वगेरे तैयार कर्यां छे, तेम ज खूब चोकसाईथी प्रूफ तपास्यां छे — आम अतिशय परिश्रम ने काळजीपूर्वक सर्वतोमुखी सहाय करी छे. आ रीते बंनेए करेली हार्दिक मदद माटे हुं तेमनो अंतःकरणपूर्वक आभार मानुं छुं. तेमनी सहृदय सहाय विना आ अनुवादमां घणी ऊणपो रही जवा पामत. जे जे टीकाओ अने शास्त्रोनो में आधार लीधो छे ते सर्वना कर्ताओनो पण हुं ॠणी छुं.
आ अनुवाद में पंचास्तिकायसंग्रह प्रत्येनी भक्तिथी अने गुरुदेवनी प्रेरणाथी प्रेराईने, निजकल्याण अर्थे, भवभयथी डरतां डरतां कर्यो छे. अनुवाद करतां शास्त्रना मूळ आशयोमां कांई फेरफार न थई जाय ते माटे में माराथी बनती तमाम काळजी राखी छे. छतां अल्पज्ञताने लीधे तेमां कांई पण आशयफेर थयो होय के भूलो रही गई होय तो ते माटे हुं शास्त्रकार श्री कुंदकुंदाचार्यभगवान, टीकाकार श्री अमृतचंद्रा- चार्यदेव, परमकृपाळु श्री सद्गुरुदेव अने मुमुक्षु वाचकोनी अंतरना ऊंडाणमांथी क्षमा याचुं छुं.
जिनेन्द्रशासननुं संक्षेपथी प्रतिपादन करनारा आ पवित्र शास्त्रनो अभ्यास करी तेना आशयोने जो जीव बराबर समजे तो ते अवश्य चार गतिनां अनंत दुःखोनो नाश करी निर्वाणने पामे. तेना आशयोने सम्यक् प्रकारे समजवा माटे नीचेनी बाबत लक्षमां राखवी खास जरूरनी छेः — आ शास्त्रमां केटलांक कथनो स्वाश्रित निश्चयनयनां छे ( -जेओ स्वनुं परथी पृथक्पणे निरूपण करे छे) अने केटलांक कथनो पराश्रित व्यवहारनयनां छे ( – जेओ स्वनुं पर साथे भेळसेळपणे निरूपण करे छे); वळी केटलांक कथनो अभिन्नसाध्य-
Page -20 of 256
PDF/HTML Page 20 of 296
single page version
साधनभावाश्रित निश्चयनयनां छे अने केटलांक भिन्नसाध्यसाधन-भावाश्रित व्यवहारनयनां छे. त्यां निश्चयकथनोनो तो सीधो ज अर्थ करवो जोईए अने व्यवहारकथनोने अभूतार्थ समजी तेमनो साचो आशय शो छे ते तारववुं जोईए. जो आम करवामां न आवे तो विपरीत समजण थवाथी महा अनर्थ थाय. ‘प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र छे. ते पोताना ज गुणपर्यायने अने उत्पादव्ययध्रौव्यने करे छे. परद्रव्यने ते ग्रही-छोडी शकतुं नथी तेम ज परद्रव्य तेने खरेखर कांई लाभनुकसान के सहाय करी शकतुं नथी. .....जीवनो शुद्ध पर्याय संवर-निर्जरा-मोक्षना कारणभूत छे अने अशुद्ध पर्याय आस्रव-बंधना कारणभूत छे.’ -
आवा मूळभूत सिद्धांतोने क्यांय बाध न आवे एवी रीते हंमेशां शास्त्रनां कथनोनो अर्थ करवो जोईए. वळी आ शास्त्रने विषे केटलाक परमप्रयोजनभूत भावोनुं निरूपण अति संक्षेपमां ज करायेलुं होवाथी, जो आ शास्त्रना अभ्यासनी पूर्ति समयसार, नियमसार, प्रवचनसार वगेरे अन्य शास्त्रोना अभ्यास वडे करवामां आवे तो मुमुक्षुओने आ शास्त्रना आशयो समजवामां विशेष सुगमता थशे. आचार्यभगवाने सम्यग्ज्ञाननी प्रसिद्धि अर्थे अने मार्गनी प्रभावना अर्थे आ पंचास्तिकाय-संग्रह शास्त्र कह्युं छे. आपणे तेनो अभ्यास करी, सर्व द्रव्योनी स्वतंत्रता समजी, नव पदार्थोनी यथार्थ समजण करी, चैतन्यगुणमय जीवद्रव्यसामान्यनो आश्रय करी, सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान प्रगटावी, मार्गने प्राप्त करी, भवभ्रमणनां दुःखोना अंतने पामीए ए ज भावना छे. श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे पंचास्तिकायसंग्रहना सम्यक् अवबोधनुं फळ नीचेना शब्दोमां वर्णव्युं छेः — ‘‘जे पुरुष खरेखर समस्तवस्तुतत्त्वना कहेनारा आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ने अर्थतः अर्थीपणे जाणीने, एमां ज कहेला जीवास्तिकायने विषे अंतर्गत रहेला पोताने (निज आत्माने) स्वरूपे अत्यंत विशुद्ध चैतन्यस्वभाववाळो निश्चित करीने, परस्पर कार्यकारणभूत एवा अनादि रागद्वेषपरिणाम अने कर्मबंधनी परंपराथी जेनामां स्वरूपविकार आरोपायेलो छे एवो पोताने (निज आत्माने) ते काळे अनुभवातो अवलोकीने, ते काळे विवेकज्योति प्रगट होवाथी (अर्थात् अत्यंत विशुद्ध चैतन्यस्वभावनुं अने विकारनुं भेदज्ञान ते काळे ज प्रगट वर्ततुं होवाथी) कर्मबंधनी परंपराने प्रवर्तावनारी रागद्वेष-परिणतिने छोडे छे, ते पुरुष, खरेखर जेने स्नेह जीर्ण थतो जाय छे एवो, जघन्य स्नेहगुणनी संमुख वर्तता परमाणुनी माफक भावी बंधथी पराङ्मुख वर्ततो थको, पूर्व बंधथी छूटतो थको, अग्नितप्त जळनी दुःस्थिति समान जे दुःख तेनाथी परिमुक्त थाय छे.’’ आसो वद ४, वि. सं. २०१३ — हिंमतलाल जेठालाल शाह