Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 78.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
सर्वेषां स्कन्धानां योऽन्त्यस्तं विजानीहि परमाणुम्
स शाश्वतोऽशब्दः एकोऽविभागी मूर्तिभवः ।।७७।।

परमाणुव्याख्येयम्

उक्तानां स्कन्धरूपपर्यायाणां योऽन्त्यो भेदः स परमाणुः स तु पुनर्विभागा- भावादविभागी, निर्विभागैकप्रदेशत्वादेकः, मूर्तद्रव्यत्वेन सदाप्यविनश्वरत्वान्नित्यः, अनादि- निधनरूपादिपरिणामोत्पन्नत्वान्मूर्तिभवः, रूपादिपरिणामोत्पन्नत्वेऽपि शब्दस्य परमाणु- गुणत्वाभावात्पुद्गलस्कन्धपर्यायत्वेन वक्ष्यमाणत्वाच्चाशब्दो निश्चीयत इति ।।७७।।

आदेसमेत्तमुत्तो धादुचदुक्कस्स कारणं जो दु
सो णेओ परमाणू परिणामगुणो सयमसद्दो ।।७८।।

अन्वयार्थ[ सर्वेषां स्क न्धानां ] सर्व स्कंधोनो [ यः अन्त्यः ] जे अंतिम भाग [ तं ] तेने [ परमाणुम् विजानीहि ] परमाणु जाणो. [ सः] ते [ अविभागी ] अविभागी, [ एकः ] एक, [ शाश्वतः ] शाश्वत, [ मूर्तिभवः ] मूर्तिप्रभव (मूर्तपणे ऊपजनारो) अने [ अशब्दः ] अशब्द छे.

टीकाआ, परमाणुनी व्याख्या छे.

पूर्वोक्त स्कंधरूप पर्यायोनो जे अंतिम भेद (नानामां नानो भाग) ते परमाणु छे. अने ते तो, विभागना अभावने लीधे अविभागी छे; निर्विभाग-एकप्रदेशवाळो होवाथी एक छे; मूर्तद्रव्यपणे सदाय अविनाशी होवाथी नित्य छे; अनादि-अनंत रूपादिना परिणामे ऊपजतो होवाथी *मूर्तिप्रभव छे; अने रूपादिना परिणामे ऊपजता होवा छतां पण अशब्द छे एम निश्चित छे, कारण के शब्द परमाणुनो गुण नथी तथा तेनुं (शब्दनुं) हवे पछी (७९मी गाथामां) पुद्गलस्कंधपर्यायपणे कथन छे. ७७.

आदेशमात्रथी मूर्त, धातुचतुष्कनो छे हेतु जे,
ते जाणवो परमाणुजे परिणामी, आप अशब्द छे. ७८.

११

*मूर्तिप्रभव=मूर्तपणारूपे ऊपजनारो अर्थात् रूप-गंध-रस-स्पर्शना परिणामरूपे जेनो उत्पाद थाय छे एवो. (मूर्ति=मूर्तपणुं)