Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१३३
न च गच्छति धर्मास्तिको गमनं न करोत्यन्यद्रव्यस्य
भवति गतेः सः प्रसरो जीवानां पुद्गलानां च ।।८८।।

धर्माधर्मयोर्गतिस्थितिहेतुत्वेऽप्यत्यन्तौदासीन्याख्यापनमेतत

यथा हि गतिपरिणतः प्रभञ्जनो वैजयन्तीनां गतिपरिणामस्य हेतुकर्ता- ऽवलोक्यते, न तथा धर्मः स खलु निष्क्रियत्वात् न कदाचिदपि गतिपरिणाममेवा- पद्यते कुतोऽस्य सहकारित्वेन परेषां गतिपरिणामस्य हेतुकर्तृत्वम् किन्तु सलिल-

अन्वयार्थः[ धर्मास्तिकः ] धर्मास्तिकाय [ न गच्छति ] गमन करतो नथी [ च ] अने [ अन्यद्रव्यस्य ] अन्य द्रव्यने [ गमनं न करोति ] गमन करावतो नथी; [ सः ] ते, [ जीवानां पुद्गलानां च ] जीवो तथा पुद्गलोने (गतिपरिणाममां आश्रयमात्ररूप होवाथी) [ गतेः प्रसरः ] गतिनो उदासीन प्रसारनार (अर्थात् गतिप्रसारमां उदासीन निमित्तभूत) [ भवति ] छे.

टीकाःधर्म अने अधर्म गति अने स्थितिना हेतुओ होवा छतां तेओ अत्यंत उदासीन छे एम अहीं कथन छे.

जेवी रीते गतिपरिणत पवन धजाओना गतिपरिणामनो हेतुकर्ता जोवामां आवे छे, तेवी रीते धर्म (जीव-पुद्गलोना गतिपरिणामनो हेतुकर्ता) नथी. ते (धर्म) खरेखर निष्क्रिय होवाथी क्यारेय गतिपरिणामने ज पामतो नथी; तो पछी तेने (परना) *सहकारी तरीके परना गतिपरिणामनुं हेतुकर्तापणुं क्यांथी होय? (न ज होय.) परंतु जेवी रीते

*सहकारी = साथे कार्य करनार अर्थात् साथे गति करनार. [धजानी साथे पवन पण गति करतो होवाथी अहीं पवनने (धजाना) सहकारी तरीके हेतुकर्ता कह्यो छे; अने जीव-पुद्गलोनी साथे धर्मास्तिकाय गमन नहि करतां (अर्थात् सहकारी नहि बनतां), मात्र तेमने (गतिमां) आश्रयरूप कारण बनतो होवाथी धर्मास्तिकायने उदासीन निमित्त कह्यो छे. पवनने हेतुकर्ता कह्यो तेनो एवो
अर्थ कदी न समजवो के पवन धजाओना गतिपरिणामने करावतो हशे. उदासीन निमित्त हो
के हेतुकर्ता हो
बंने परमां अकिंचित्कर छे. तेमनामां मात्र उपर कह्यो तेटलो ज तफावत छे. हवे पछीनी गाथानी टीकामां आचार्यदेव पोते ज कहेशे के ‘खरेखर समस्त गतिस्थितिमान पदार्थो
पोताना परिणामोथी ज निश्चये गतिस्थिति करे छे’. माटे धजा, सवार इत्यादि बधांय, पोताना
परिणामोथी ज गतिस्थिति करे छे, तेमां धर्म तेम ज पवन, तथा अधर्म तेम ज अश्व अविशेषपणे
अकिंचित्कर छे एम निर्णय करवो.
]