इन्द्रियभेदेनोक्तानां जीवानां चतुर्गतिसम्बन्धत्वेनोपसंहारोऽयम् ।
देवगतिनाम्नो देवायुषश्चोदयाद्देवाः, ते च भवनवासिव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिक-
निकायभेदाच्चतुर्धा । मनुष्यगतिनाम्नो मनुष्यायुषश्च उदयान्मनुष्याः । ते कर्मभोगभूमिज-
भेदात् द्वेधा । तिर्यग्गतिनाम्नस्तिर्यगायुषश्च उदयात्तिर्यञ्चः । ते पृथिवीशम्बूकयूकोद्दंश-
जलचरोरगपक्षिपरिसर्पचतुष्पदादिभेदादनेकधा । नरकगतिनाम्नो नरकायुषश्च उदयान्नारकाः ।
ते रत्नशर्करावालुकापङ्कधूमतमोमहातमःप्रभाभूमिजभेदात्सप्तधा । तत्र देवमनुष्यनारकाः
भूमिजाः ] मनुष्यो कर्मभूमिज अने भोगभूमिज एम बे प्रकारना छे, [ तिर्यञ्चः
बहुप्रकाराः ] तिर्यंचो घणा प्रकारनां छे [ पुनः ] अने [ नारकाः पृथिवीभेदगताः ] नारकोना
भेद तेमनी पृथ्वीओना भेद जेटला छे.
टीकाः — आ, इन्द्रियोना भेदनी अपेक्षाए कहेवामां आवेला जीवोनो चतुर्गतिसंबंध दर्शावतां उपसंहार छे (अर्थात् अहीं एकेंद्रिय – द्वींद्रियादिरूप जीवभेदोनो चार गति साथे संबंध दर्शावीने ते जीवभेदोनो उपसंहार करवामां आव्यो छे).
देवगतिनाम अने देवायुना उदयथी (अर्थात् देवगतिनामकर्म अने देवायुकर्मना उदयना निमित्तथी) देवो होय छे; तेओ भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक एवा १निकायभेदोने लीधे चार प्रकारना छे. मनुष्यगतिनाम अने मनुष्यायुना उदयथी मनुष्यो होय छे; तेओ कर्मभूमिज अने भोगभूमिज एवा भेदोने लीधे बे प्रकारना छे. तिर्यंचगतिनाम अने तिर्यंचायुना उदयथी तिर्यंचो होय छे; तेओ पृथ्वी, शंबूक, जू, डांस, जळचर, उरग, पक्षी, परिसर्प, चतुष्पाद (चोपगां) इत्यादि भेदोने लीधे अनेक प्रकारनां छे. नरकगतिनाम अने नरकायुना उदयथी नारको होय छे; तेओ २रत्नप्रभाभूमिज, शर्कराप्रभाभूमिज, वालुकाप्रभाभूमिज, पंकप्रभाभूमिज, धूमप्रभाभूमिज, तमःप्रभाभूमिज अने महातमःप्रभाभूमिज एवा भेदोने लीधे सात प्रकारना छे.
तेमां, देवो, मनुष्यो अने नारको पंचेन्द्रिय ज होय छे. तिर्यंचो तो केटलांक पंचेन्द्रिय
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१. निकाय=समूह
२. रत्नप्रभाभूमिज=रत्नप्रभा नामनी भूमिमां ( – प्रथम नरकमां) उत्पन्न थयेल