Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१९
सत्ता सर्वपदार्था सविश्वरूपा अनंतपर्याया
भङ्गोत्पादध्रौव्यात्मिका सप्रतिपक्षा भवत्येका ।।।।

अत्रास्तित्वस्वरूपमुक्त म्

अस्तित्वं हि सत्ता नाम सतो भावः सत्त्वम् न सर्वथा नित्यतया सर्वथा क्षणिकतया वा विद्यमानमात्रं वस्तु सर्वथा नित्यस्य वस्तुनस्तत्त्वतः क्रमभुवां भावानामभावात्कुतो विकारवत्त्वम् सर्वथा क्षणिकस्य च तत्त्वतः प्रत्यभिज्ञानाभावात् कुत एकसन्तानत्वम् ततः प्रत्यभिज्ञानहेतुभूतेन केनचित्स्वरूपेण ध्रौव्यमालम्ब्यमानं काभ्यांचित्क्रमप्रवृत्ताभ्यां स्वरूपाभ्यां प्रलीयमानमुपजायमानं चैककालमेव परमार्थतस्त्रितयीमवस्थां बिभ्राणं वस्तु सदवबोध्यम् अत एव सत्ताप्युत्पादव्ययध्रौव्यात्मिकाऽवबोद्धव्या, भावभाववतोः कथञ्चिदेकस्वरूपत्वात सा च

अन्वयार्थ[सत्ता] सत्ता [भङ्गोत्पादध्रौव्यात्मिका] उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक, [एका] एक, [सर्वपदार्था] सर्वपदार्थस्थित, [सविश्वरूपा] सविश्वरूप, [अनन्तपर्याया] अनंतपर्यायमय अने [सप्रतिपक्षा] सप्रतिपक्ष [भवति] छे.

टीकाअहीं अस्तित्वनुं स्वरूप कह्युं छे.

अस्तित्व एटले सत्ता नामनो सत्नो भाव अर्थातसत्त्व.

विद्यमानमात्र वस्तु नथी सर्वथा नित्यपणे होती के नथी सर्वथा क्षणिकपणे होती. सर्वथा नित्य वस्तुने खरेखर क्रमभावी भावोनो अभाव थवाथी विकार (-फेरफार, परिणाम) क्यांथी थाय? अने सर्वथा क्षणिक वस्तुने विषे खरेखर प्रत्यभिज्ञाननो अभाव थवाथी एकप्रवाहपणुं क्यांथी रहे? माटे प्रत्यभिज्ञानना हेतुभूत कोई स्वरूपथी ध्रुव रहेती अने कोई बे क्रमवर्ती स्वरूपोथी नष्ट थती ने ऊपजतीए रीते एक ज काळे परमार्थे त्रेवडी (त्रण अंशवाळी) अवस्थाने धरती वस्तु सत् जाणवी. तेथी ज सत्ता’ पण ‘उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक (त्रिलक्षणा) जाणवी, कारण के भाव अने भाववाननुं कथंचित् एक स्वरूप होय छे. वळी ते (सत्ता) ‘एक’ छे, कारण के ते

१. सत्त्व=सत्पणुं; हयातपणुं; विद्यमानपणुं; हयातनो भाव; ‘छे’ एवो भाव.

२. वस्तु सर्वथा क्षणिक होय तो ‘जे पूर्वे जोवामां (-जाणवामां) आवी हती ते ज आ वस्तु छे एवुं ज्ञान न थई शके.

३. सत्ता भाव छे अने वस्तु भाववान छे.