Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 79.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

परमाणुः कारणं परिणामवशात विचित्रो हि परमाणोः परिणामगुणः क्वचित्कस्यचिद्गुणस्य व्यक्ताव्यक्त त्वेन विचित्रां परिणतिमादधाति यथा च तस्य परिणामवशादव्यक्तो गन्धादि- गुणोऽस्तीति प्रतिज्ञायते, न तथा शब्दोऽप्यव्यक्तोऽस्तीति ज्ञातुं शक्यते, तस्यैकप्रदेशस्यानेक- प्रदेशात्मकेन शब्देन सहैकत्वविरोधादिति ।।७८।।

सद्दो खंधप्पभवो खंधो परमाणुसंगसंघादो
पुट्ठेसु तेसु जायदि सद्दो उप्पादिगो णियदो ।।७९।।
शब्दः स्कन्धप्रभवः स्कन्धः परमाणुसङ्गसङ्घातः
स्पृष्टेषु तेषु जायते शब्द उत्पादिको नियतः ।।७९।।

परमाणुओ एक ज जातिना होवा छतां तेओ परिणामने लीधे चार धातुओनां कारण बने छे); केम के विचित्र एवो परमाणुनो परिणामगुण क्यांक कोई गुणनी

वळी जेवी रीते परमाणुने परिणामने लीधे +अव्यक्त गंधादिगुण छे एम जणाय छे तेवी रीते शब्द पण अव्यक्त छे एम जाणी शकातुं नथी, कारण के एकप्रदेशी परमाणुने अनेकप्रदेशात्मक शब्द साथे एकत्व होवामां विरोध छे. ७८.

छे शब्द स्कंधोत्पन्न; स्कंधो अणुसमूहसंघात छे,
स्कंधाभिघाते शब्द ऊपजे, नियमथी उत्पाद्य छे. ७९.

अन्वयार्थ[ शब्दः स्कन्धप्रभवः ] शब्द स्कंधजन्य छे. [ स्कन्धः परमाणु- सङ्गसङ्घातः ] स्कंध परमाणुदळनो संघात छे, [ तेषु स्पृष्टेषु ] अने ते स्कंधो स्पर्शातां अथडातां [ शब्दः जायते ] शब्द उत्पन्न थाय छे; [ नियतः उत्पादिकः ] ए रीते

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*व्यक्ताव्यक्तता वडे विचित्र परिणतिने धारण करे छे.

*व्यक्ताव्यक्तता = व्यक्तता अथवा अव्यक्तता; प्रगटता अथवा अप्रगटता. [पृथ्वीमां स्पर्श, रस, गंध, ने वर्ण ए चारे गुणो व्यक्त (अर्थात् व्यक्तपणे परिणत) होय छे; पाणीमां स्पर्श, रस ने वर्ण व्यक्त होय छे अने गंध अव्यक्त होय छे; अग्निमां स्पर्श ने वर्ण व्यक्त होय छे अने बाकीना
बे अव्यक्त होय छे; वायुमां स्पर्श व्यक्त होय छे अने बाकीना त्रण अव्यक्त होय छे.
]

+जेवी रीते परमाणुमां गंधादिगुण भले अव्यक्तपणे पण होय छे तो खरो ज तेवी रीते परमाणुमां
शब्द पण अव्यक्तपणे रहेतो हशे एम नथी, शब्द तो परमाणुमां व्यक्तपणे के अव्यक्तपणे बिलकुल
होतो ज नथी.