Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१३५
विद्यते येषां गमनं स्थानं पुनस्तेषामेव सम्भवति
ते स्वकपरिणामैस्तु गमनं स्थानं च कुर्वन्ति ।।८९।।

धर्माधर्मयोरौदासीन्ये हेतूपन्यासोऽयम्

धर्मः किल न जीवपुद्गलानां कदाचिद्गतिहेतुत्वमभ्यस्यति, न कदाचित्स्थिति- हेतुत्वमधर्मः तौ हि परेषां गतिस्थित्योर्यदि मुख्यहेतू स्यातां तदा येषां गतिस्तेषां गतिरेव, न स्थितिः, येषां स्थितिस्तेषां स्थितिरेव, न गतिः तत एकेषामपि गतिस्थितिदर्शनादनुमीयते न तौ तयोर्मुख्यहेतू कि न्तु व्यवहारनयव्यवस्थापितौ उदासीनौ कथमेवं गतिस्थितिमतां पदार्थानां गतिस्थिती भवत इति चेत्, सर्वे

अन्वयार्थः[ येषां गमनं विद्यते ] (धर्म-अधर्म गति-स्थितिना मुख्य हेतुओ नथी, कारण के) जेमने गति होय छे [ तेषाम् एव पुनः स्थानं सम्भवति ] तेमने ज वळी स्थिति थाय छे (अने जेमने स्थिति होय छे तेमने ज वळी गति थाय छे). [ ते तु ] तेओ (गतिस्थितिमान पदार्थो) तो [ स्वकपरिणामैः ] पोताना परिणामोथी [ गमनं स्थानं च ] गति अने स्थिति [ कुर्वन्ति ] करे छे.

टीकाःआ, धर्म अने अधर्मना उदासीनपणानी बाबतमां हेतु कहेवामां आव्यो छे.

खरेखर (निश्चयथी) धर्म जीव-पुद्गलोने कदी गतिहेतु थतो नथी, अधर्म कदी स्थितिहेतु थतो नथी; कारण के तेओ परने गतिस्थितिना जो मुख्य हेतु (निश्चयहेतु) थाय, तो जेमने गति होय तेमने गति ज रहेवी जोईए, स्थिति न थवी जोईए, अने जेमने स्थिति होय तेमने स्थिति ज रहेवी जोईए, गति न थवी जोईए. परंतु एकने ज (तेना ते ज पदार्थने) गति अने स्थिति थती जोवामां आवे छे; तेथी अनुमान थई शके छे के तेओ (धर्म-अधर्म) गति-स्थितिना मुख्य हेतु नथी, परंतु व्यवहारनयस्थापित (व्यवहारनय वडे स्थापवामांकहेवामां आवेला) उदासीन हेतु छे.

प्रश्नःए प्रमाणे होय तो गतिस्थितिमान पदार्थोने गतिस्थिति कई रीते थाय छे?