Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
मोक्षमार्गस्वरूपाख्यानमेतत
जीवस्वभावनियतं चरितं मोक्षमार्गः जीवस्वभावो हि ज्ञानदर्शने अनन्य-

मयत्वात अनन्यमयत्वं च तयोर्विशेषसामान्यचैतन्यस्वभावजीवनिर्वृत्तत्वात अथ तयोर्जीवस्वरूपभूतयोर्ज्ञानदर्शनयोर्यन्नियतमवस्थितमुत्पादव्ययध्रौव्यरूपवृत्तिमयमस्तित्वं रागादि- परिणत्यभावादनिन्दितं तच्चरितं; तदेव मोक्षमार्ग इति द्विविधं हि किल संसारिषु चरितंस्वचरितं परचरितं च; स्वसमयपरसमयावित्यर्थः तत्र स्वभावाव- स्थितास्तित्वस्वरूपं स्वचरितं, परभावावस्थितास्तित्वस्वरूपं परचरितम् तत्र यत्स्वभावा- दर्शनम् ] अप्रतिहत दर्शन छे[ अनन्यमयम् ] के जेओ (जीवथी) अनन्यमय छे. [ तयोः ] ते ज्ञानदर्शनमां [ नियतम् ] नियत [ अस्तित्वम् ] अस्तित्व[ अनिन्दितं ] के जे अनिंदित छे[ चारित्रं च भणितम् ] तेने (जिनेंद्रोए) चारित्र कह्युं छे.

टीकाःआ, मोक्षमार्गना स्वरूपनुं कथन छे.

जीवस्वभावमां नियत चारित्र ते मोक्षमार्ग छे. जीवस्वभाव खरेखर ज्ञानदर्शन छे कारण के तेओ (जीवथी) अनन्यमय छे. ज्ञानदर्शननुं (जीवथी) अनन्यमयपणुं होवानुं कारण ए छे के विशेषचैतन्य अने सामान्यचैतन्य जेनो स्वभाव छे एवा जीवथी तेओ निष्पन्न छे (अर्थात् जीवथी ज्ञानदर्शन रचायेलां छे). हवे जीवना स्वरूपभूत एवां ते ज्ञानदर्शनमां नियतअवस्थित एवुं जे उत्पादव्ययध्रौव्यरूप वृत्तिमय अस्तित्वके जे रागादिपरिणामना अभावने लीधे अनिंदित छेते चारित्र छे; ते ज मोक्षमार्ग छे.

संसारीओमां चारित्र खरेखर बे प्रकारनुं छेः() स्वचारित्र अने () परचारित्र; () स्वसमय अने () परसमय एवो अर्थ छे. त्यां, स्वभावमां अवस्थित अस्तित्वस्वरूप (चारित्र) ते स्वचारित्र छे अने परभावमां अवस्थित अस्तित्वस्वरूप (चारित्र) ते परचारित्र छे. तेमांथी (अर्थात् बे प्रकारनां चारित्रमांथी), स्वभावमां अवस्थित अस्तित्वरूप चारित्रके जे परभावमां अवस्थित १. विशेषचैतन्य ते ज्ञान छे अने सामान्यचैतन्य ते दर्शन छे. २. नियत = अवस्थित; स्थित; स्थिर; द्रढपणे रहेलुं. ३. वृत्ति = वर्तवुं ते; होवुं ते. [उत्पादव्ययध्रौव्यरूप वृत्ति ते अस्तित्व छे.]