Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 91-92.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१३७
तदाकाशमिति ।।९०।।
जीवा पोग्गलकाया धम्माधम्मा य लोगदो णण्णा
तत्तो अणण्णमण्णं आयासं अंतवदिरित्तं ।।९१।।
जीवाः पुद्गलकायाः धर्माधर्मौ च लोकतोऽनन्ये
ततोऽनन्यदन्यदाकाशमन्तव्यतिरिक्त म् ।।९१।।

लोकाद्बहिराकाशसूचनेयम्

जीवादीनि शेषद्रव्याण्यवधृतपरिमाणत्वाल्लोकादनन्यान्येव आकाशं त्वनन्तत्वाल्लोका- दनन्यदन्यच्चेति ।।९१।।

आगासं अवगासं गमणट्ठिदिकारणेहिं देदि जदि
उड्ढंगदिप्पधाणा सिद्धा चिट्ठंति किध तत्थ ।।९२।।

ते आकाश छेके जे (आकाश) विशुद्धक्षेत्ररूप छे. ९०.

जीव-पुद्गलादिक शेष द्रव्य अनन्य जाणो लोकथी;
नभ अंतशून्य अनन्य तेम ज अन्य छे ए लोकथी. ९१.

अन्वयार्थः[ जीवाः पुद्गलकायाः धर्माधर्मौ च ] जीवो, पुद्गलकायो, धर्म अने अधर्म (तेम ज काळ) [ लोकतः अनन्ये ] लोकथी अनन्य छे; [ अन्तव्यतिरिक्तम् आकाशम् ] अंत रहित एवुं आकाश [ ततः ] तेनाथी (लोकथी) [ अनन्यत् अन्यत् ] अनन्य तेम ज अन्य छे.

टीकाःआ, लोकनी बहार (पण) आकाश होवानी सूचना छे.

जीव वगेरे बाकीनां द्रव्यो (आकाश सिवायनां द्रव्यो) मर्यादित परिमाणवाळां होवाने लीधे लोकथी *अनन्य ज छे; आकाश तो अनंत होवाने लीधे लोकथी अनन्य तेम ज अन्य छे. ९१.

अवकाशदायक आभ गति-थितिहेतुता पण जो धरे,
तो ऊर्ध्वगतिपरधान सिद्धो केम तेमां स्थिति लहे? ९२.
पं. १८

*अहीं जोके सामान्यपणे पदार्थोनुं लोकथी अनन्यपणुं कह्युं छे तोपण निश्चयथी अमूर्तपणुं,
केवळज्ञानपणुं, सहजपरमानंदपणुं, नित्यनिरंजनपणुं इत्यादि लक्षणो वडे जीवोनुं इतर द्रव्योथी
अन्यपणुं छे अने पोतपोतानां लक्षणो वडे इतर द्रव्योनुं जीवोथी भिन्नपणुं छे एम समजवुं.