Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१५

मूर्तत्वादविभाज्यानां सावयवत्वकल्पनमन्याय्यम् दृश्यत एवाविभाज्येऽपि विहायसीदं घटाकाशमिदमघटाकाशमिति विभागकल्पनम् यदि तत्र विभागो न कल्पेत तदा यदेव घटाकाशं तदेवाघटाकाशं स्यात न च तदिष्टम् ततः कालाणुभ्योऽन्यत्र सर्वेषां कायत्वाख्यं सावयवत्वमवसेयम् त्रैलोक्यरूपेण निष्पन्नत्वमपि तेषामस्ति- कायत्वसाधनपरमुपन्यस्तम् तथाचत्रयाणामूर्ध्वाऽधोमध्यलोकानामुत्पादव्ययध्रौव्यवन्त- स्तद्विशेषात्मका भावा भवन्तस्तेषां मूलपदार्थानां गुणपर्याययोगपूर्वकमस्तित्वं साधयन्ति अनुमीयते च धर्माधर्माकाशानां प्रत्येकमूर्ध्वाऽधोमध्यलोकविभागरूपेण परिणमनात्कायत्वाख्यं सावयवत्वम् जीवानामपि प्रत्येकमूर्ध्वाधोमध्यलोकविभागरूपेण


एवी आशंका करवी योग्य नथी के पुद्गल सिवायना पदार्थो अमूर्तपणाने लीधे अविभाज्य होवाथी तेमना सावयवपणानी कल्पना न्यायविरुद्ध (गेरवाजबी) छे. आकाश अविभाज्य होवा छतां तेमां ‘आ घटाकाश छे, आ अघटाकाश (अथवा पटाकाश) छे एवी विभागकल्पना जोवामां आवे छे ज. जो त्यां (कथंचित) विभाग न कल्पवामां आवे तो जे घटाकाश छे ते ज (सर्वथा) अघटाकाश थाय; अने ते तो इष्ट (मान्य) नथी. माटे काळाणुओ सिवाय बीजा बधाने विषे कायत्व नामनुं सावयवपणुं नक्की करवुं.

तेमनुं जे त्रण लोकरूपे निष्पन्नपणुं (-रचावुं) कह्युं ते पण तेमनुं अस्तिकायपणुं (-अस्तिपणुं तथा कायपणुं) सिद्ध करवाना साधन तरीके कह्युं छे. ते आ प्रमाणे

(१) ऊर्ध्व-अधो-मध्य त्रण लोकना उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यवाळा भावोके जेओ त्रण लोकना विशेषस्वरूप छे तेओभवता थका (परिणमता थका) तेमना मूळ पदार्थोनुं गुणपर्याययुक्त अस्तित्व सिद्ध करे छे. (त्रण लोकना भावो सदाय कथंचित् सद्रश रहे छे अने कथंचित् पलटाया करे छे ते एम सिद्ध करे छे के त्रण लोकना मूळ पदार्थो कथंचित् सद्रश रहे छे अने कथंचित् पलटाया करे छे अर्थात् ते मूळ पदार्थोने उत्पाद- व्यय-ध्रौव्यवाळुं अथवा गुणपर्यायवाळुं अस्तित्व छे.)

(२) वळी धर्म, अधर्म अने आकाशए प्रत्येक पदार्थ ऊर्ध्व-अधो-मध्य एवा लोकना (त्रण) विभागरूपे परिणत होवाथी तेमने कायत्व नामनुं सावयवपणुं छे एम अनुमान करी शकाय छे. दरेक जीवने पण ऊर्ध्व-अधो-मध्य एवा लोकना (त्रण)

१. अविभाज्य=जेना विभाग न करी शकाय एवा.

२. जो लोकना ऊर्ध्व, अधः अने मध्य एवा त्रण भाग छे तो पछी ‘आ ऊर्ध्वलोकनो आकाशभाग छे, आ अधोलोकनो आकाशभाग छे अने आ मध्यलोकनो आकाशभाग छे’ एम आकाशना