वस्तुस्वरूप जीवना ख्यालमां आवतुं नथी त्यां सुधी बीजा लाख प्रयत्ने पण तेने
मोक्षनो उपाय हाथ लागतो नथी. तेथी ज आ शास्त्रने विषे प्रथम पंचास्तिकाय अने
नव पदार्थनुं स्वरूप समजाववामां आव्युं छे के जेथी जीव वस्तुस्वरूपने समजी
मोक्षमार्गना मूळभूत सम्यग्दर्शनने प्राप्त थाय.
अस्तिकायो अने पदार्थोना निरूपण पछी आ शास्त्रमां मोक्षमार्गसूचक चूलिका छे. आ अंतिम अधिकार, शास्त्ररूपी मंदिर उपर रत्नकळश समान शोभे छे. अध्यात्मरसिक आत्मार्थी जीवोनो, आ अति प्रिय अधिकार छे. तेमने आ अधिकारनो रसास्वाद लेतां जाणे के तृप्ति ज थती नथी. तेमां मुख्यत्वे वीतराग चारित्रनुं — स्वसमयनुं — शुद्ध मुनिदशानुं — पारमार्थिक मोक्षमार्गनुं भाववाही मधुर प्रतिपादन छे, तेम ज मुनिने सराग चारित्रनी दशामां आंशिक शुद्धिनी साथे साथे केवा शुभ भावोनो सुमेळ अवश्य होय ज छे तेनो पण स्पष्ट निर्देश छे. जेमना हृदयमां वीतरागतानी भावना घोळाया करे छे एवा शास्त्रकार अने टीकाकार मुनींद्रोए आ अधिकारमां जाणे के शांत वीतराग रसनी सरिता वहावी छे. धीरगंभीर गतिए वहेती आ शांत रसनी अध्यात्मगंगामां नहातां तत्त्वजिज्ञासु भावुक जीवो शीतळीभूत थाय छे अने तेमनुं हृदय शांत-शांत थई मुनिओनी आत्मानुभव- मूलक सहजशुद्ध उदासीन दशा प्रत्ये बहुमानपूर्वक नमी पडे छे. आ अधिकार पर मनन करतां सुपात्र मुमुक्षु जीवोने समजाय छे के ‘शुद्धात्मद्रव्यना आश्रये सहज दशानो अंश प्रगट कर्या विना मोक्षना उपायनो अंश पण प्राप्त थतो नथी.’
आ पवित्र शास्त्रना कर्ता श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेव प्रत्ये पूज्य गुरुदेव (श्री कानजीस्वामी)ने पारावार भक्ति छे. तेओश्री अनेक वार कहे छे के — ‘श्री समयसार, नियमसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकायसंग्रह आदि शास्त्रोनी गाथाए गाथाए दिव्यध्वनिनो संदेश छे. ए गाथाओमां एटली अपार ऊंडप छे के ते ऊंडप मापवा जतां पोतानी ज शक्ति मपाई जाय छे. ए सागरगंभीर शास्त्रोना रचनार परम कृपाळु आचार्यभगवाननुं कोई परम अलौकिक सामर्थ्य छे. परम अद्भुत सातिशय अंतर्बाह्य योगो विना ए शास्त्रो रचावां शक्य नथी. ए शास्त्रोनी वाणी तरता पुरुषनी वाणी छे एम स्पष्ट जाणीए छीए. एनी दरेक गाथा छठ्ठा-सातमा गुणस्थाने झूलता महामुनिना आत्म-अनुभवमांथी नीकळेली छे. ए शास्त्रोना कर्ता भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव महाविदेहक्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधरभगवानना समवसरणमां