Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

द्रव्यकर्मणां निमित्तमात्रत्वेनौदयिकादिभावकर्तृत्वमत्रोक्त म्

न खलु कर्मणा विना जीवस्योदयोपशमौ क्षयक्षयोपशमावपि विद्येते; ततः क्षायिक- क्षायोपशमिकश्चौदयिकौपशमिकश्च भावः कर्मकृतोऽनुमन्तव्यः पारिणामिकस्त्वनादिनिधनो निरुपाधिः स्वाभाविक एव क्षायिकस्तु स्वभावव्यक्ति रूपत्वादनन्तोऽपि कर्मणः क्षयेणोत्पद्य- मानत्वात्सादिरिति कर्मकृत एवोक्त : औपशमिकस्तु कर्मणामुपशमे समुत्पद्यमानत्वादनुपशमे समुच्छिद्यमानत्वात् कर्मकृत एवेति

अथवा उदयोपशमक्षयक्षयोपशमलक्षणाश्चतस्रो द्रव्यकर्मणामेवावस्थाः, न पुनः परि- णामलक्षणैकावस्थस्य जीवस्य; तत उदयादिसञ्जातानामात्मनो भावानां निमित्तमात्रभूत-

टीकाअहीं, (औदयिकादि भावोनां) निमित्तमात्र तरीके द्रव्यकर्मोने औदयिकादि भावोनुं कर्तापणुं कह्युं छे.

(एक रीते व्याख्या करतां) कर्म विना जीवने उदयउपशम तेम ज क्षय क्षयोपशम होता नथी (अर्थात् द्रव्यकर्म विना जीवने औदयिकादि चार भावो होता नथी); तेथी क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक के औपशमिक भाव कर्मकृत संमत करवो. पारिणामिक भाव तो अनादि-अनंत, *निरुपाधि, स्वाभाविक ज छे. (औदयिक अने क्षायोपशमिक भावो कर्म विना होता नथी अने तेथी कर्मकृत कही शकायए वात तो स्पष्ट समजाय एवी छे; क्षायिक अने औपशमिक भावोनी बाबतमां नीचे प्रमाणे स्पष्टता करवामां आवे छेः) क्षायिक भाव, जोके स्वभावनी व्यक्तिरूप (प्रगटतारूप) होवाथी अनंत (अंत विनानो) छे तोपण, कर्मना क्षय वडे उत्पन्न थतो होवाने लीधे सादि छे तेथी कर्मकृत ज कहेवामां आव्यो छे. औपशमिक भाव कर्मना उपशमे उत्पन्न थतो होवाथी अने अनुपशमे नष्ट थतो होवाथी कर्मकृत ज छे. (आम औदयिकादि चार भावो कर्मकृत संमत करवा.)

अथवा (बीजी रीते व्याख्या करतां)उदय, उपशम, क्षय अने क्षयोपशमस्वरूप चार (अवस्थाओ) द्रव्यकर्मनी ज अवस्थाओ छे, परिणामस्वरूप एक अवस्थावाळा जीवनी नहि (अर्थात् उदय वगेरे अवस्थाओ द्रव्यकर्मनी ज छे, परिणाम’ जेनुं स्वरूप छे एवी एक अवस्थाए अवस्थित जीवनीपारिणामिक भावरूपे रहेला जीवनीते चार अवस्थाओ नथी); तेथी उदयादिक वडे उत्पन्न थता

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*निरुपाधि = उपाधि विनानो; औपाधिक न होय एवो. (जीवनो पारिणामिक भाव सर्व कर्मोपाधिथी
निरपेक्ष होवाने लीधे निरुपाधि छे.)