Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 5.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१३

जेसिं अत्थि सहाओ गुणेहिं सह पज्जएहिं विविहेहिं

ते होंति अत्थिकाया णिप्पण्णं जेहिं तेल्लोक्कं ।।।।
येषामस्ति स्वभावः गुणैः सह पर्ययैर्विविधैः
ते भवन्त्यस्तिकायाः निष्पन्नं यैस्त्रैलोक्यम् ।।।।
अत्र पञ्चास्तिकायानामस्तित्वसंभवप्रकारः कायत्वसंभवप्रकारश्चोक्त :

अस्ति ह्यस्तिकायानां गुणैः पर्यायैश्च विविधैः सह स्वभावो आत्मभावोऽ नन्यत्वम् वस्तुनो विशेषा हि व्यतिरेकिणः पर्याया गुणास्तु त एवान्वयिनः तत

काळाणुने अस्तित्व छे परंतु कोई प्रकारे पण कायत्व नथी, तेथी ते द्रव्य छे पण अस्तिकाय नथी. ४.

विधविध गुणो ने पर्ययो सह जे अनन्यपणुं धरे
ते अस्तिकायो जाणवा, त्रैलोक्यरचना जे वडे. ५.

अन्वयार्थ[येषाम्] जेमने [विविधैः] विविध [गुणैः] गुणो अने [पर्ययैः] [अस्ति] छे [ते] ते [अस्तिकायाः भवन्ति] अस्तिकायो छे [यैः] के जेमनाथी [त्रैलोक्यम्] त्रण लोक [निष्पन्नम्] निष्पन्न छे.

टीकाअहीं, पांच अस्तिकायोने अस्तित्व कया प्रकारे छे अने कायत्व कया प्रकारे छे ते कह्युं छे.

खरेखर अस्तिकायोने विविध गुणो अने पर्यायो साथे स्वपणुंपोतापणुं अनन्यपणुं छे. वस्तुना व्यतिरेकी विशेषो ते पर्यायो छे अने अन्वयी विशेषो ते

*पर्यायो (-प्रवाहक्रमना तेम ज विस्तारक्रमना अंशो) [सह] साथे [ स्वभावः ] पोतापणुं

*पर्यायो =(प्रवाहक्रमना तेम ज विस्तारक्रमना ) निर्विभाग अंशो. [ प्रवाहक्रमना अंशो तो दरेक द्रव्यने होय छे, परंतु विस्तारक्रमना अंशो अस्तिकायने ज होय छे.]

१. व्यतिरेक=भेद; एकनुं बीजारूप नहि होवुं ते; ‘आ ते नथी’ एवा ज्ञानना निमित्तभूत भिन्नरूपपणुं. [एक पर्याय बीजा पर्यायरूप नहि होवाथी पर्यायोमां परस्पर व्यतिरेक छे, तेथी पर्यायो द्रव्यना व्यतिरेकी (व्यतिरेकवाळा) विशेषो छे.]

२. अन्वय=एकरूपता; सद्रशता; ‘आ ते ज छे’ एवा ज्ञानना कारणभूत एकरूपपणुं. [गुणोमां