Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

ज्ञानावरणादिकर्मसामान्योदयनिर्वृत्तसंसारित्वपर्याये भव्यस्य स्वकारणनिवृत्तौ निवृत्ते समुत्पन्ने चाभूतपूर्वे सिद्धत्वपर्याये नासदुत्पत्तिरिति किञ्चयथा द्राघीयसि वेणुदण्डे व्यवहिताव्यवहितविचित्रचित्रकिर्मीरताखचिताधस्तनार्धभागे एकान्तव्यवहित- सुविशुद्धोर्ध्वार्धभागेऽवतारिता द्रष्टिः समन्ततो विचित्रचित्रकिर्मीरताव्याप्तिं पश्यन्ती सम- नुमिनोति तस्य सर्वत्राविशुद्धत्वं, तथा क्वचिदपि जीवद्रव्ये व्यवहिताव्यवहितज्ञाना- वरणादिकर्मकिर्मीरताखचितबहुतराधस्तनभागे एकान्तव्यवहितसुविशुद्धबहुतरोर्ध्वभागेऽवतारिता बुद्धिः समन्ततो ज्ञानावरणादिकर्मकिर्मीरताव्याप्तिं व्यवस्यन्ती समनुमिनोति तस्य सर्वत्रा- विशुद्धत्वम् यथाच तत्र वेणुदण्डे व्याप्तिज्ञानाभासनिबन्धनविचित्रचित्रकिर्मीरतान्वयः, तथाच क्वचिज्जीवद्रव्ये ज्ञानावरणादिकर्मकिर्मीरतान्वयः यथैव च तत्र वेणुदण्डे विचित्र- उदयथी रचाता जे देवादिपर्यायो तेमांथी जीवने एक पर्याय स्वकारणनी निवृत्ति थतां निवृत्त थाय अने बीजो कोई अभूतपूर्व पर्याय ज उत्पन्न थाय, त्यां असत्नी उत्पत्ति नथी; तेम दीर्घ काळ सुधी अन्वयरूपे रहेनारो, ज्ञानावरणादिकर्मसामान्यना उदयथी रचातो संसारित्वपर्याय भव्यने स्वकारणनी निवृत्ति थतां निवृत्त थाय अने अभूतपूर्व (पूर्वे नहि थयेलो एवो) सिद्धत्वपर्याय उत्पन्न थाय, त्यां असत्नी उत्पत्ति नथी. वळी (विशेष समजाववामां आवे छे)

जेवी रीते जेनो विचित्र चित्रोथी चित्रविचित्र नीचेनो अर्ध भाग केटलोक ढंकायेलो अने केटलोक अणढंकायेलो होय तथा सुविशुद्ध (अचित्रित) ऊंचेनो अर्ध भाग एकलो ढंकायेलो ज होय एवा बहु लांबा वांस पर द्रष्टि मूकतां, ते द्रष्टि सर्वत्र विचित्र चित्रोथी थयेला चित्रविचित्रपणानी व्याप्तिनो निर्णय करती थकी ‘ते वांस सर्वत्र अविशुद्ध छे (अर्थात् आखोय रंगबेरंगी छे)’ एम अनुमान करे छे, तेवी रीते जेनो ज्ञानावरणादि कर्मथी थयेल चित्रविचित्रतायुक्त (विविध विभावपर्यायवाळो) घणो मोटो नीचेनो भाग केटलोक ढंकायेलो अने केटलोक अणढंकायेलो छे तथा सुविशुद्ध (सिद्धपर्यायवाळो), घणो मोटो ऊंचेनो भाग एकलो ढंकायेलो ज छे एवा कोई जीवद्रव्यमां बुद्धि लगाडतां, ते बुद्धि सर्वत्र ज्ञानावरणादि कर्मथी थयेला चित्रविचित्रपणानी व्याप्तिनो निर्णय करती थकी ‘ते जीव सर्वत्र अविशुद्ध छे (अर्थात् आखोय संसारपर्यायवाळो छे)’ एम अनुमान करे छे. वळी जेम ते वांसमां व्याप्तिज्ञानाभासनुं कारण (नीचेना खुल्ला भागमां) विचित्र चित्रोथी थयेला

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