Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 211 of 256
PDF/HTML Page 251 of 296

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
२११
द्रव्यकर्ममोक्षहेतुपरमनिर्जराकारणध्यानाख्यानमेतत
एवमस्य खलु भावमुक्त स्य भगवतः केवलिनः स्वरूपतृप्तत्वाद्विश्रान्तसुखदुःख-

कर्मविपाककृतविक्रियस्य प्रक्षीणावरणत्वादनन्तज्ञानदर्शनसम्पूर्णशुद्धज्ञानचेतनामयत्वाद- तीन्द्रियत्वात् चान्यद्रव्यसंयोगवियुक्तं शुद्धस्वरूपेऽविचलितचैतन्यवृत्तिरूपत्वात्कथञ्चिद्धयान- व्यपदेशार्हमात्मनः स्वरूपं पूर्वसञ्चितकर्मणां शक्ति शातनं पतनं वा विलोक्य निर्जरा- हेतुत्वेनोपवर्ण्यत इति ।।१५२।। अन्यद्रव्यथी असंयुक्त एवुं [ ध्यानं ] ध्यान [ निर्जराहेतुः जायते ] निर्जरानो हेतु थाय छे.

टीकाःआ, द्रव्यकर्ममोक्षना हेतुभूत एवी परम निर्जराना कारणभूत ध्याननुं कथन छे.

ए रीते खरेखर आ (पूर्वोक्त) भावमुक्त (भावमोक्षवाळा) भगवान केवळीनेके जेमने स्वरूपतृप्तपणाने लीधे कर्मविपाककृत सुखदुःखरूप विक्रिया अटकी गई छे तेमनेआवरणना प्रक्षीणपणाने लीधे, अनंत ज्ञानदर्शनथी संपूर्ण शुद्धज्ञान- चेतनामयपणाने लीधे तथा अतींद्रियपणाने लीधे जे अन्यद्रव्यना संयोग विनानुं छे अने शुद्ध स्वरूपमां अविचलित चैतन्यवृत्तिरूप होवाने लीधे जे कंथचित् ‘ध्यान’ नामने योग्य छे एवुं आत्मानुं स्वरूप (आत्मानी निज दशा) पूर्वसंचित कर्मोनी शक्तिनुं शातन अथवा तेमनुं पतन अवलोकीने निर्जराना हेतु तरीके वर्णववामां आवे छे.

भावार्थःकेवळीभगवानना आत्मानी दशा ज्ञानदर्शनावरणना क्षयवाळी होवाने लीधे, शुद्धज्ञानचेतनामय होवाने लीधे तथा इन्द्रियव्यापारादि बहिर्द्रव्यना आलंबन विनानी होवाने लीधे अन्यद्रव्यना संसर्ग रहित छे अने शुद्धस्वरूपमां निश्चळ चैतन्यपरिणतिरूप होवाने लीधे कोई प्रकारे ‘ध्यान’ नामने योग्य छे. तेमनी आवी आत्मदशा निर्जराना निमित्त तरीके वर्णववामां आवे छे कारण के तेमने पूर्वोपार्जित कर्मोनी शक्ति हीन थती जाय छे तेम ज ते कर्मो खरतां जाय छे. १५२. १. केवळीभगवान निर्विकार-परमानंदस्वरूप स्वात्मोपन्न सुखथी तृप्त छे तेथी कर्मनो विपाक

जेमां निमित्तभूत होय छे एवी सांसारिक सुखदुःखरूप (हर्षविषादरूप) विक्रिया तेमने विराम
पामी छे.

२. शातन = पातळुं थवुं ते; हीन थवुं ते; क्षीण थवुं ते. ३. पतन = नाश; गलन; खरी जवुं ते.