Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

द्वयणुकपुद्गलस्कन्धानामपि तथाविधत्वम् अणवश्च महान्तश्च व्यक्तिशक्तिरूपाभ्या- मिति परमाणूनामेकप्रदेशात्मकत्वेऽपि तत्सिद्धिः व्यक्त्यपेक्षया शक्त्यपेक्षया च प्रदेश- प्रचयात्मकस्य महत्त्वस्याभावात्कालाणूनामस्तित्वनियतत्वेऽप्यकायत्वमनेनैव साधितम् अत एव तेषामस्तिकायप्रकरणे सतामप्यनुपादानमिति ।।।।


अणु तेम ज महान’ होवाथी (अर्थात् परमाणुओ व्यक्तिरूपे एकप्रदेशी अने शक्तिरूपे अनेकप्रदेशी होवाथी) परमाणुओने पण, तेमने एकप्रदेशात्मकपणुं होवा छतां पण, (अणुमहानपणुं सिद्ध थवाथी) कायत्व सिद्ध थाय छे. काळाणुओने व्यक्ति- अपेक्षाए तेम ज शक्ति-अपेक्षाए प्रदेशप्रचयात्मक महानपणानो अभाव होवाथी, जोके तेओ अस्तित्वमां नियत छे तोपण, तेमने अकायत्व छे एम आनाथी ज (-आ कथनथी ज) सिद्ध थयुं. माटे ज, जोके तेओ सत् (विद्यमान) छे तोपण, तेमने अस्तिकायना प्रकरणमां लीधा नथी.

भावार्थपांच अस्तिकायोनां नाम जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म अने आकाश छे. आ नामो तेमना अर्थ प्रमाणे छे.

आ पांचे द्रव्यो पर्यायार्थिक नये पोताथी कथंचित् भिन्न एवा अस्तित्वमां रहेलां छे अने द्रव्यार्थिक नये अस्तित्वथी अनन्य छे.

वळी आ पांचे द्रव्यो कायत्ववाळां छे कारण के तेओ अणुमहान छे. तेओ अणुमहान कई रीते छे ते बताववामां आवे छेअणुमहान्तःनी व्युत्पत्ति त्रण प्रकारे छेः(१) अणुभिः महान्तः अणुमहान्तः अर्थात् जेओ बहु प्रदेशो वडे (-बेथी वधारे प्रदेशो वडे) मोटा होय तेओ अणुमहान छे. आ व्युत्पत्ति प्रमाणे जीवो, धर्म अने अधर्म असंख्यप्रदेशी होवाथी अणुमहान छे; आकाश अनंतप्रदेशी होवाथी अणुमहान छे; अने त्रि-अणुक स्कंधथी मांडीने अनंताणुक स्कंध सुधीना बधा स्कंधो बहुप्रदेशी होवाथी अणुमहान छे. (२) अणुभ्याम् महान्तः अणुमहान्तः अर्थात् जेओ बे प्रदेशो वडे मोटा होय तेओ अणुमहान छे. आ व्युत्पत्ति प्रमाणे द्वि-अणुक स्कंधो अणुमहान छे. (३) अणवश्च महान्तश्च अणुमहान्तः अर्थात् जेओ अणुरूप (-एकप्रदेशी) पण होय अने महान (-अनेकप्रदेशी) पण होय तेओ अणुमहान छे. आ व्युत्पत्ति प्रमाणे परमाणुओ अणुमहान छे, कारण के व्यक्ति-अपेक्षाए तेओ एकप्रदेशी छे अने शक्ति-अपेक्षाए अनेकप्रदेशी पण (उपचारथी) छे. आ रीते उपर्युक्त पांचे द्रव्यो अणुमहान होवाथी कायत्ववाळां छे एम सिद्ध थयुं.

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