आ पंचास्तिकायसंग्रह परमागम शरू करतां शास्त्रकर्ताए तेने ‘सर्वज्ञ महामुनिना मुखथी कहेवायेला पदार्थोनुं प्रतिपादक, चतुर्गतिनाशक अने निर्वाणनुं कारण’ कह्युं छे. तेमां कहेला वस्तुतत्त्वनो सार आ प्रमाणे छेः —
विश्व एटले अनादि-अनंत स्वयंसिद्ध सत् एवी अनंतानंत वस्तुओनो समुदाय. तेमांनी प्रत्येक वस्तु अनुत्पन्न अने अविनाशी छे. प्रत्येक वस्तुमां अनंत शक्तिओ अथवा गुणो छे, जे त्रिकाळिक नित्य छे. प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षण पोतामां पोतानुं कार्य करती होवा छतां अर्थात् नवीन दशाओ — अवस्थाओ — पर्यायो धरती होवा छतां ते पर्यायो एवी मर्यादामां रहीने थाय छे के वस्तु पोतानी जातने छोडती नथी अर्थात् तेनी शक्तिओमांथी एक पण घटती – वधती नथी. वस्तुओनी ( – द्रव्योनी) भिन्नभिन्न शक्तिओनी अपेक्षाए तेमनी ( – द्रव्योनी) छ जातिओ छेः जीवद्रव्य, पुद्गलद्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य अने काळद्रव्य. जेनामां सदा ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख वगेरे अनंत गुणो ( – शक्तिओ) होय छे ते जीवद्रव्य छे; जेनामां सदा वर्ण, गंध, रस, स्पर्श वगेरे अनंत गुणो होय छे ते पुद्गलद्रव्य छे; बाकीनां चार द्रव्योना विशिष्ट गुणो अनुक्रमे गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहहेतुत्व अने वर्तनाहेतुत्व छे. आ छ द्रव्योमांथी पहेलां पांच द्रव्यो सत् होवाथी तेम ज शक्ति अथवा व्यक्ति-अपेक्षाए मोटा क्षेत्रवाळां होवाथी ‘अस्तिकाय’ छे; काळद्रव्य ‘अस्ति’ छे पण ‘काय’ नथी.
जिनेंद्रना ज्ञानदर्पणमां झळकतां आ सर्व द्रव्यो — अनंत जीवद्रव्यो, अनंतानंत पुद्गलद्रव्यो, एक धर्मद्रव्य, एक अधर्मद्रव्य, एक आकाशद्रव्य अने असंख्य काळद्रव्यो — स्वयं परिपूर्ण छे अने अन्य द्रव्योथी तद्दन स्वतंत्र छे; तेओ एकबीजा साथे परमार्थे कदी मळतां नथी, भिन्न ज रहे छे. देव, मनुष्य, तिर्यंच, नारक, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय वगेरे जीवोमां जीव-पुद्गल जाणे के मळी गयां होय एम लागे छे पण खरेखर एम नथी; तेओ तद्दन पृथक् छे. सर्व जीवो अनंत ज्ञानसुखना निधि होवा छतां, पर द्वारा तेमने कांई सुखदुःख नहि थतुं होवा छतां, संसारी अज्ञानी जीव अनादि काळथी स्वतः अज्ञानपर्याये परिणमी पोताना ज्ञानानंदस्वभावने, परिपूर्णताने, स्वातंत्र्यने अने अस्तित्वने पण भूली रह्यो छे तथा पर पदार्थोने सुखदुःखना कारण मानी तेमना प्रत्ये रागद्वेष कर्या करे छे; जीवना आवा भावोना निमित्ते पुद्गलो स्वतः ज्ञानावरणादिकर्मपर्याये परिणमी जीवनी साथे संयोगमां आवे छे अने तेथी अनादि काळथी जीवने पौद्गलिक देहनो संयोग थया करे