परमाणूनां जात्यन्तरत्वनिरासोऽयम् ।
परमाणोर्हि मूर्तत्वनिबन्धनभूताः स्पर्शरसगन्धवर्णा आदेशमात्रेणैव भिद्यन्ते; वस्तुतस्तु यथा तस्य स एव प्रदेश आदिः, स एव मध्यः, स एवान्तः इति, एवं द्रव्यगुणयोरविभक्त प्रदेशत्वात् य एव परमाणोः प्रदेशः, स एव स्पर्शस्य, स एव रसस्य, स एव गन्धस्य, स एव रूपस्येति । ततः क्वचित्परमाणौ गन्धगुणे, क्वचित् गन्धरसगुणयोः, क्वचित् गन्धरसरूपगुणेषु अपकृष्यमाणेषु तदविभक्त प्रदेशः परमाणुरेव विनश्यतीति । न तदपकर्षो युक्त : । ततः पृथिव्यप्तेजोवायुरूपस्य धातुचतुष्कस्यैक एव
अन्वयार्थः — [ यः तु ] जे [ आदेशमात्रमूर्त्तः ] आदेशमात्रथी मूर्त छे (अर्थात् मात्र भेदविवक्षाथी मूर्तत्ववाळो कहेवाय छे) अने [ धातुचतुष्कस्य कारणं ] जे (पृथ्वी आदि) चार धातुओनुं कारण छे [ सः] ते [ परमाणुः ज्ञेयः ] परमाणु जाणवो — [ परिणामगुणः ] के जे परिणामगुणवाळो छे अने [ स्वयम् अशब्दः ] स्वयं अशब्द छे.
टीकाः — परमाणुओ भिन्न भिन्न जातिना होवानुं आ खंडन छे.
मूर्तत्वना कारणभूत स्पर्श-रस-गंध-वर्णनो, परमाणुथी *आदेशमात्र वडे ज भेद करवामां आवे छे; वस्तुतः तो जेवी रीते परमाणुनो ते ज प्रदेश आदि छे, ते ज प्रदेश मध्य छे अने ते ज प्रदेश अंत छे, तेवी रीते द्रव्य अने गुणना अभिन्न प्रदेश होवाथी, जे परमाणुनो प्रदेश छे, ते ज स्पर्शनो छे, ते ज रसनो छे, ते ज गंधनो छे, ते ज रूपनो छे. तेथी कोई परमाणुमां गंधगुण ओछो होय, कोई परमाणुमां गंधगुण अने रसगुण ओछा होय, कोई परमाणुमां गंधगुण, रसगुण अने रूपगुण ओछा होय, तो ते गुणथी अभिन्न प्रदेशवाळो परमाणु ज विनाश पामे. माटे ते गुणनी ओछप युक्त (
अभिन्न प्रदेशवाळो परमाणु ज नाश पामे; माटे बधा परमाणुओ समान गुणवाळा ज छे, एटले के तेओ भिन्न भिन्न जातिना नथी.] तेथी पृथ्वी, पाणी, अग्नि अने वायुरूप चार धातुओनुं, परिणामने लीधे, एक ज परमाणु कारण छे (अर्थात्
*आदेश = कथन. [मात्र भेदकथन द्वारा ज परमाणुथी स्पर्श-रस-गंध-वर्णनो भेद पाडवामां आवे छे, परमार्थे तो परमाणुथी स्पर्श-रस-गंध-वर्णनो अभेद छे.]