जीवा हि निश्चयेन परभावानामकरणात्स्वभावानां कर्तारो भविष्यन्ति । तांश्च कुर्वाणाः किमनादिनिधनाः, किं सादिसनिधनाः, किं साद्यनिधनाः, किं तदाकारेण परिणताः, किमपरिणताः भविष्यन्तीत्याशङ्कयेदमुक्त म् ।
जीवा हि सहजचैतन्यलक्षणपारिणामिकभावेनानादिनिधनाः । त एवौदयिक-
हवे कर्तृत्वगुणनुं व्याख्यान छे. तेमां, शरूआतनी त्रण गाथाओथी तेनो उपोद्घात करवामां आवे छे.
अन्वयार्थः — [ जीवाः ] जीवो [ अनादिनिधनाः ] (पारिणामिकभावथी) अनादि- अनंत छे, [ सान्ताः ] (त्रण भावोथी) सांत (अर्थात् सादि-सांत) छे [ च ] अने [ जीवभावात् अनन्ताः ] जीवभावथी अनंत छे (अर्थात् जीवना सद्भावरूप क्षायिकभावथी सादि-अनंत छे) [ सद्भावतः अनन्ताः ] कारण के सद्भावथी जीवो अनंत ज होय छे. [ पञ्चाग्रगुणप्रधानाः च ] तेओ पांच मुख्य गुणोथी प्रधानतावाळा छे.
टीकाः — निश्चयथी पर-भावोनुं करवापणुं नहि होवाथी जीवो स्व-भावोना कर्ता होय छे; अने तेमने ( – पोताना भावोने) करता थका, शुं तेओ अनादि-अनंत छे? शुं सादि- सांत छे? शुं सादि-अनंत छे? शुं तदाकारे (ते-रूपे) परिणत छे? शुं (तदाकारे) अपरिणत छे? — एम आशंका करीने आ कहेवामां आव्युं छे (अर्थात् ते आशंकाओना समाधानरूपे आ गाथा कहेवामां आवी छे).
जीवो खरेखर *सहजचैतन्यलक्षण पारिणामिक भावथी अनादि-अनंत छे. तेओ पं. १२
* जीवना पारिणामिक भावनुं लक्षण अर्थात् स्वरूप सहज-चैतन्य छे. आ पारिणामिक भाव अनादि- अनंत होवाथी आ भावनी अपेक्षाए जीवो अनादि-अनंत छे.