Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Nav padarth poorvak moksh marg prapanch varnan Gatha: 105.

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नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
द्रव्यस्वरूपप्रतिपादनेन
शुद्धं बुधानामिह तत्त्वमुक्त म्
पदार्थभङ्गेन कृतावतारं
प्रकीर्त्यते सम्प्रति वर्त्म तस्य
।।।।
अभिवंदिऊण सिरसा अपुणब्भवकारणं महावीरं
तेसिं पयत्थभंगं मग्गं मोक्खस्स वोच्छामि ।।१०५।।

[प्रथम, श्री अमृतचंद्राचार्यदेव पहेला श्रुतस्कंधने विषे शुं कहेवामां आव्युं अने बीजा श्रुतस्कंधने विषे शुं कहेवामां आवशे ते श्लोक द्वारा अति संक्षेपमां दर्शावे छे]

[श्लोकार्थ] अहीं (आ शास्त्रमां प्रथम श्रुतस्कंधने विषे) द्रव्यस्वरूपना प्रतिपादन वडे बुध पुरुषोने (समजु जीवोने) शुद्ध तत्त्व (शुद्धात्मतत्त्व) उपदेशवामां आव्युं. हवे पदार्थभेद वडे उपोद्घात करीने (नव पदार्थरूप भेद वडे प्रारंभ करीने) तेनो मार्ग (शुद्धात्मतत्त्वनो मार्ग अर्थात् तेना मोक्षनो मार्ग) वर्णववामां आवे छे. []

[हवे आ बीजा श्रुतस्कंधने विषे श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवविरचित गाथासूत्र शरू करवामां आवे छे]

शिरसा नमी अपुनर्जनमना हेतु श्री महावीरने,
भाखुं पदार्थविकल्प तेम ज मोक्ष केरा मार्गने. १०५.
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