[ २८ ]
व्यवहारमार्ग वडे वस्तुनो निश्चय करे. तेथी नीचली दशामां पोताने पण व्यवहारनय
कार्यकारी छे. परंतु व्यवहारने उपचारमात्र मानी तेना द्वारा वस्तुनुं श्रद्धान बराबर करवामां
आवे तो ते कार्यकारी थाय, अने जो निश्चयनी माफक व्यवहार पण सत्यभूत मानी ‘वस्तु
आम ज छे’ एवुं श्रद्धान करवामां आवे तो ते ऊलटो अकार्यकारी थई जाय. ए ज
पुरुषार्थसिद्ध्युपायमां कह्युं छेः —
कार्यकारी छे. परंतु व्यवहारने उपचारमात्र मानी तेना द्वारा वस्तुनुं श्रद्धान बराबर करवामां
आवे तो ते कार्यकारी थाय, अने जो निश्चयनी माफक व्यवहार पण सत्यभूत मानी ‘वस्तु
आम ज छे’ एवुं श्रद्धान करवामां आवे तो ते ऊलटो अकार्यकारी थई जाय. ए ज
पुरुषार्थसिद्ध्युपायमां कह्युं छेः —
अबुधस्य बोधनार्थं मुनीश्वरा देशयन्त्यभूतार्थम् ।
व्यवहारमेव के वलमवैति यस्तस्य देशना नास्ति ।।
माणवक एव सिंहो यथा भवत्यनवगीतसिंहस्य ।
व्यवहार एव हि तथा निश्चयतां यात्यनिश्चयज्ञस्य ।।
अर्थः — मुनिराज, अज्ञानीने समजाववा माटे असत्यार्थ जे व्यवहारनय तेने उपदेशे छे. जे केवळ व्यवहारने ज समजे छे, तेने तो उपदेश ज देवो योग्य नथी. जेवी रीते जे साचा सिंहने न समजे तेने तो बिलाडुं ज सिंह छे, तेवी रीते जे निश्चयने न समजे तेने तो व्यवहार ज निश्चयपणाने पामे छे.
— श्री मोक्षमार्गप्रकाशक
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