Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 53.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
८९
अथ कर्तृत्वगुणव्याख्यानम् तत्रादिगाथात्रयेण तदुपोद्घातः
जीवा अणाइणिहणा संता णंता य जीवभावादो
सब्भावदो अणंता पंचग्गगुणप्पधाणा य ।।५३।।
जीवा अनादिनिधनाः सान्ता अनन्ताश्च जीवभावात
सद्भावतोऽनन्ताः पञ्र्चाग्रगुणप्रधानाः च ।।५३।।

जीवा हि निश्चयेन परभावानामकरणात्स्वभावानां कर्तारो भविष्यन्ति तांश्च कुर्वाणाः किमनादिनिधनाः, किं सादिसनिधनाः, किं साद्यनिधनाः, किं तदाकारेण परिणताः, किमपरिणताः भविष्यन्तीत्याशङ्कयेदमुक्त म्

जीवा हि सहजचैतन्यलक्षणपारिणामिकभावेनानादिनिधनाः त एवौदयिक-

हवे कर्तृत्वगुणनुं व्याख्यान छे. तेमां, शरूआतनी त्रण गाथाओथी तेनो उपोद्घात करवामां आवे छे.

जीवो अनादि-अनंत, सांत, अनंत छे जीवभावथी,
सद्भावथी नहि अंत होय; प्रधानता गुण पांचथी. ५३.

अन्वयार्थ[ जीवाः ] जीवो [ अनादिनिधनाः ] (पारिणामिकभावथी) अनादि- अनंत छे, [ सान्ताः ] (त्रण भावोथी) सांत (अर्थात् सादि-सांत) छे [ च ] अने [ जीवभावात अनन्ताः ] जीवभावथी अनंत छे (अर्थात् जीवना सद्भावरूप क्षायिकभावथी सादि-अनंत छे) [ सद्भावतः अनन्ताः ] कारण के सद्भावथी जीवो अनंत ज होय छे. [ पञ्चाग्रगुणप्रधानाः च ] तेओ पांच मुख्य गुणोथी प्रधानतावाळा छे.

टीकानिश्चयथी पर-भावोनुं करवापणुं नहि होवाथी जीवो स्व-भावोना कर्ता होय छे; अने तेमने (पोताना भावोने) करता थका, शुं तेओ अनादि-अनंत छे? शुं सादि- सांत छे? शुं सादि-अनंत छे? शुं तदाकारे (ते-रूपे) परिणत छे? शुं (तदाकारे) अपरिणत छे?एम आशंका करीने आ कहेवामां आव्युं छे (अर्थात् ते आशंकाओना समाधानरूपे आ गाथा कहेवामां आवी छे).

जीवो खरेखर *सहजचैतन्यलक्षण पारिणामिक भावथी अनादि-अनंत छे. तेओ पं. १२

* जीवना पारिणामिक भावनुं लक्षण अर्थात् स्वरूप सहज-चैतन्य छे. आ पारिणामिक भाव अनादि- अनंत होवाथी आ भावनी अपेक्षाए जीवो अनादि-अनंत छे.