Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

इन्द्रियभेदेनोक्तानां जीवानां चतुर्गतिसम्बन्धत्वेनोपसंहारोऽयम्

देवगतिनाम्नो देवायुषश्चोदयाद्देवाः, ते च भवनवासिव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिक- निकायभेदाच्चतुर्धा मनुष्यगतिनाम्नो मनुष्यायुषश्च उदयान्मनुष्याः ते कर्मभोगभूमिज- भेदात् द्वेधा तिर्यग्गतिनाम्नस्तिर्यगायुषश्च उदयात्तिर्यञ्चः ते पृथिवीशम्बूकयूकोद्दंश- जलचरोरगपक्षिपरिसर्पचतुष्पदादिभेदादनेकधा नरकगतिनाम्नो नरकायुषश्च उदयान्नारकाः ते रत्नशर्करावालुकापङ्कधूमतमोमहातमःप्रभाभूमिजभेदात्सप्तधा तत्र देवमनुष्यनारकाः भूमिजाः ] मनुष्यो कर्मभूमिज अने भोगभूमिज एम बे प्रकारना छे, [ तिर्यञ्चः बहुप्रकाराः ] तिर्यंचो घणा प्रकारनां छे [ पुनः ] अने [ नारकाः पृथिवीभेदगताः ] नारकोना


भेद तेमनी पृथ्वीओना भेद जेटला छे.

टीकाआ, इन्द्रियोना भेदनी अपेक्षाए कहेवामां आवेला जीवोनो चतुर्गतिसंबंध दर्शावतां उपसंहार छे (अर्थात् अहीं एकेंद्रियद्वींद्रियादिरूप जीवभेदोनो चार गति साथे संबंध दर्शावीने ते जीवभेदोनो उपसंहार करवामां आव्यो छे).

देवगतिनाम अने देवायुना उदयथी (अर्थात् देवगतिनामकर्म अने देवायुकर्मना उदयना निमित्तथी) देवो होय छे; तेओ भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक एवा निकायभेदोने लीधे चार प्रकारना छे. मनुष्यगतिनाम अने मनुष्यायुना उदयथी मनुष्यो होय छे; तेओ कर्मभूमिज अने भोगभूमिज एवा भेदोने लीधे बे प्रकारना छे. तिर्यंचगतिनाम अने तिर्यंचायुना उदयथी तिर्यंचो होय छे; तेओ पृथ्वी, शंबूक, जू, डांस, जळचर, उरग, पक्षी, परिसर्प, चतुष्पाद (चोपगां) इत्यादि भेदोने लीधे अनेक प्रकारनां छे. नरकगतिनाम अने नरकायुना उदयथी नारको होय छे; तेओ रत्नप्रभाभूमिज, शर्कराप्रभाभूमिज, वालुकाप्रभाभूमिज, पंकप्रभाभूमिज, धूमप्रभाभूमिज, तमःप्रभाभूमिज अने महातमःप्रभाभूमिज एवा भेदोने लीधे सात प्रकारना छे.

तेमां, देवो, मनुष्यो अने नारको पंचेन्द्रिय ज होय छे. तिर्यंचो तो केटलांक पंचेन्द्रिय

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१. निकाय=समूह

२. रत्नप्रभाभूमिज=रत्नप्रभा नामनी भूमिमां (प्रथम नरकमां) उत्पन्न थयेल