Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 153.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
जो संवरेण जुत्तो णिज्जरमाणोध सव्वकम्माणि
ववगदवेदाउस्सो मुयदि भवं तेण सो मोक्खो ।।१५३।।
यः संवरेण युक्तो निर्जरन्नथ सर्वकर्माणि
व्यपगतवेद्यायुष्को मुञ्चति भवं तेन स मोक्षः ।।१५३।।
द्रव्यमोक्षस्वरूपाख्यानमेतत
अथ खलु भगवतः केवलिनो भावमोक्षे सति प्रसिद्धपरमसंवरस्योत्तरकर्मसन्ततौ

निरुद्धायां परमनिर्जराकारणध्यानप्रसिद्धौ सत्यां पूर्वकर्मसन्ततौ कदाचित्स्वभावेनैव कदाचित्समुद्घातविधानेनायुःकर्मसमभूतस्थित्यामायुःकर्मानुसारेणैव निर्जीर्यमाणायामपुनर्भवाय

संवरसहित ते जीव पूर्व समस्त कर्मो निर्जरे
ने आयुवेद्यविहीन थई भवने तजे; ते मोक्ष छे. १५३.

अन्वयार्थः[ यः संवरेण युक्तः ] जे संवरथी युक्त छे एवो (केवळज्ञानप्राप्त) जीव [ निर्जरन् अथ सर्वकर्माणि ] सर्व कर्मोने निर्जरतो थको [ व्यपगतवेद्यायुष्कः ] वेदनीय अने आयुष रहित थईने [ भवं मुञ्चति ] भवने छोडे छे; [ तेन ] तेथी (ए रीते सर्व कर्मपुद्गलोनो वियोग थवाने लीधे) [ सः मोक्षः ] ते मोक्ष छे.

टीकाःआ, द्रव्यमोक्षना स्वरूपनुं कथन छे.

खरेखर भगवान केवळीने, भावमोक्ष होतां, परम संवर सिद्ध थवाने लीधे उत्तर कर्मसंतति निरोध पामी थकी अने परम निर्जराना कारणभूत ध्यान सिद्ध थवाने लीधे पूर्व कर्मसंततिके जेनी स्थिति कदाचित् स्वभावथी ज आयुकर्मना जेटली होय छे अने कदाचितसमुद्घातविधानथी आयुकर्मना जेटली थाय छे तेआयुकर्मना अनुसारे ज निर्जरती थकी, अपुनर्भवने माटे ते भव छूटवाना समये थतो जे वेदनीय-आयु-नाम- १. उत्तर कर्मसंतति = पछीनो कर्मप्रवाह; भावी कर्मपरंपरा. २. पूर्व = पहेलांनी ३. केवळीभगवानने वेदनीय, नाम अने गोत्रकर्मनी स्थिति क्यारेक स्वभावथी ज (अर्थात् केवळीसमुद्घात-

रूप निमित्त होया विना ज) आयुकर्मना जेटली होय छे अने क्यारेक ते त्रण कर्मोनी स्थिति आयु-
कर्मथी वधारे होवा छतां ते स्थिति घटीने आयुकर्म जेटली थवामां केवळीसमुद्घात निमित्त बने छे.

४. अपुनर्भव = फरीने भव नहि थवो ते. (केवळीभगवानने फरीने भव थया विना ज ते भवनो

त्याग थाय छे; तेथी तेमना आत्माथी कर्मपुद्गलोनो सदाने माटे सर्वथा वियोग थाय छे.)