Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१७

द्रव्याणि हि सहक्रमभुवां गुणपर्यायाणामनन्यतयाधारभूतानि भवन्ति ततो वृत्तवर्तमानवर्तिष्यमाणानां भावानां पर्यायाणां स्वरूपेण परिणतत्वादस्तिकायानां परिवर्तन- लिङ्गस्य कालस्य चास्ति द्रव्यत्वम् न च तेषां भूतभवद्भविष्यद्भावात्मना परिणममाना- नामनित्यत्वम्, यतस्ते भूतभवद्भविष्यद्भावावस्थास्वपि प्रतिनियतस्वरूपापरित्यागान्नित्या एव अत्र कालः पुद्गलादिपरिवर्तनहेतुत्वात्पुद्गलादिपरिवर्तनगम्यमानपर्यायत्वाच्चास्तिकायेष्वन्तर्भावार्थं स परिवर्तनलिङ्ग इत्युक्त इति ।।।।

द्रव्यो खरेखर सहभावी गुणोने तथा क्रमभावी पर्यायोने अनन्यपणे आधारभूत छे. तेथी वर्ती चूकेला, वर्तता अने भविष्यमां वर्तनारा भावोनापर्यायोना स्वरूपे परिणमता होवाने लीधे (पांच) अस्तिकायो अने परिवर्तनलिंग काळ (ते छये) द्रव्यो छे. भूत, वर्तमान ने भावी भावोस्वरूपे परिणमता होवाथी तेओ कांई अनित्य नथी, कारण के भूत, वर्तमान ने भावी भावरूप अवस्थाओमां पण प्रतिनियत (-पोतपोताना निश्चित) स्वरूपने नहि छोडता होवाथी तेओ नित्य ज छे.

अहीं काळ पुद्गलादिना परिवर्तननो हेतु होवाथी तेम ज पुद्गलादिना परिवर्तन द्वारा तेना पर्यायो गम्य थता (जणाता) होवाथी, तेनो अस्तिकायोमां समावेश करवा अर्थे, तेने ‘परिवर्तनलिंग’ कह्यो छे. [पुद्गलादि अस्तिकायोनुं वर्णन करतां तेमनुं परिवर्तन (परिणमन) वर्णववुं जोईए अने तेमनुं परिवर्तन वर्णवतां ते परिवर्तनमां निमित्तभूत पदार्थने (काळने) अथवा ते परिवर्तन द्वारा जेना पर्यायो व्यक्त थाय छे ते पदार्थने (काळने) वर्णववो अस्थाने न गणाय. आ रीते पंचास्तिकायना वर्णननी अंदर काळना वर्णननो समावेश करवो अनुचित नथी एम दर्शाववा अर्थे आ गाथासूत्रमां काळ माटे ‘परिवर्तनलिंग’ शब्द वापर्यो छे.] ६. पं. ३

१. अनन्यपणे=अभिन्नपणे. [जेम अग्नि आधार छे अने उष्णता आधेय छे छतां तेओ अभिन्न छे, तेम द्रव्य आधार छे अने गुणपर्यायो आधेय छे छतां तेओ अभिन्न छे.]

२. परिवर्तनलिंग=पुद्गलादिनुं परिवर्तन जेनुं लिंग छे ते; पुद्गलादिना परिणमन द्वारा जे जणाय छे ते. (लिंग=चिह्न; सूचक; गमक; गम्य करावनार; जणावनार; ओळखावनार.)

३. (१) जो पुद्गलादिनुं परिवर्तन थाय छे तो तेनुं कोई निमित्त होवुं जोईएएम परिवर्तनरूपी चिह्न द्वारा काळनुं अनुमान थाय छे (जेम धुमाडारूपी चिह्न द्वारा अग्निनुं अनुमान थाय छे तेम), तेथी
काळ ‘
परिवर्तनलिंग’ छे. (२) वळी पुद्गलादिना परिवर्तन द्वारा काळना पर्यायो (‘थोडो वखत’, घणो वखत’ एवी काळनी अवस्थाओ) गम्य थाय छे तेथी पण काळ ‘परिवर्तनलिंग’ छे.