Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 135.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

रागो जस्स पसत्थो अणुकंपासंसिदो य परिणामो

चित्तम्हि णत्थि कलुसं पुण्णं जीवस्स आसवदि ।।१३५।।
रागो यस्य प्रशस्तोऽनुकम्पासंश्रितश्च परिणामः
चित्ते नास्ति कालुष्यं पुण्यं जीवस्यास्रवति ।।१३५।।

पुण्यास्रवस्वरूपाख्यानमेतत

प्रशस्तरागोऽनुकम्पापरिणतिः चित्तस्याकलुषत्वञ्चेति त्रयः शुभा भावाः द्रव्यपुण्यास्रवस्य निमित्तमात्रत्वेन कारणभूतत्वात्तदास्रवक्षणादूर्ध्वं भावपुण्यास्रवः तन्निमित्तः शुभकर्मपरिणामो योगद्वारेण प्रविशतां पुद्गलानां द्रव्यपुण्यास्रव इति ।।१३५।।

छे रागभाव प्रशस्त, अनुकंपासहित परिणाम छे,
मनमां नहीं कालुष्य छे, त्यां पुण्य-आस्रव होय छे. १३५.

अन्वयार्थः[ यस्य ] जे जीवने [ प्रशस्तः रागः ] प्रशस्त राग छे, [ अनुकम्पासंश्रितः परिणामः ] अनुकंपायुक्त परिणाम छे [ च ] अने [ चित्ते कालुष्यं न अस्ति ] चित्तमां कलुषतानो अभाव छे, [ जीवस्य ] ते जीवने [ पुण्यं आस्रवति ] पुण्य आस्रवे छे.

टीकाःआ, पुण्यास्रवना स्वरूपनुं कथन छे.

प्रशस्त राग, अनुकंपापरिणति अने चित्तनी अकलुषताए त्रण शुभ भावो द्रव्यपुण्यास्रवने निमित्तमात्रपणे कारणभूत छे तेथी ‘द्रव्यपुण्यास्रव’ना प्रसंगने निमित्त छे एवा जे योगद्वारा प्रवेशतां पुद्गलोना शुभकर्मपरिणाम (शुभकर्मरूप परिणाम) ते द्रव्यपुण्यास्रव छे. १३५.

१८

*अनुसरीने (अनुलक्षीने) ते शुभ भावो भावपुण्यास्रव छे अने ते (शुभ भावो) जेनुं

*शातावेदनीयादि पुद्गलपरिणामरूप द्रव्यपुण्यास्रवनो जे प्रसंग बने छे तेमां जीवना प्रशस्त-रागादि
शुभ भावो निमित्तकारण छे माटे ‘द्रव्यपुण्यास्रव’प्रसंगनी पाछळ पाछळ तेना निमित्तभूत शुभ
भावोने पण ‘भावपुण्यास्रव’ एवुं नाम छे.