मिव मत्स्यानां जीवपुद्गलानामाश्रयकारणमात्रत्वेनोदासीन एवासौ गतेः प्रसरो भवति । अपि च यथा गतिपूर्वस्थितिपरिणतस्तुरङ्गोऽश्ववारस्य स्थितिपरिणामस्य हेतुकर्तावलोक्यते, न तथाऽधर्मः । स खलु निष्क्रियत्वात् न कदाचिदपि गतिपूर्व- स्थितिपरिणाममेवापद्यते । कुतोऽस्य सहस्थायित्वेन परेषां गतिपूर्वस्थितिपरिणामस्य हेतुकर्तृत्वम् । किन्तु पृथिवीवत्तुरङ्गस्य जीवपुद्गलानामाश्रयकारणमात्रत्वेनोदासीन एवासौ गतिपूर्वस्थितेः प्रसरो भवतीति ।।८८।। विज्जदि जेसिं गमणं ठाणं पुण तेसिमेव संभवदि ।
ते सगपरिणामेहिं दु गमणं ठाणं च कुव्वंति ।।८९।। पाणी माछलांओने (गतिपरिणाममां) मात्र आश्रयरूप कारण तरीके गतिनुं उदासीन ज प्रसारनार छे, तेवी रीते धर्म जीव-पुद्गलोने (गतिपरिणाममां) मात्र आश्रयरूप कारण तरीके गतिनो उदासीन ज प्रसारनार (अर्थात् गतिप्रसारनुं उदासीन ज निमित्त) छे.
वळी (अधर्मास्तिकाय विषे पण एम छे के) — जेवी रीते गतिपूर्वक-स्थितिपरिणत अश्व सवारना (गतिपूर्वक) स्थितिपरिणामनो हेतुकर्ता जोवामां आवे छे, तेवी रीते अधर्म (जीव-पुद्गलोना गतिपूर्वक स्थितिपरिणामनो हेतुकर्ता) नथी. ते (अधर्म) खरेखर निष्क्रिय होवाथी क्यारेय गतिपूर्वक स्थितिपरिणामने ज पामतो नथी; तो पछी तेने (परना) होय.) परंतु जेवी रीते पृथ्वी अश्वने (गतिपूर्वक स्थितिपरिणाममां) मात्र आश्रयरूप कारण तरीके गतिपूर्वक स्थितिनी उदासीन ज प्रसारनार छे, तेवी रीते अधर्म जीव-पुद्गलोने (गतिपूर्वक स्थितिपरिणाममां) मात्र आश्रयरूप कारण तरीके गतिपूर्वक स्थितिनो उदासीन ज प्रसारनार (अर्थात् गतिपूर्वक-स्थितिप्रसारनुं उदासीन ज निमित्त) छे. ८८.
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*सहस्थायी तरीके परना गतिपूर्वक स्थितिपरिणामनुं हेतुकर्तापणुं क्यांथी होय? (न ज
*सहस्थायी=साथे स्थिति (स्थिरता) करनार. [अश्व सवारनी साथे स्थिति करे छे, तेथी अहीं अश्वने
सवारना सहस्थायी तरीके सवारना स्थितिपरिणामनो हेतुकर्ता कह्यो छे. अधर्मास्तिकाय तो गतिपूर्वक
स्थितिने पामनारां जीव-पुद्गलोनी साथे स्थिति करतो नथी, पहेलेथी ज स्थित छे; आ रीते ते
सहस्थायी नहि होवाथी जीव-पुद्गलोना गतिपूर्वक स्थितिपरिणामनो हेतुकर्ता नथी.]