Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
२५१

प्रख्यापनद्वारेण प्रकृष्टपरिणतिद्वारेण वा समुद्योतनम्; तदर्थमेव परमागमानुराग- वेगप्रचलितमनसा संक्षेपतः समस्तवस्तुतत्त्वसूचकत्वादतिविस्तृतस्यापि प्रवचनस्य सारभूतं पञ्चास्तिकायसंग्रहाभिधानं भगवत्सर्वज्ञोपज्ञत्वात् सूत्रमिदमभिहितं मयेति अथैवं शास्त्रकारः प्रारब्धस्यान्तमुपगम्यात्यन्तं कृतकृत्यो भूत्वा परमनैष्कर्म्यरूपे शुद्धस्वरूपे विश्रान्त इति श्रद्धीयते ।।१७३।।

इति समयव्याख्यायां नवपदार्थपुरस्सरमोक्षमार्गप्रपञ्चवर्णनो द्वितीयः श्रुतस्कन्धः समाप्तः ।। द्वारा अथवा प्रकृष्ट परिणति द्वारा तेनो समुद्योत करवो ते; [परम वैराग्य करवानी जिनभगवाननी परम आज्ञानी प्रभावना एटले (१) तेनी प्रख्याति जाहेरात करवा द्वारा अथवा (२) परमवैराग्यमय प्रकृष्ट परिणमन द्वारा, तेनो सम्यक् प्रकारे उद्योत करवो ते;] तेना अर्थे ज (मार्गनी प्रभावना अर्थे ज), परमागम प्रत्येना अनुरागना वेगथी जेनुं मन अति चलित थतुं हतुं एवा में आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ नामनुं सूत्र कह्युंके जे भगवान सर्वज्ञ वडे उपज्ञ होवाथी (वीतराग सर्वज्ञ जिनभगवाने स्वयं जाणीने प्रणीत करेलुं होवाथी) ‘सूत्र’ छे, अने जे संक्षेपथी समस्तवस्तुतत्त्वनुं (सर्व वस्तुना यथार्थ स्वरूपनुं) प्रतिपादन करनारुं होवाथी, अति विस्तृत एवा पण प्रवचनना सारभूत छे (द्वादशांगरूपे विस्तीर्ण एवा पण जिनप्रवचनना सारभूत छे).

आ रीते शास्त्रकार (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेव) प्रारंभेला कार्यना अंतने पामी, अत्यंत कृतकृत्य थई, परमनैष्कर्म्यरूप शुद्धस्वरूपमां विश्रांत थया (परम निष्कर्मपणारूप शुद्धस्वरूपमां स्थिर थया) एम श्रद्धवामां आवे छे (अर्थात् एम अमे श्रद्धीए छीए). १७३.

आ रीते (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत श्री पंचास्तिकायसंग्रहशास्त्रनी श्रीमद् अमृतचंद्राचार्यदेवविरचित) समयव्याख्या नामनी टीकामां नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्ग- प्रपंचवर्णन नामनो द्वितीय श्रुतस्कंध समाप्त थयो.

[ हवे, ‘आ टीका शब्दोए करी छे, अमृतचंद्रसूरिए नहि’ एवा अर्थनो एक छेल्लो श्लोक कहीने अमृतचंद्राचार्यदेव टीकानी पूर्णाहुति करे छेः ]