Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
१५५
सम्यक्त्वज्ञानयुक्तं चारित्रं रागद्वेषपरिहीणम्
मोक्षस्य भवति मार्गो भव्यानां लब्धबुद्धीनाम् ।।१०६।।

मोक्षमार्गस्यैव तावत्सूचनेयम्

सम्यक्त्वज्ञानयुक्त मेव नासम्यक्त्वज्ञानयुक्तं , चारित्रमेव नाचारित्रं, रागद्वेषपरिहीणमेव न रागद्वेषापरिहीणम्, मोक्षस्यैव न भावतो बंधस्य, मार्ग एव नामार्गः, भव्यानामेव नाभव्यानां, लब्धबुद्धीनामेव नालब्धबुद्धीनां, क्षीणकषायत्वे भवत्येव न कषायसहितत्वे भवतीत्यष्टधा नियमोऽत्र द्रष्टव्यः ।।१०६।।

अन्वयार्थ[ सम्यक्त्वज्ञानयुक्तं ] सम्यक्त्व अने ज्ञानथी संयुक्त एवुं [ चारित्रं ] चारित्र[ रागद्वेषपरिहीणम् ] के जे रागद्वेषथी रहित होय ते, [ लब्धबुद्धीनाम् ] लब्धबुद्धि [ भव्यानां ] भव्यजीवोने [ मोक्षस्य मार्गः ] मोक्षनो मार्ग [ भवति ] होय छे.

टीकाप्रथम, मोक्षमार्गनी ज आ सूचना छे.

सम्यक्त्व अने ज्ञानथी युक्त जनहि के असम्यक्त्व अने अज्ञानथी युक्त, चारित्र जनहि के अचारित्र, रागद्वेष रहित होय एवुं ज (चारित्र)नहि के रागद्वेष सहित होय एवुं, मोक्षनो जभावतः नहि के बंधनो, मार्ग जनहि के अमार्ग, भव्योने जनहि के अभव्योने, लब्धबुद्धिओने जनहि के अलब्ध- बुद्धिओने, क्षीणकषायपणामां ज होय छेनहि के कषायसहितपणामां होय छे. आम आठ प्रकारे नियम अहीं देखवो (अर्थात् आ गाथामां उपरोक्त आठ प्रकारे नियम कह्यो छे एम समजवुं). १०६.

१. भावतः=भाव अनुसार; आशय अनुसार. (‘मोक्षनो’ कहेतां ज ‘बंधनो नहि’ एवो भाव अर्थात आशय स्पष्ट समजाय छे.)

२. लब्धबुद्धि=जेमणे बुद्धि प्राप्त करी होय एवा.

३. क्षीणकषायपणामां ज=क्षीणकषायपणुं होतां ज; क्षीणकषायपणुं होय त्यारे ज. [सम्यक्त्वज्ञानयुक्त चारित्रके जे रागद्वेषरहित होय ते, लब्धबुद्धि भव्यजीवोने, क्षीणकषायपणुं होतां ज, मोक्षनो मार्ग होय छे.]