Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ १५ ]
गया हता अने त्यां तेओ आठ दिवस रह्या हता ए वात यथातथ्य छे, अक्षरशः
सत्य छे, प्रमाणसिद्ध छे. ते परम उपकारी आचार्यभगवाने रचेलां समयसारादि
शास्त्रोमां तीर्थंकरदेवना ॐकारध्वनिमांथी ज नीकळेलो उपदेश छे.’

आ शास्त्रमां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनी प्राकृत गाथाओ पर समयव्याख्या नामनी संस्कृत टीका लखनार ( लगभग विक्रम संवतना १० मा सैकामां थई गयेला ) श्री अमृतचंद्राचार्यदेव छे. जेम आ शास्त्रना मूळ कर्ता अलौकिक पुरुष छे तेम तेना टीकाकार पण महासमर्थ आचार्य छे. तेमणे समयसारनी तथा प्रवचनसारनी टीका पण लखी छे अने तत्त्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय आदि स्वतंत्र ग्रंथो पण रच्या छे. तेमनी टीकाओ जेवी टीका हजु सुधी बीजा कोई जैन ग्रंथनी लखायेली नथी. तेमनी टीकाओ वांचनारने तेमनी अध्यात्मरसिकता, आत्मानुभव, प्रखर विद्वत्ता, वस्तुस्वरूपने न्यायथी सिद्ध करवानी असाधारण शक्ति, जिनशासननुं अत्यंत ऊंडुं ज्ञान, निश्चय-व्यवहारनुं संधिबद्ध निरूपण करवानी विरल शक्ति अने उत्तम काव्यशक्तिनो पूरो ख्याल आवी जाय छे. अति संक्षेपमां गंभीर रहस्यो गोठवी देवानी तेमनी शक्ति विद्वानोने आश्चर्यचकित करे छे. तेमनी दैवी टीकाओ श्रुतकेवळीनां वचनो जेवी छे. जेम मूळ शास्त्रकारनां शास्त्रो अनुभवयुक्ति आदि समस्त समृद्धिथी समृद्ध छे तेम टीकाकारनी टीकाओ पण ते ते सर्व समृद्धिथी विभूषित छे. शासनमान्य भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे आ कळिकाळमां जगद्गुरु तीर्थंकरदेव जेवुं काम कर्युं छे अने श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे जाणे के तेओ कुंदकुंदभगवानना हृदयमां पेसी गया होय ते रीते तेमना गंभीर आशयोने यथार्थपणे व्यक्त करीने तेमना गणधर जेवुं काम कर्युं छे. श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे रचेलां काव्यो पण अध्यात्मरसथी अने आत्म-अनुभवनी मस्तीथी भरपूर छे. श्री समयसारनी टीकामां आवतां काव्योए (कळशोए) श्री पद्मप्रभदेव जेवा समर्थ मुनिवरो पर ऊंडी छाप पाडी छे अने आजे पण ते तत्त्वज्ञानथी अने अध्यात्मरसथी भरेला मधुर कळशो अध्यात्मरसिकोना हृदयना तारने झणझणावी मूके छे. अध्यात्मकवि तरीके श्री अमृतचंद्राचार्यदेवनुं स्थान अद्वितीय छे.

पंचास्तिकायसंग्रहमां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे १७३ गाथाओ प्राकृतमां रची छे. तेना पर श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे समयव्याख्या नामनी अने श्री जयसेनाचार्यदेवे तात्पर्यवृत्ति नामनी संस्कृत टीका लखी छे. श्री पांडे हेमराजजीए समयव्याख्यानो भावार्थ ( प्राचीन ) हिंदीमां लख्यो छे अने ते भावार्थनुं नाम बालावबोधभाषाटीका राख्युं छे. वि. सं. १९७२मां श्री परमश्रुतप्रभावकमंडळ द्वारा प्रकाशित हिंदी