चित्रकिर्मीरतान्वयाभावात्सुविशुद्धत्वं, तथैव च क्वचिज्जीवद्रव्ये ज्ञानावरणादिकर्मकिर्मीरता- न्वयाभावादाप्तागमसम्यगनुमानातीन्द्रियज्ञानपरिच्छिन्नात्सिद्धत्वमिति ।।२०।।
चित्रविचित्रपणानो अन्वय ( – संतति, प्रवाह) छे, तेम ते जीवद्रव्यमां व्याप्ति- ज्ञानाभासनुं कारण (नीचेना खुल्ला भागमां) ज्ञानावरणादि कर्मथी थयेला चित्र- विचित्रपणानो अन्वय छे. वळी जेम ते वांसमां (उपरना भागमां) सुविशुद्धपणुं छे कारण के (त्यां) विचित्र चित्रोथी थयेला चित्रविचित्रपणाना अन्वयनो अभाव छे, तेम ते जीवद्रव्यमां (उपरना भागमां) सिद्धपणुं छे कारण के (त्यां) ज्ञानावरणादि कर्मथी थयेला चित्रविचित्रपणाना अन्वयनो अभाव छे — के जे अभाव आप्त-आगमना ज्ञानथी, सम्यक् अनुमानज्ञानथी अने अतीन्द्रिय ज्ञानथी जणाय छे.
भावार्थः — संसारी जीवनी प्रगट संसारी दशा जोईने अज्ञानी जीवने भ्रम ऊपजे छे के — ‘जीव सदा संसारी ज रहे, सिद्ध थई शके ज नहि; जो सिद्ध थाय तो सर्वथा असत्-उत्पादनो प्रसंग आवे.’ परंतु अज्ञानीनी आ वात योग्य नथी.
जेवी रीते जीवने देवादिरूप एक पर्यायना कारणनो नाश थतां ते पर्यायनो नाश थई अन्य पर्याय उत्पन्न थाय छे, जीवद्रव्य तो तेनुं ते ज रहे छे, तेवी रीते जीवने संसारपर्यायना कारणभूत मोहरागद्वेषादिनो नाश थतां संसारपर्यायनो नाश थई सिद्धपर्याय उत्पन्न थाय छे, जीवद्रव्य तो तेनुं ते ज रहे छे. संसारपर्याय अने सिद्धपर्याय बन्ने एक ज जीवद्रव्यना पर्यायो छे.
वळी अन्य प्रकारे समजाववामां आवे छेः — धारो के एक लांबो वांस ऊभो राखवामां आव्यो छे; तेनो नीचेनो केटलोक भाग रंगबेरंगी करवामां आव्यो छे अने बाकीनो उपरनो भाग अरंगी ( – स्वाभाविक शुद्ध) छे. आ वांसना रंगबेरंगी भागमांनो केटलोक भाग खुल्लो राखवामां आव्यो छे अने बाकीनो बधो रंगबेरंगी भाग अने आखोय अरंगी भाग ढांकी दीधेलो छे. आ वांसनो खुल्लो भाग रंगबेरंगी जोईने अविचारी जीव ‘ज्यां ज्यां वांस होय त्यां त्यां रंगबेरंगीपणुं होय’ एवी व्याप्ति ( – नियम, अविनाभावसंबंध) कल्पी ले छे अने आवा खोटा व्याप्तिज्ञान द्वारा एवुं अनुमान तारवे छे के ‘नीचेथी छेक उपर सुधी आखो वांस रंगबेरंगी छे’. आ अनुमान मिथ्या छे; कारण के खरेखर तो आ वांसनो उपरनो भाग रंगबेरंगीपणाना अभाववाळो छे, अरंगी छे. वांसना द्रष्टांतनी माफक — कोई एक भव्य जीव छे; तेनो नीचेनो केटलोक भाग (अर्थात् अनादि काळथी वर्तमान काळ पं. ६