Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 33.

< Previous Page   Next Page >


Page 61 of 256
PDF/HTML Page 101 of 296

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
६१

सम्भवत्षट्स्थानपतितवृद्धिहानयोऽनन्ताः प्रदेशास्तु अविभागपरमाणुपरिच्छिन्नसूक्ष्मांशरूपा असंख्येयाः एवंविधेषु तेषु केचित्कथञ्चिल्लोकपूरणावस्थाप्रकारेण सर्वलोकव्यापिनः, केचित्तु तदव्यापिन इति अथ ये तेषु मिथ्यादर्शनकषाययोगैरनादिसंततिप्रवृत्तैर्युक्तास्ते संसारिणः, ये विमुक्तास्ते सिद्धाः, ते च प्रत्येकं बहव इति ।।३१३२।।

जह पउमरायरयणं खित्तं खीरे पभासयदि खीरं
तह देही देहत्थो सदेहमेत्तं पभासयदि ।।३३।।
यथा पद्मरागरत्नं क्षिप्तं क्षीरे प्रभासयति क्षीरम्
तथा देही देहस्थः स्वदेहमात्रं प्रभासयति ।।३३।।

एष देहमात्रत्वद्रष्टान्तोपन्यासः हानिवाळा अनंत छे; अने (तेमना अर्थात् जीवोना) प्रदेशोके जेओ अविभाग परमाणु जेवडा मापवाळा सूक्ष्म अंशरूप छे तेओअसंख्य छे. आवा ते जीवोमां केटलाक कथंचित् (केवळसमुद्घातना कारणे) लोकपूरण-अवस्थाना प्रकार वडे आखा लोकमां व्याप्त होय छे अने केटलाक आखा लोकमां अव्याप्त होय छे. वळी ते जीवोमां जेओ अनादि प्रवाहरूपे प्रवर्तता मिथ्यादर्शन-कषाय-योगथी सहित छे तेओ संसारी छे, जेओ तेमनाथी विमुक्त छे (अर्थात् मिथ्यादर्शन-कषाय-योगथी रहित छे) तेओ सिद्ध छे; अने ते दरेक प्रकारना जीवो घणा छे (अर्थात् संसारी तेम ज सिद्ध जीवोमांना दरेक प्रकारना जीवो अनंत छे). ३१३२.

ज्यम दूधमां स्थित पद्मरागमणि प्रकाशे दूधने,
त्यम देहमां स्थित देही देहप्रमाण व्यापकता लहे. ३३.

अन्वयार्थ[ यथा ] जेम [ पद्मरागरत्नं ] पद्मरागरत्न [ क्षीरे क्षिप्तं ] दूधमां नाखवामां आव्युं थकुं [ क्षीरम् प्रभासयति ] दूधने प्रकाशे छे, [ तथा ] तेम [ देही ] देही (जीव) [ देहस्थः ] देहमां रह्यो थको [ स्वदेहमात्रं प्रभासयति ] स्वदेहप्रमाण प्रकाशे छे.

टीकाआ, देहप्रमाणपणाना *द्रष्टांतनुं कथन छे (अर्थात् अहीं जीवनुं

समानतावाळां) होय छे, सर्व अंशोमां नहि.

*अहीं ए ख्यालमां राखवुं के द्रष्टांत अने दार्ष्टांत अमुक अंशोमां ज एकबीजा साथे मळतां
(
`