भारतवर्षना भव्य जीवोने प्रतिबोध कर्यो छे एवा जे श्री जिनचंद्रसूरिभट्टारकना पट्टना
आभरणरूप कळिकाळसर्वज्ञ (भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव) तेमणे रचेला आ षट्प्राभृत
ग्रंथमां........सूरीश्वर श्री श्रुतसागरे रचेली मोक्षप्राभृतनी टीका समाप्त थई.’’ आम
षट्प्राभृतनी श्री श्रुतसागरसूरिकृत टीकाना अंतमां लखेलुं छे.
कुंदकुंदाचार्यदेवनी महत्ता बतावनारा आवा अनेकानेक उल्लेखो जैन साहित्यमां मळी आवे छे; २शिलालेखो पण अनेक छे. आ रीते आपणे जोयुं के सनातन जैन संप्रदायमां कळिकाळसर्वज्ञ भगवान कुंदकुंदाचार्यनुं स्थान अजोड छे.
भगवान कुंदकुंदाचार्यनां रचेलां अनेक शास्त्रो छे, जेमांथी थोडांक हालमां विद्यमान छे. त्रिलोकनाथ सर्वज्ञदेवना मुखमांथी वहेली श्रुतामृतनी सरितामांथी भरी लीधेलां ते अमृतभाजनो हालमां पण अनेक आत्मार्थीओने आत्मजीवन अर्पे छे. तेमनां समयसार, प्रवचनसार, नियमसार अने पंचास्तिकायसंग्रह नामनां उत्तमोत्तम परमागमोमां हजारो शास्त्रोनो सार आवी जाय छे. भगवान कुंदकुंदाचार्य पछी लखायेला घणा ग्रंथोनां बीजडां आ परमागमोमां रहेलां छे एम सूक्ष्म द्रष्टिथी अभ्यास करतां जणाय छे. श्री समयसार आ भरतक्षेत्रनुं सर्वोत्कृष्ट परमागम छे. तेमां नव तत्त्वोनुं शुद्धनयनी द्रष्टिथी निरूपण करी जीवनुं शुद्ध स्वरूप सर्व तरफथी — आगम, युक्ति, अनुभव अने परंपराथी — अति विस्तारपूर्वक समजाव्युं छे. श्री प्रवचनसारमां तेना नाम अनुसार जिनप्रवचननो सार संघर्यो छे अने तेने ज्ञानतत्त्व, ज्ञेयतत्त्व अने चरणानुयोगना त्रण अधिकारोमां विभाजित कर्युं छे. श्री नियमसारमां मोक्षमार्गनुं स्पष्ट सत्यार्थ निरूपण छे. जेम समयसारमां शुद्धनयथी नव तत्त्वोनुं निरूपण कर्युं छे तेम नियमसारमां मुख्यत्वे शुद्धनयथी जीव, अजीव, शुद्धभाव, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, आलोचना, प्रायश्चित्त, समाधि, भक्ति, आवश्यक, शुद्धोपयोग वगेरेनुं वर्णन छे. श्री पंचास्तिकायसंग्रहमां काळ सहित पांच अस्तिकायोनुं (अर्थात् छ द्रव्योनुं) अने नव पदार्थपूर्वक मोक्षमार्गनुं निरूपण छे.
१. भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवना विदेहगमन संबंधी एक उल्लेख (लगभग विक्रम संवतना १३मा सैकामां थई गयेला) श्री जयसेनाचार्यदेवे पण कर्यो छे; ते उल्लेख माटे आ शास्त्रना ३जा पानानी फूटनोट जुओ.
२. शिलालेखोना नमूना माटे १९मुं पानुं जुओ.