परमाणुः कारणं परिणामवशात् । विचित्रो हि परमाणोः परिणामगुणः क्वचित्कस्यचिद्गुणस्य व्यक्ताव्यक्त त्वेन विचित्रां परिणतिमादधाति । यथा च तस्य परिणामवशादव्यक्तो गन्धादि- गुणोऽस्तीति प्रतिज्ञायते, न तथा शब्दोऽप्यव्यक्तोऽस्तीति ज्ञातुं शक्यते, तस्यैकप्रदेशस्यानेक- प्रदेशात्मकेन शब्देन सहैकत्वविरोधादिति ।।७८।।
परमाणुओ एक ज जातिना होवा छतां तेओ परिणामने लीधे चार धातुओनां कारण बने छे); केम के विचित्र एवो परमाणुनो परिणामगुण क्यांक कोई गुणनी
वळी जेवी रीते परमाणुने परिणामने लीधे +अव्यक्त गंधादिगुण छे एम जणाय छे तेवी रीते शब्द पण अव्यक्त छे एम जाणी शकातुं नथी, कारण के एकप्रदेशी परमाणुने अनेकप्रदेशात्मक शब्द साथे एकत्व होवामां विरोध छे. ७८.
अन्वयार्थः — [ शब्दः स्कन्धप्रभवः ] शब्द स्कंधजन्य छे. [ स्कन्धः परमाणु- सङ्गसङ्घातः ] स्कंध परमाणुदळनो संघात छे, [ तेषु स्पृष्टेषु ] अने ते स्कंधो स्पर्शातां — अथडातां [ शब्दः जायते ] शब्द उत्पन्न थाय छे; [ नियतः उत्पादिकः ] ए रीते
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*व्यक्ताव्यक्तता वडे विचित्र परिणतिने धारण करे छे.
*व्यक्ताव्यक्तता = व्यक्तता अथवा अव्यक्तता; प्रगटता अथवा अप्रगटता. [पृथ्वीमां स्पर्श, रस, गंध,
ने वर्ण ए चारे गुणो व्यक्त (अर्थात् व्यक्तपणे परिणत) होय छे; पाणीमां स्पर्श, रस ने वर्ण
व्यक्त होय छे अने गंध अव्यक्त होय छे; अग्निमां स्पर्श ने वर्ण व्यक्त होय छे अने बाकीना
बे अव्यक्त होय छे; वायुमां स्पर्श व्यक्त होय छे अने बाकीना त्रण अव्यक्त होय छे.]
+जेवी रीते परमाणुमां गंधादिगुण भले अव्यक्तपणे पण होय छे तो खरो ज तेवी रीते परमाणुमां
शब्द पण अव्यक्तपणे रहेतो हशे एम नथी, शब्द तो परमाणुमां व्यक्तपणे के अव्यक्तपणे बिलकुल
होतो ज नथी.