Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ २७ ]

उत्तरः(१) निश्चयनयथी तो आत्मा परद्रव्यथी भिन्न, स्वभावोथी अभिन्न स्वयंसिद्ध वस्तु छे. तेने जेओ न ओळखे, तेमने एम ज कह्या करीए तो तेओ समजे नहि. तेथी तेमने समजाववा, व्यवहारनयथी शरीरादिक परद्रव्योनी सापेक्षता वडे नर-नारक- पृथ्वीकायादिरूप जीवना भेद कर्या, त्यारे ‘मनुष्य जीव छे’, ‘नारकी जीव छे’ इत्यादि प्रकारथी तेमने जीवनी ओळखाण थई; अथवा अभेद वस्तुमां भेद उपजावी ज्ञान-दर्शनादि गुण- पर्यायरूप जीवना भेद कर्या, त्यारे ‘जाणनारो जीव छे’, ‘देखनारो जीव छे’ इत्यादि प्रकारथी तेमने जीवनी ओळखाण थई. वळी निश्चयथी तो वीतरागभाव मोक्षमार्ग छे; पण तेने जेओ न ओळखे, तेमने एम ज कह्या करीए तो तेओ समजे नहि; तेथी तेमने समजाववा, व्यवहारनयथी तत्त्वार्थश्रद्धान-ज्ञानपूर्वक परद्रव्यनुं निमित्त मटाडवानी सापेक्षता वडे व्रत-शील- संयमादिरूप वीतरागभावना विशेषो दर्शाव्या, त्यारे तेमने वीतरागभावनी ओळखाण थई. आ ज प्रमाणे, अन्यत्र पण व्यवहार विना निश्चयनो उपदेश न थवानुं समजवुं.

(२) अहीं व्यवहारथी नर-नारकादि पर्यायने ज जीव कह्यो. तेथी कांई ते पर्यायने ज जीव न मानी लेवो. पर्याय तो जीव-पुद्गलना संयोगरूप छे. त्यां निश्चयथी जीवद्रव्य जुदुं छे; तेने ज जीव मानवो. जीवना संयोगथी शरीरादिकने पण जीव कह्यां ते कहेवामात्र ज छे. परमार्थे शरीरादिक जीव थतां नथी. आवुं ज श्रद्धान करवुं. बीजुं, अभेद आत्मामां ज्ञान-दर्शनादि भेद कर्या तेथी कांई तेमने भेदरूप ज न मानी लेवा; भेद तो समजाववा माटे छे. निश्चयथी आत्मा अभेद ज छे; तेने ज जीववस्तु मानवी. संज्ञा-संख्यादि भेद कह्या ते कहेवामात्र ज छे; परमार्थे तेओ जुदा जुदा छे नहि. आवुं ज श्रद्धान करवुं. वळी, परद्रव्यनुं निमित्त मटाडवानी अपेक्षाए व्रत-शील-संयमादिकने मोक्षमार्ग कह्यो तेथी कांई तेमने ज मोक्षमार्ग न मानी लेवा; कारण के परद्रव्यनां ग्रहण-त्याग आत्माने होय तो आत्मा परद्रव्यनो कर्ता-हर्ता थई जाय, पण कोई द्रव्य कोई द्रव्यने आधीन छे नहि. आत्मा तो पोताना भाव जे रागादिक छे तेमने छोडी वीतरागी थाय छे, माटे निश्चयथी वीतरागभाव ज मोक्षमार्ग छे. वीतरागभावोने अने व्रतादिकने कदाचित् कार्यकारणपणुं छे तेथी व्रतादिकने मोक्षमार्ग कह्या पण ते कहेवामात्र ज छे. परमार्थे बाह्यक्रिया मोक्षमार्ग नथी. आवुं ज श्रद्धान करवुं. आ ज प्रमाणे, अन्यत्र पण व्यवहारनयने अंगीकार न करवानुं समजी लेवुं.

प्रश्नःव्यवहारनय परने उपदेश करवामां ज कार्यकारी छे के पोतानुं पण प्रयोजन साधे छे?

उत्तरपोते पण ज्यांसुधी निश्चयनयथी प्ररूपित वस्तुने न ओळखे त्यांसुधी